UP का वो पुलिस प्रमुख जो बन गया कारसेवकों का नायकः श्रीश चंद्र दीक्षित

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लखनउ

अयोध्या का राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद देश की सबसे बड़ी अदालत में फैसले का इंतजार कर रहा है. इस मामले पर सुनवाई पूरी हो चुकी है और माना जा रहा है कि 17 नवंबर से पहले सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना सकता है. अयोध्या का मामला यूं तो दशकों से चला आ रहा है लेकिन आजादी के बाद इसे लेकर सबसे बड़ी घटना 29 साल पहले आज ही के दिन घटी जब अयोध्या के हनुमान गढ़ी जा रहे कारसेवकों पर गोलियां चलाई गईं और पांच कारसेवकों की जान गई.

उमा भारती, अशोक सिंघल, आचार्य धर्मेंद्र जैसे हिन्दूवादी नेताओं के साथ-साथ एक ऐसी शख्सियत भी कारसेवकों की उस भीड़ की अगुआई कर रही थी जिसके जिम्मे कुछ समय पहले तक यूपी की कानून-व्यवस्था बनाए रखना था. ये थे यूपी के रिटायर्ड डीजीपी श्रीश चंद्र दीक्षित. देश में घूम-घूम कर श्रीश चंद्र दीक्षित ने मंदिर आंदोलन का प्रचार किया और बाद में वे कारसेवकों के लिए नायक बनकर उभरे.

पूर्व डीजीपी को सामने देख पुलिसवालों ने रोकी थी फायरिंग

दरअसल कारसेवक और साधु-संत अयोध्या कूच कर रहे थे. भारी भीड़ अयोध्या पहुंचने लगी थी. प्रशासन ने अयोध्या में कर्फ्यू लगा रखा था. पुलिस ने विवादित स्थल के 1.5 किलोमीटर के दायरे में बैरिकेडिंग कर रखी थी. 30 अक्टबूर, 1990 को कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई. इसके बाद पुलिस ने कारसेवकों पर गोली चला दी तो कारसेवकों के ढाल बनकर श्रीश चंद्र दीक्षित सामने आए. पूर्व डीजीपी को सामने देख पुलिस वालों ने गोली चलाना बंद कर दिया.

१९८४ तक यूपी के डीजीपी, फिर वीएचपी से जुड़े

रायबरेली के सोतवा खेड़ा गांव में 3 जनवरी 1926 को जन्मे श्रीश चंद्र दीक्षित 1982 से लेकर 1984 तक वे उत्तर प्रदेश के डीजीपी रहे. इसके बाद 1984 में रिटायर होने के बाद विश्व हिंदू परिषद से जुड़ गए और केंद्रीय उपाध्यक्ष बन गए. वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा ने अपना किताब 'युद्ध में अयोध्या' में जिक्र किया है कि श्रीश चंद्र दीक्षित राम मंदिर आंदोलन के अगली कतार के नेताओं में थे. वह श्रीराम जन्मभूमि के न्यास से भी जुड़े हुए थे.

कारसेवकों को अयोध्या पहुंचाने की योजना बनाई

श्रीश चंद्र दीक्षित को वीएचपी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल का विश्वासपात्र माना जाता था. राम मंदिर आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाने में उनकी खास भूमिका थी. हेमंत शर्मा अपनी किताब में लिखते हैं कि पुलिस प्रशासन से नजरें बचाकर कारसेवकों को अयोध्या पहुंचाना हो या फिर कानून को धता बताकर कारसेवा करवाना. इन कामों में श्रीश चंद्र दीक्षित का ही तेज दिमाग चलता था.

शिलान्यास का पत्थर सिर पर रख देशभर में घूमे

अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास करने वालों में श्रीश चंद्र भी थे. 1989 में प्रयाग कुंभ के मौके पर अयोजित धर्मसंसद में मंदिर शिलान्यास कार्यक्रम की घोषणा की गई. इसके बाद श्रीश चंद्र दीक्षित ने देवरहा बाबा की दी हुई ईंट को सिर पर रखकर देशभर में यात्रा की. अक्टूबर-नवंबर 1990 में अयोध्या में कारसेवा के दौरान उनको गिरफ्तार भी किया गया था. हालांकि गिरफ्तारी से पहले उन्होंने कारसेवकों को एक धार दे दी थी. बीजेपी ने श्रीश चंद्र दीक्षित को 1991 में वाराणसी सीट से टिकट दिया. काशी में पहली बार कमल खिलाने वाले नेता श्रीश चंद्र दीक्षित ही बने.

इंदिरा गांधी के सिक्योरिटी अफसर भी रहे थे

शिरीष चंद्र दीक्षित तेज तर्रार आईपीएस अधिकारी माने जाते थे. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सिक्योरिटी ऑफिसर भी रह चुके थे. उत्तर प्रदेश में पुलिस महानिदेशक पद स्वीकृत होने के बाद वह दूसरे पुलिस अधिकारी थे जिन्हें राज्य का डीजीपी बनाया गया. अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके लिए एक बार फिर पीएमओ से बुलावा आया था. वह गए भी, लेकिन उन्हें सुरक्षा चेक से गुजरने को कहा गया. तब उन्होंने तलाशी देने से इनकार कर दिया और अटल बिहारी वाजपेयी से बिना मिले ही वे लौट आए. शिरीष चंद्र दीक्षित का 8 अप्रैल 2014 को निधन हो गया.

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