महिला स्वास्थ्य अधिकारी के जज्बे के आगे गम का तूफान भी बौना
सेवा का ऐसा जज्बा कि पिता के अंतिम संस्कार के बाद महिला स्वास्थ्य अधिकारी आ गईं ड्यूटी पर
अनूपपुर (अविरल गौतम )13 जून 2021/ कोरोना महामारी की दूसरी लहर के खिलाफ लड़ाई में अपनों की मौत के गम के आंसुओं का तूफान भी हमारे वाॅरियर्स का रास्ता नहीं रोक पाया है। इन्हीं में से एक हैं छुलहा उप स्वास्थ्य केन्द्र की जिला अस्पताल के कोविड आइसोलेशन वार्ड में कार्यरत चैंतीस वर्षीया महिला सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी श्रीमती कविता राठौर।
कोविड आइसोलेशन वार्ड में भर्ती गंभीर मरीजों के बीच उनकी सेवा का जुनून लिए कविता लगातार उनको स्वस्थ करने में जुटी हैं। इस चुनौती काल में उनके सामने एक पल वह भी आया, जब उनके पिता कोरोना संक्रमित होकर उसी कोविड आइसोलेशन वार्ड में आ गए, जहां वह कार्यरत हैं। दूसरे मरीजों के साथ-साथ उन्होंने अपने पिता की भी भरपूर सेवा की। मगर वह बच ना सके। पिता की मौत का गम आंसुओं के सैलाब के रूप में फूट पड़ा। पारिवारिक दायित्व निभाने उन्हें पिता के अंतिम संस्कार में जाना पड़ा। किन्तु वहां उनका मन यह सोचकर व्याकुल हो उठा कि कहीं उनके पिता की तरह किसी अन्य मरीज के साथ ऐसा ना हो जाए। इसी उधेड़बुन के चलते वह पिता के अंतिम संस्कार के बाद घर पर रुक नहीं सकीं और सीधे काम पर लौट आईं।
कोरोना के संक्रमण से परिवार को बचाने के लिए कविता घर पर नहीं रहतीं, बल्कि स्टाफ के साथ रेस्ट हाउस में रहती हैं। उनके पति ने भी उन्हें प्रोत्साहित किया कि ईमानदारी से अपनी ड्यूटी करो, घर मैं संभाल लूंगा। कविता ने मरीजों की सेवा को देखते हुए सवा साल से ड्यूटी से कोई अवकाष नहीं लिया। वह जब भी मरीजों को देखती हैं, तो पिता का चेहरा सामने आ जाता है और मरीजों को स्वस्थ करने का उन पर जुनून सवार हो जाता है। मरीजों की सेवा में से वह अपने लिए 24 घंटे में से 4 घंटे निकाल पाती हैं। जब कोई मरीज स्वस्थ होकर अपने घर लौटता है, तो उन्हें इतनी प्रसन्नता होती है जिसका अंदाजा लगाना मुष्किल है। तब उन्हें लगता है कि मेहनत सफल हो गई।
कविता का ऐसे मरीजों से भी सामना हुआ, जो अपनी बीमारी को लेकर डरने, घबराने और रोने लगते थे। वह रात-रात भर जाग कर ऐसे मरीजों को समझाकर उनका मनोबल बढ़ाती थीं। कविता मरीजों के प्रति हमेषा चैकस रहतीं। उन्हें ड्रिप लगाने, ब्लड सेंपल लेने, मेडीकेशन करने, बी.पी. चेक करने, ऑक्सीजन लेवल चेक करने का काम करती थीं और डाॅक्टर का भ्रमण करवाती तथा डाॅक्टर की सुझाई दवाइयां मरीजों को समय पर देतीं थीं। उनके मधुर एवं सहज व्यवहार ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया है। कोरोना की विकट स्थिति में मानव सेवा के अपने इस जज्बे को कायम रखते हुए कविता जिस तरह से काम कर रही हैं, वह सराहनीय है।