भारत में प्रतिभाओं की नही, आत्म गौरव का अभाव :- संजय गिरि

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खड़गवां । वैदिक काल भारत का स्वर्णिम समय था। भारत प्रत्येक क्षेत्र में विश्व का सिरमौर रहा है। अनेक प्रकार के विघ्नों,बाह्य आक्रमणों व आंतरिक संघर्षों के बावजूद 18वी शताब्दी तक भारत आर्थिक,शैक्षणिक व आध्यात्मिक दृष्टि से विश्व का एक आदर्श राष्ट्र था।
उक्त बातें पतंजलि युवा भारत के राज्य सोशल मीडिया प्रभारी संजय गिरि नें एकल अभियान संच खड़गवां- पटना के वार्षिक सात दिवसीय आचार्य अभ्यास वर्ग में बतौर मुख्यातिथि बुधवार को तीसरे सत्र पर ” भारत का गौरवशाली अतीत” विषय पर आचार्यों के एक बौद्धिक कार्यक्रम में कही। इस अवसर पर श्री गिरि ने सर्वप्रथम माँ भारती की छायाचित्र पर दीप प्रज्वलित कर पुष्प अर्पित किए। श्री गिरि का बहन तुलसी ने तिलक कर व व्यवस्था प्रमुख दीपनारायण व वर्ग प्रभारी संतोष कुमार ने पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत किया।
आगे श्री गिरि ने कहा कि स्वयं टी. बी. मैकॉले ने भी ब्रिटिश संसद में 2 जनवरी 1835 को स्वीकार की और कहा- ” मैं भारत मे पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण सभी जगह घुमा, लेकिन पूरे भारत में मुझे एक भी भिखारी या चोर दिखाई नही दिया। भारत की समृद्धि व उच्च नैतिक मूल्यों को देखते हुए मुझे नही लगता कि हम कभी भी भारत पर विजय प्राप्त कर सकते है, जब तक कि हम भारत की रीढ़ की हड्डी आध्यात्मिक व सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था के स्थान पर यह स्थापित न कर लें कि विदेशी व अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था भारत की शिक्षा व्यवस्था से अधिक महान है। जिस देश के लोगों में इतिहास के प्रति गौरव व स्वाभिमान सुर पुरुषार्थ व भविष्य के प्रति आशा नही होती वह देश नष्ट हो जाता है, अंग्रेजों ने हमारे साथ यही किया। हम आज भी अपने स्वाभिमान व पहचान को मिटाने वाली इसी परम्परा के पोषक बने हुए है। आज भी हम अपनी इतिहास की पुस्तकों में गुलाम बनाने वाली शिक्षा पढ़ रहे है।
हम अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व सम्मान नही रखते, केवल विदेशियों के प्रशंसा ही हमे सुहाते है। विज्ञान की बात की जाती है तो हम आइन्सटीन व न्यूटन आदि को याद रखते है परन्तु विश्वामित्र व भास्कराचार्य जैसे महान वैज्ञानिकों को भूल जाते है।हम गणितज्ञों की चर्चा करते समय पायथागोरस जैसे विदेशी लोगों के नाम को इतिहास के पन्नों पर पढ़ते है पर महान गणितज्ञ आर्यभट्ट एवम श्रीधर आदि भारत के गौरव पुरुषों को विस्मृत कर देते है। हमने महान महर्षि चरक व सुश्रुत को भुला दिया जो शल्यचिकित्सा के पितामह थे। भारत जैसी प्रतिभाएं पूरे विश्व मे कही नही हैं। आज भी विश्व स्तर पर बड़े डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक,अर्थशास्त्री,चिंतक,विचारक,कवि,मनीषी, लेखक आदि भारत माता के गौरवशाली पुत्र ही है। देश में अभाव प्रतिभाओं का नही हैं। हमारे आत्मविश्वास, स्वाभिमान में कमी आयी है। आइये हम संकल्प लेकर पूरे आत्मविश्वास व स्वस्भिमान के साथ हर क्षेत्र में अग्रणी बनें और भारत माता का सम्मान बढ़ाएं।।इस दौरान कार्यक्रम में वर्गप्रभारी संतोष कुमार,वर्गाधिकारी दीपनारायण,मुख्य शिक्षक योगेश कुमार,सर्व व्यवस्था प्रमुख प्यारेलाल,अतिथि प्रशिक्षण प्रमुख सुकुल प्रसाद,महिला प्रशिक्षक बहन तुलसी, बहन आरती सहित काफी संख्या में आचार्य व बहनें उपस्थित रहीं ।

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