बिंदुओं में जानें मनोहरलाल मंत्रिमंडल विस्‍तार के खास राज

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चंडीगढ़
मनाेहरलाल सरकार का पूरा स्‍वरूप सामने आ चु‍का है। मंत्रिमंडल विस्‍तार को लेकर कई सवाल उठते हैं। इस बार कई ऐसे विधायकों को मंत्री पर मिला है जो पहली बार विधानसभा पहुंचे हैं। कई तो ऐसे हैं जो हाल में ही राजनीति में आए थे और पहली बार चुनाव मैदान में उतरे हैं।

इसके साथ ही कुछ लोकसभा क्षेत्र से कोई मंत्री नहीं है तो कुछ लाेकसभा क्षेत्रों से एक से अधिक मंत्री बनाए गए हैं। ऐसे में कई सवाल पैदा होना स्‍वाभाविक है। आइये ऐसे से 10 सवाल और उनके जवाब जानें। तो हाजिर है ऐस सवालों के जवाब, जो आप जानना चाहते हैं-

1. संदीप को क्यों मिला मंत्री पद?

– मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने खिलाडिय़ों को सत्ता में भागीदारी का संकेत पहले ही दे दिया था। अपनी कई चुनावी रैलियों में मनोहर अपनी मंशा बता चुके थे। कई बार तीन नामचीन खिलाडिय़ों को टिकट देने का औचित्य बताया था। प्रदेश को खेल क्षेत्र में सिरमौर बनाने के लिए उतारे थे खिलाड़ी। सीएम की उसी सोच का परिणाम है संदीप का मंत्री बनना। सिख होना भी मददगार बना। युवा, सिख व खिलाड़ी होने के कारण उनको इनाम मिला।

2. आइएएस पर क्यों भारी पड़े एडीओ?

– आइएएस मतलब नांगल चौधरी के विधायक डॉ. अभय सिंह व एडीओ मतलब नारनौल के विधायक व नवनियुक्त मंत्री ओमप्रकाश यादव। दो दिन पहले तक भी नांगल चौधरी के विधायक डॉ. अभय सिंह यादव की दावेदारी मजबूत मानी जा रही थी, परंतु राव की मेहरबानी व दिल्ली के आशीर्वाद से ओम प्रकाश बाजी मार गए। सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी डॉ. अभय सिंह के समर्थक उनके काम व उनकी उच्च शिक्षा के कारण उनकी दावेदारी पुख्ता मान रहे थे, मगर राजनीति में आने से पहले कृषि विभाग में एडीओ रहे ओम प्रकाश ने राव के आशीर्वाद से कुर्सी पर कब्जा कर लिया। कहते हैं एडीओ ने डॉ. बनवारीलाल की तरह सीएम का भरोसा भी जीत लिया था। दिल्ली के एक बड़े नेता ने भी एडीओ की पैरवी की।

3. रॉव इंद्रजीत को क्या मिला?

– सीधी बात यह है कि एक बार फिर राव की गुगली का कमाल नजर आया। विरोधी चित। राव की चौधराहट कायम हुई। अतीत गवाह है कि जब-जब राव पर वार हुआ तब-तब उन्होंने तगड़ा पलटवार किया है। बेटी आरती को टिकट बेशक नहीं दिला पाए, परंतु पहले समर्थकों के लिए टिकट वितरण की जंग जीतकर और अब दो-दो समर्थकों को मंत्री पद दिलाकर दिल्ली में पकड़ दिखा दी है।

4. डॉ. बनवारी किस वजह से फिर मंत्री बने?

– जब बड़े-बड़े दिग्गज मंत्री हार गए तब लगातार दूसरी बड़ी जीत। वफादारी व विश्वास का इनाम। दो नावों में संतुलन साधने की कला के कारण फिर बने मंत्री। राव से वफादारी तोड़े बिना जीता मुख्यमंत्री का विश्वास। भाजपा की दलित राजनीति का चेहरा बनकर उभरे हैं बनवारी लाल।

5. क्या जल्दी फिर होगा मंत्रिमंडल विस्तार?

– रिक्त पद रखना पुरानी रणनीति है। अब सबको रहेगी एक ही उम्मीद-अब जल्दी होगा मंत्रिमंडल विस्तार। यह पूरी तरह मनोहर के मिजाज व दुष्यंत की जरूरत पर निर्भर करेगा। फिलहाल सरकार किसी जल्दबाजी में नहीं है। न ही कोई खतरा है।

6. अभी कितने मंत्री बन सकते हैं?

– मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री सहित मनोहर मंत्रिमंडल में अब कुल 12 सदस्य हो गए हैं। अभी दो मंत्री व एक विधानसभा उपाध्यक्ष का पद रिक्त है। इनमें से कम से कम एक पद फरीदाबाद व गुडग़ांव लोकसभा क्षेत्रों को मिलने की पूरी संभावना है।

7. किस लोकसभा से एक भी मंत्री नहीं?

– अब आठ लोकसभा क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व मिल गया है, परन्तु रोहतक व सोनीपत लोकसभा क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। अंबाला, भिवानी-महेंद्रगढ़, कुरुक्षेत्र व हिसार से दो-दो मंत्री, करनाल लोकसभा से अकेले मुख्यमंत्री मनोहरलाल, फरीदाबाद से अकेले मूलचंद शर्मा, सिरसा से रणजीत सिंह व गुडग़ांव लोकसभा से अकेले डॉ. बनवारीलाल बने हैं।   

8. सबसे अधिक प्रतिनिधित्व किस क्षेत्र को मिला?

– कैबिनेट विस्‍तार में सीएम मनोहालाल दक्षिण हरियाणा पर पूरी तरह मेहरबान रहे। बावल से डॉ. बनवारीलाल, लोहारू से जेपी दलाल, बल्लभगढ़ से मूलचंद शर्मा, नारनौल  से ओम प्रकाश यादव को मंत्री बनाया गया। उत्तर हरियाणा (जीटी बेल्ट) से खुद मनोहर लाल, अनिल विज, कंवरपाल गुर्जर, संदीप सिंह व कमलेश ढांडा मंत्री बने। पश्चिम हरियाणा से केवल निर्दलीय रणजीत सिंह को जगह मिली है। मध्य हरियाणा से दुष्यंत चौटाला व अनूप धानक (दोनों जेजेपी) (दोनों हिसार लोकसभा क्षेत्र से) हैं।

9. सबसे अधिक किस जाति को महत्व मिला?

– सबसे अधिक जाट समुदाय को जगह मिली। उपमुख्यमंत्री दुष्‍यंत चौटाला समेत चार जाट मंत्रिमंडल में शामिल हैं। इसके अलावा मुख्यमंत्री समेत दो पंजाबी व दो अनुसूचित जाति, एक यादव, एक गुर्जर, एक सिख व एक ब्राह्मण को मंत्री बनाया गया है। वैश्य समुदाय से विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता बनाए जा चुके हैं।

10. सबसे अधिक अखरने वाली बात?

– गुरुग्राम जिले को कुछ नहीं मिलना। राजपूत समाज को कुछ नहीं मिलना। समर्थन के आधार पर फरीदाबाद व गुडग़ांव लोकसभा क्षेत्रों को अधिक उम्मीद थी।

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