छत्तीसगढ़ में जातिगत आरक्षण पर हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी

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बिलासपुर
छत्तीसगढ़ में जातिगत आरक्षण का दायरा बढ़ाए जाने पर हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि 58 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ कोर्ट में याचिका लंबित है। यह जानते हुए भी सरकार ने आरक्षण का दायरा फिर से बढ़ा दिया। कोर्ट ने इसे अवहेलना माना है। हाई कोर्ट ने आदेश में कहा कि वर्ष 2012 में सरकार ने ओबीसी आरक्षण नहीं बढ़ाया था। इन सात वर्ष में ऐसी कौन सी परिस्थिति बनी है कि सरकार को ओबीसी आरक्षण बढ़ाना पड़ा। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में सरकार को स्पष्ट स्र्प से अगाह भी किया है। कोर्ट ने कहा है कि उस समय (2012) अंतरिम स्टे नहीं दिए जाने को सरकार ने अपना अधिकार समझ लिया और नया अध्यादेश जारी कर दिया।

उल्लेखनीय है कि सरकार ने 2012 में राज्य में जातिगत आरक्षण में बदला किया था। इससे आरक्षण का दायरा बढ़कर 58 फीसद पहुंच गया था। इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। मामला अभी कोर्ट में है। इस बीच सरकार ने इस वर्ष 15 अगस्त को फिर आरक्षण में बदलाव किया। इससे जातिगत आरक्षण का दायरा बढ़कर 82 फीसद पहुंच गया है। इसमें आर्थिक आधार पर 10 फीसद आरक्षण भी शामिल है। सरकार के इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में करीब आधा दर्जन याचिका दाखिल की गई हैं। इन याचिकाओं पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने ओबीसी का आरक्षण बढ़ाए पर स्टे लगा दिया है।

सरकार की ओर से प्रदेश में शासकीय पद व इसमें आरक्षण की स्थिति का आंकड़ा पेश किया है। इसमें प्रदेश में क्लास वन, क्लास टू, क्लास थ्री व चतुर्थ श्रेणी के स्वीकृत शासकीय पद 88,208 होने की जानकारी दी गई। इसमें 9356 पद एसी, 29922 पद एसटी व 12170 पद ओबीसी के लिए आरक्षित है। इस प्रकार एससी, एसटी व ओबीसी वर्ग के लिए 51,448 पद हैं। कुल रिक्त पदों में 58 प्रतिशत पद एससी, एसटी व ओबीसी के लिए आरक्षित है।

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