उद्योग के संचालन व उत्पादन को प्रभावित कर रहे विघ्न संतोषी।
आंदोलन का सहारा स्थानीय पुश्तैनी कृषक होने का कर रहे दावा।
शहडोल। कहां थे यह आंदोलनकारी इनके द्वारा बरसो बीतने के बाद क्षेत्र की जनता या खासकर उन कृषकों को जिन्होंने उद्योग की स्थापना में अपना बहुमूल्य योगदान प्रदान किया है जिन्हें अपनी भूमि और रोजगार से वंचित होकर दर-दर ठोकर खाने के लिए विवश हैं। स्थानीय एवं सर्वाधिक प्रभावित ग्राम के निवासी ग्रामीण जन एवं कृषक आज भी उद्योग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग करने में लगे हैं उनका कहना है की उद्योग संचालित रहे गा तो आसपास के लोग दैनिक मजदूरी करके ही अपना और अपने परिवार का उधर पोषण कर सकते हैं लेकिन बाहरी राज्यों से आकर यहां रोजगार कर रहे लोग अपने आप को यहां का स्थानीय पुश्तैनी निवासी बताकर सरेआम गुमराह कर रहे हैं शासन प्रशासन को।एशिया का ख्याति प्राप्त कागज कारखाना ओरियंट पेपर मिल निरंतर 6 या 7 दशक से संचालित है एवं इस उद्योग के संचालन से कच्चे माल यूकेलिप्टस बांस सो बबूल जैसी लकड़ियों के प्रयोग से कागज का निर्माण किया जाता है। उसकी निरंतरता और उत्पादन आज भी पुराने नियम व सिद्धांतों पर आधारित है जहां पूर्व में 200 से 300 टन का उत्पादन किया जाता रहा है आज भी उसी अवस्था में उत्पादन हो रहा है।
कागज कारखाना उद्योग के संचालन से पूर्व यहां के स्थानीय पुश्तैनी निवासियों इसमें सर्वाधिक प्रभावित ग्राम बरगवां बकरी एवं वर्क हो जहां के कृषकों की भूमि कौड़ियों के दाम गठित की गई और कुछ कृषकों के परिवार के सदस्यों को रोजगार प्रदान किया गया अतः उसके बाद उन्हें दूसरी बार उनके परिवार के सदस्यों को उदय उद्योग में रोजगार का अवसर प्रदान नहीं किया गया इसका सबसे बड़ा कारण मध्य प्रदेश के कुछ शहरों और बाहर राज्यों के लोगों को जैसे रीवा सतना सीधी और बिहार उत्तर प्रदेश उड़ीसा बंगाल के लोगों को नौकरी रोजगार में भर लिया गया और वर्तमान स्थिति में उन्हीं का उद्योग के अंदर वर्चस्व है जिनके द्वारा उद्योग प्रबंधन की चापलूसी करके अपने परिवार के सदस्यों की नौकरी और अपनी ठेकेदारी के रूप में सिर्फ अपना और अपना भला करके उल्लू सीधा करते हुए रोजगार की रोटी सेक रहे हैं ऐसा अवसर कई बार देखा जाता है कि स्थानीय जनों के साथ जो यहां के पुश्तैनी निवासी हैं जिनके द्वारा उद्योग की स्थापना में सबसे महत्वपूर्ण योगदान है जिनकी भूमि अधिग्रहित कर ली गई एवं कृषि कार्य और रोजगार से भी वंचित कर दिया गया लेकिन यह जो अन्य राज्यों से आए हुए लोग आज की स्थिति में अपने आप को यहां का स्थानीय और पुश्तैनी निवासी बताकर उद्योग के संचालन में कभी आंदोलन कभी चक्का जाम कभी अनशन तो कभी कई अनैतिक गतिविधियों का सहारा लेकर कुछ ना कुछ षड्यंत्र करते हुए उत्पादन और आसपास के लोगों को प्रभावित करते रहते हैं रही प्रदूषण की बात तो स्वभाविक है पूरे भारत के अंदर जहां भी उद्योग की स्थापना की गई है वह स्थान वह जगह प्रदूषण से वंचित नहीं रह सकता चाहे वह जल प्रदूषण हो वायु प्रदूषण हो या फिर धरती में कई प्रकार के रासायनिक को घोलने का कार्य हो।
वास्तविकता तो यह है कि आज की परिस्थिति में ऐसे लोगों के द्वारा अपना उल्लू सीधा करने के लिए अपने आप को स्थानीय पुश्तैनी प्रभावित ग्रामीण व कृषक बताकर कई वर्षों से उद्योग के अंदर ठेकेदारी व अन्य कार्यों के माध्यम से रोटी सेक रहे हैं जबकि देखा जाए तो जिनके द्वारा उद्योग की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान है खासकर उद्योग के आसपास के प्रभावित ग्राम के ग्रामीण आदिवासी वर्ग के लोग उद्योग में कार्य न करते हुए अपने जीवन यापन के लिए रोजमर्रा के कार्य के रूप में दैनिक वेतन भोगी या मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का उदर पोषण करते हैं।
जब तक इनके काम सधते हैं। तब तक इनके द्वारा किसी भी प्रकार का विरोध या विवाद नहीं किया जाता किंतु जब इनकी झोली में इनकी चाटुकारिता और दलाली का फीस नहीं जाता तो स्थानीय बेरोजगार स्थानीय कृषकों पुश्तैनी निवासियों के नाम पर हो हल्ला और हड़ताल आंदोलन अनशन जैसी गतिविधियों का उपयोग करते हुए उद्योग प्रबंधन पर दबाव बनाकर ब्लैक मेलिंग करते रहते हैं जबकि सच्चाई कोसों दूर स्थानीय जनों जिन्होंने अपना सब कुछ उद्योग हित में न्योछावर कर दिया है उनके साथ उद्योग प्रबंधन में बैठे आला अधिकारी ईर्ष्या द्वेष पूर्ण मतभेद करते रहते हैं।