November 22, 2024

आत्मा से परमात्मा का मिलन ही महारास है: पंडित सूर्यकांत कृष्ण विवाह में धूमधाम से निकली बारात, जमकर थिरके श्रोता

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शहडोल ब्यौहारी से दुर्गेश कुमार गुप्ता

शहडोल। मा कात्यायनी के पूजन के फल से ही गोपियों ने श्री कृष्ण को प्राप्त किया। गौरतलब है कि विगत पांच दिवस से खैरहा गांव में आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान गंगा में क्षेत्र के हजारों श्रोतागण श्रद्धापूर्वक भागवत पंडाल में पहुंचकर ज्ञान गंगा में गोता लगा रहे है। भागवत कथा के आयोजक सुधीर शर्मा व श्रीमती दिव्यानि शर्मा द्वारा जगत कल्याण हितार्थ भागवत ज्ञान गंगा का संगीतमय प्रवाह खैरहा गढ़ी के पीछे विशाल पंडाल पर कराया जा रहा है। जिसमे प्रमुख श्रोता पंडित रमाकान्त शर्मा व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती निर्मला शर्मा तथा उनके सम्बंधीजन है।

   पंडित स्व.साधूराम शर्मा व पत्नी स्व.रामसखी शर्मा की पुण्यस्मृति में भागवत कथा का प्रवाह भक्तिपूर्ण पंडित सूर्यकांत शुक्ला जी महाराज जी द्वारा कराया जा रहा है। पूर्व से ही पंडित स्व. साधूराम शर्मा स्वयं सर्वमान विद्युत समाज से पूर्णतः भागवत पुराण वाचक थे। उनकी परिपाटी में उनके वंश वारिश भी गुरु शिष्य परम्परा का निर्वहन करते हुए क्षेत्र में प्रतिष्ठित पंडितों के बारे में जाने जाते है। जिसको लेकर पंडित स्व.साधूराम शर्मा के पुत्र रमाकान्त शर्मा द्वारा आयोजित कथा में उनके यजमान और शिष्यों के बीच खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। जिस कारण क्षेत्र के अनेकों गांव से श्रोता कथा श्रवण करने पहुंच रहे है।

  पंडित सूर्यकांत जी महाराज ने बताया कि आत्मा से परमात्मा से मिलन को ही महारास कहते है, उन्होंने कहा कि देहधारी सांसारिक वासना में बहकर भगवान को प्राप्त नही कर सकते, बल्कि भक्ति मार्ग से आत्मा को सुद्ध कर आत्मा का परमात्मा में विलीन करते है। भागवत कथा में इसीलिए रास पंच अध्यायी को भागवत का प्राण कहा जाता है। उन्होंने कहा कि गोपियों की विषय के वर्णन करते हुए कहा कि जिसमे गोपाल को पी लिया या गोपाल को पा लिया वही गोपी है। कंश को मैं और मेरा का अहंकार का प्रतीक बताते हुए महाराज जी ने कहा कि अधर्म का बोलबाला अधिक दिनों तक नही रहता, धर्म की रक्षा के लिए अपने भक्तों के कल्याण के लिए अहंकारियों का मान भंग करने के लिए भगवान जरूर आते है। वहीं महाराज जी ने रुकमणी विवाह का वर्णन करते हुए कहा कि सांसारिक विषय भोग भी संयम के साथ धारण करना चाहिए, तथा माता रुकमणी को भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी बताया व भगवान श्री कृष्ण ही स्वयंमेव भगवान विष्णु है, भगवान यहां 16 कलाओं में प्रकट हुए है। इसलिए इन्हें पूर्ण ब्रम्ह बताते हुए लक्ष्मी नारायण के रूप में रुकमणी कृष्ण का पावन विवाह प्रसंगों की श्लोकबद्ध व्याख्या किया।

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