नदियों के लिए काल बनता जा रहा रेता का अवैध उत्खनन
जिम्मेदारों ने मानसून सत्र् में भी ऑफ रिकार्ड उत्खनन की दी अनुमति
प्रतिदिन जीवनदायनी के सीने पर चल रहा वंशिका का खंजर
शहडोल (अविरल गौतम )प्राप्त जानकारी के अनुसार मानसून सीजन की शुरुआत होते ही प्रदेश भर में 15 जून से रेत खनन पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया, लेकिन जिले में अब तक (17 जुलाई तक) इस आदेश पर अमल नहीं हो सका। नतीजतन रेत ठेकेदार दर्जनों वाहनों से नदियों में रेत खनन करने में लगे हैं। उन्हें शासकीय गाइड लाइन से कोई मतलब नहीं। जिम्मेदारों ने भी इस ओर ध्यान देना उचित नहीं समझा। सूत्र बताते हैं कि नियमानुसार मानसून के दौरान रेत खनन पर कब से कब तक प्रतिबंध रहेगा, इसके लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एफओईएफ) की ओर से सस्टेनेबल सैंड माइनिंग मैनेजमेंट गाइड लाइंस बनाई गई है। इसके मुताबिक मप्र में मानसून पीरियड 15 जून से 1 अक्टूबर तक माना गया है, लिहाजा इस अवधि में प्रदेश में रेत खनन प्रतिबंधित है। लेकिन जिले में प्रशासन, खनिज विभाग के अधिकारियों का इस तरफ ध्यान नहीं है, खासकर जिले के सोन नदी से खुलेआम अवैध रेत खनन करते देखा जा सकता है।
राजस्व को लग रहा चूना
मानसून सत्र् में जिले में रेत माफिया नदियों से खुलेआम रेत का अवैध उत्खनन करा कर अवैध परिवहन करने में जुटे हुए हैं। वंशिका गु्रप के मैनेजर द्वारा गुर्गाे के माध्यम से रेत का अवैध उत्खनन एवं परिवहन कर शासन को प्रतिमाह लाखों के राजस्व की क्षति पहुंचाने का सिलसिला बेरोकटोक जारी रखे हुए है। इतना ही नहीं संबंधित महकमों की सेटिंग से रेत माफिया द्वारा अनेक स्थानों पर नदियों में जेसीबी एवं पोकलेन मशीन लगाकर रेत का अवैध खनन कराकर वाहनों एवं ट्रैक्टरों से रेत का अवैध परिवहन विभाग शासन को भारी राजस्व का चूना लगाया जा रहा है।
जल प्रवाह हो रहा कम
बड़ी नदियों को विशालता देने का कार्य उनकी सहायक छोटी नदियां ही करती हैं। बीते सालों में कई छोटी नदियां लुप्त हो गईं। इसका असल कारण ऐसी मौसमी छोटी नदियों से बेतहाशा रेत को निकालना था, जिसके चलते उनका अपने उद्गम व बड़ी नदियों से मिलन का रास्ता बंद हो गया। देखते ही देखते वहां से पानी रूठ गया। खासकर सोन नदी को सबसे ज्यादा नुकसान उनकी सहायक नदियों के रेत के कारण समाप्त होने से हुआ है। इसका ही असर है कि बड़ी नदियों में जल प्रवाह की मात्र साल दर साल कम हो रही है।
भण्डारण में नहीं होती रेत कम
कानून तो कहता है कि ना तो नदी को तीन मीटर से ज्यादा गहरा खोदो और ना ही उसके जल के प्रवाह को अवरुद्ध करो, लेकिन लालच के लिए कोई भी इनकी परवाह नहीं करता। रेत नदी के पानी को साफ रखने के साथ ही अपने करीबी इलाकों के भूजल को भी सहेजता है। कई बार एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट निर्देश दे चुके हैं। सूत्रों की माने तो जिले में वंशिका ग्रुप का मैनेजमेंट देख रहे अजीत ने जिले की सभी नदियों को छलनी किया जा रहा है, खबर है कि मानसून सत्र् में जितनी रेत कथित ठेकेदार ने भण्डारित की है, वह कभी कम नहीं होती, सुबह अगर 10 गाड़ी रेत कथित अजीत द्वारा बेची जाती है तो, रात में 15 गाड़ी फिर भण्डारण में पहुंच जाती है।
न जल प्रवाह बचा और न रेत
जिले की रेत खदानों का ठेका वंशिका ग्रुप को दिया गया है, कथित गु्रप ने जिले में इसका मैनेजमेंट अजीत नामक व्यक्ति को देखा रखा है, सूत्रों की माने तो जिले में जहां-जहां उक्त ग्रुप के मैनेजर द्वारा उत्खनन कराया जा रहा है, वहां अधिकांश नदियों का उथला होते जाना और थोड़ी सी बरसात में उफन जाना, तटों के कटाव के कारण बाढ़ आना और नदियों में जीव-जंतु कम होने के कारण पानी में ऑक्सीजन की मात्र कम होने से पानी में बदबू आना, ऐसे ही कई कारण हैं जो मनमाने रेत उत्खनन से जल निधियों के अस्तित्व पर संकट की तरह मंडरा रहे हैं। आज हालात यह है कि ना तो जल प्रवाह बच रहा है और ना ही रेत।