गुनाहों का देवता या धनपुरी का मसीहा!? — “सुंदरु” की राजनीति का काला सच!

शहडोल धनपुरी!
धनपुरी की शांत गलियों और सीधे-साधे लोगों के बीच आज एक नाम चर्चा में है — इंद्रजीत सिंह छाबड़ा उर्फ सुंदरु!
कभी भाजपा जिला अध्यक्ष रहे और अब खुद को “चाणक्य” बताने वाले इस नेता की कहानी हैरान करने वाली है!
कहावत है — “जैसन जेखर घर-द्वार, वैसन ओखर फरका!”
जिसका घर, परिवार और संस्कार जैसे हों, वैसा ही उसका चाल-चलन होता है!
यह कहावत इस स्वयंभू “राजनीतिक चाणक्य” पर सटीक बैठती है!
‘चाणक्य’ या गालीबाज़!?
पूर्व भाजपा जिला अध्यक्ष इंद्रजीत सिंह छाबड़ा उर्फ सुंदरु की जुबान इन दिनों धनपुरी में सुर्खियाँ बटोर रही है
पर अपनी शालीनता के लिए नहीं, बल्कि अपनी गालीबाज़ी और अहंकार के लिए!
कभी नगर पालिका के कर्मचारियों को धमकाना, कभी छोटे अधिकारियों को डांटना, तो कभी सत्ता का रोब झाड़ना — यही इनकी रोज़मर्रा की राजनीति है!
बताया जाता है कि इंद्रजीत सिंह छाबड़ा ऊर्फ सुंदरु खुलेआम यह कहते फिरते हैं —
“धनपुरी में अगर कोई चाणक्य है तो वो मैं हूं!”
सवाल उठता है — क्या गालियों और धमकियों से राजनीति की चाणक्यनीति लिखी जाती है!?
पूर्व में हत्या का आरोपी, फिर भी मसीहा!?
धनपुरी में कौन नहीं जानता कि सुंदरु के नाम पर पहले भी कई संगीन आरोप लगे हैं!
हत्या के केस से लेकर धमकी तक, यह नाम विवादों से कभी दूर नहीं रहा!
हाल ही में एक पत्रकार ने थाने में शिकायत की कि सुंदरु ने सार्वजनिक रूप से उसे माँ-बहन की गालियाँ दीं और जान से मारने की धमकी तक दी!
ऑडियो सबूत के साथ मामला पुलिस तक पहुँचा, और थाने ने अपराध दर्ज भी किया!
अब जनता पूछ रही है — क्या सत्ता का नशा इतना चढ़ गया है कि कानून भी डर जाए!?
नगर पालिका में दबंगई!
नगर पालिका अध्यक्ष के पति होने का पूरा लाभ उठाकर सुंदरु आज हर फाइल, हर टेंडर और हर फैसले में दखल देते हैं!
कभी विधायक का प्रतिनिधि, तो कभी सांसद का खास बताकर — यह नेता खुद को नगर का मालिक समझने लगा है!?
कर्मचारियों को डराकर, धमकाकर और झूठे वादों से बहलाकर अपनी पकड़ बनाए रखना ही इनकी “राजनीति” है!
लोगों का कहना है — यह जनसेवक नहीं, सत्ता सेवक है!
धनपुरी की जनता अब जागने लगी है!
धनपुरी की जनता अब चुप नहीं!
जब एक पत्रकार ने अपने अपमान की बात सार्वजनिक रूप से कही, तो डर की दीवारें टूटती दिखाई दीं!
लोग अब सवाल पूछने लगे हैं —
जो गालियाँ दे, धमकियाँ दे, झूठ बोले — क्या वही नेता कहलाएगा!?
क्या यही लोकतंत्र है!?
जाति प्रमाणपत्र पर भी सवाल!?
लोगों में चर्चा है कि सुंदरु के जाति प्रमाणपत्र को लेकर भी संदेह गहराता जा रहा है!
जनता का कहना है — यदि सब कुछ सही है तो जांच से डर क्यों!?
नगरवासियों ने प्रशासन से मांग की है कि इस व्यक्ति की संपत्ति, राजनीतिक प्रभाव और दस्तावेज़ों की निष्पक्ष जाँच की जाए!
निष्कर्ष : गुनाहों का देवता या धनपुरी का भ्रम!?
जिस व्यक्ति के सिर पर हत्या का आरोप हो, जिसकी जुबान जहर उगले,
जो समाज को बाँटे और डर का माहौल बनाए —
क्या वही धनपुरी का मसीहा है!?
सच्चाई यह है कि यह “चाणक्य सुंदरु” अब बुझता हुआ चिराग बन चुका है!
धनपुरी की जनता अब समझ चुकी है कि असली सेवा गालियों से नहीं, कर्मों से होती है!
सवाल यही है —
कब तक चलेगी यह गालीबाज़ राजनीति!?
कब तक डराएगा यह स्वयंभू चाणक्य!?
अब वक्त है जागने का —
क्योंकि धनपुरी का जनादेश अब गुनाहों के देवता को नहीं, जनता के सेवक को चाहिए!