छत्तीसगढ़ की 72 फीसदी जमीन अभी भी प्यासी, महज 28 फीसदी इलाके में हो सकती सिंचाई

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रायपुर
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) कृषि प्रधान राज्य है. विकास के तमाम दावों के बीच छत्तीसगढ़ में अब भी करीब 72 प्रतिशत जमीन असिंचित (Land Irrigated) है. राज्य बनने के बाद अब तक राज्य को तीन मुख्यमंत्री मिल गए हैं लेकिन फिर भी छत्तीसगढ़ की जमीन प्यासी ही रह गई. बता दें कि छत्तीसगढ़ राज्य को बने 20 साल हो गए हैं. राज्य में विकास के नाम पर अनाप-शनाप खर्च किया गया. लेकिन कृषि प्रधान राज्य होने के बाद भी सिंचाई को लेकर अपेक्षा से बेहद कम काम किया गया. नतीजा हजारों करोड़ फूंकने के बाद भी छत्तीसगढ़ में केवल 28 प्रतिशत रकबा ही सिंचित किया जा सकता है. सिंचाई को लेकर अपेक्षाकृत बजट (Budget) अब भी राज्य को ना ही मिल पाया है और ना ही सिंचाई का रकबा बढ़ाने के लिए अपेक्षाकृत संसाधन विकसित किए गए हैं.

कांग्रेस सरकार ने अपने जनघोषणा पत्र में किसानों और आम नागरिकों के व्यापक हित में छत्तीसगढ़ की पहली जल नीति लागू करने का संकल्प लिया था. कांग्रेस ने वादा किया था कि जल संसाधन विभाग द्वारा पेयजल और सिंचाई को प्राथमिकता दी जाएगी. लघु और मध्यम सिंचाई योजनाओं पर विशेष ध्यान देकर पांच वर्ष के भीतर सिंचित क्षेत्र को दोगुना किया जाएगा. जनघोषणा पत्र में जल संसाधन विभाग से संबंधित बिन्दुओं में यह भी कहा गया है कि सिंचाई शुल्क को समाप्त कर पुरानी बकाया राशि माफ की जाएगी. किसानों की अधिकारों की रक्षा, कृषि उपजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य और कृषि नीतियों पर सलाह देने के लिए किसान आयोग बनाया जाएगा, जिसमें किसान प्रतिनिधियों और अन्य हितग्राहियों को भी शामिल किया जाएगा. हालांकि किसान नेता संकेत ठाकुर का कहना है कि सरकारें सभी एक जैसी ही हैं और वादे भी एक जैसे ही.

इस मसले पर मौसम वैज्ञानिक एचपी चंद्रा का कहना है कि छत्तीसगढ़ में ज्यादातर किसान वर्षा के जल पर ही निर्भर है लेकिन उनके लिए दिनों दिन मुश्किल इसलिए भी शुरू हो रही है क्योंकि लगातार बारिश के दिन कम होते जा रहे हैं. तो वहीं वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ एसके दास का कहना है कि राज्य की इस खामी का असर उत्पादन पर तो पड़ता ही है. वहीं किसानों की स्थिति जस की तस बने रहने के पीछे भी यह एक बड़ा कारण है. तो वहीं सूबे के कृषि मंत्री गुरू रूद्र कुमार का कहना है कि लगातार कोशिश जारी है और जल्द इसमें बड़ा सुधार होगा.

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