छत्तीसगढ़ का वो गांव जहां की चाहर दीवारियां लकड़ी के खूंटे की बनी हैं

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कोंडागांव
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में आज भी एक ऐसा गांव मौजूद है, जहां पर दीवारों को कम और लकड़ी के खूंटों को ज्यादा महत्व दिया जाता है. कोंडागांव (Kondagaon) जिले में एक ऐसा गांव है, जहां आज भी लकड़ी की चाहरदीवारी होती है.

घर हो या खेत या फिर सरकारी भवन इसके चारों ओर लकड़ी के खूंटे गाडकर बाउंड्रीवाल (Boundary wall) बनाई जाती है. शायद इसलिए गांव का नाम भी खुंटबेड़ा है. यानी की बाड़ी के चारों ओर लकड़ी का खूंटा.

माकडी ब्लाक के तमरावंड पंचायत में आने वाले गांव खूंटबेड़ा को आप तस्वीरों में देख सकते हैं. इस गांव में हर घर के चारों ओर चाहे वह घर सीमेंट से बना लेंटर वाला हो या फिर सरकारी बिल्डिंग या खेत हर जगह लकड़ी के खूंटे गाडकर बनाई गई बाउंड्रीवाल नजर आएगी.

गांव के निवासी संग्राम मरकाम ने बताया की इसी लकड़ी के खूंटे के कारण गांव का नाम खुंटबेड़ा रखा गया है. खुंटबेड़ा गांव घने जंगलों के बीच बसा है. समय के साथ गांव में भी बदलाव आया है पर गांव की बाउंड्रीवाल आज भी लकड़ी की बनी होती है. गाव के युवा महेंद्र सलाम अपने गांव की इस अनोखी बात को बड़े ही गर्व से बताते हैं. समय बदल गया पर आज भी हम अपनी पुरानी सभ्यता को नहीं भूले हैं.

खुंटबेड़ा के रहने वाले जयप्रकाश नेताम ने बताया कि जब गांव बसा उस समय लकड़ी के खूंटे गाडकर लोग घर बनाते थे. गांव में कुछ घर आज भी लकड़ी के खूंटे से बने हुये हैं तो कहीं पुराने जमाने के खंडहर भी दिखाई देते हैं. शोधकर्ता और क्षेत्र के जानकार हरिहर वैष्णव ने बताया की समय के साथ-साथ आज जब संसाधन बढ़ गए हैं इसके बाद भी ग्रामीण अपनी पुरानी सभ्यता को बचाए हुए हैं. यही सबसे बड़ी बात है.

एक शोधकर्ता हरिहर वैष्णव ने बताया कि बाउंड्रीवाल बनाने के लिए जंगल से लकड़ी काटी गई पर पर्यावरण को बनाये रखने के लिए ग्रामीणों ने पेड़ भी लगाये. संग्राम मरकाम ने कहा की हमने अपनी आवश्यकता को जंगल से पूरा किया पर उसे बचने के लिए पेड़ भी लगाए हैं.

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