कार्यकर्ताओ के बैसाखियों पर धुरंधर का दांव, सत्ता और संगठन के लिए नाक का सवाल बना विधानसभा चुनाव, मीडिया मैनेजमेंट बिगाड़ रहा जनमत

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भानु प्रताप साहू
बलौदाबाजार। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रदेश के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस बार 65 पार का नारा दिया है और चौथी बार सरकार बना कर एक रिकॉर्ड बनाने के फेर में है। वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस 15 साल हार का मुंह देख-देखकर इस बार अपनी वापसी को बेताब दिखाई दे रही है। ऐसे में जिले की चारो सीटें ऐसी हैं, जहां प्रदेश के साथ दोनों दलों के नेतृत्व की भी नजर बनी हुई है। लेकिन इन चारों सीटों में बलौदाबाजार सीट भाजपा के लिए सिर दर्द बना हुआ है क्योंकि 1993 के बाद से यहाँ अभी तक भाजपा ने दो बार ही परचम लहराया है तो वही कांग्रेस ने यहाँ भाजपा से हमेशा बढ़त ली है कुलमिलाकर यहाँ कल के शिक्षक को मैदान में उतार कर भाजपा ने फिर से दांव गलत खेल दिया है जिसका परिणाम भाजपा को नतीजों के बाद भुगतान पड़ेगा।
*नौकरी फिर उम्मीदवारी*
भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनाव में कई ऐसे नेताओं के पर काट दिये है जो अपने आपको स्टार प्रचारक समझते थे और इन्ही में से कुछ स्टार प्रचारक अब चुनाव में भीतरघात का काम कर रहे है जो निश्चित तौर पर पार्टी के लिए खाई का काम करेगा। बहरहाल 34 वर्ष की नौकरी में आरएसएस का कार्यकर्ता बन विभिन्न कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर नेता के रूप में उभरे टेसुलाल धुरंधर ने जुगाड़ से अपनी टिकट तो पक्की करा लिया। लेकिन टिकट मिलते ही पूरे भाजपा खेमे ने एक तरफा विरोध किया था। और टिकट मिलने के पश्चात स्वागत से लेकर भाजपा कार्यालय तक कोई कार्यकर्ता नही पहुँचा था यह किसी से छिपा नही है। लेकिन चाल, चरित्र और अनुशासन का दम्भ भरने वाली पार्टी के कार्यकर्ता वरिष्ठ नेता की समझाइश के बाद जैसे-तैसे वापसी तो किया लेकिन सूत्रों की माने तो अभी भी कुछ पार्टी के कार्यकर्ता अंडर ग्राउंड अन्य राष्ट्रीय पार्टी को अपना समर्थन दे रहे है।
*अंधा बांटे रेवड़ी की तर्ज पर मीडिया मैनेजमेंट*
कुछ घंटे के बाद द्वितीय चरण के होने वाले प्रदेश भर में चुनाव को लेकर जहाँ उम्मीदवार एड़ी चोटी का जोर लगा रहे है तो वही कुछ मीडिया मैनेजमेंट की जिम्मेदारी उठाने वाले नेता काफी सक्रिय हैं लेकिन उनकी कतिपय गतिविधियों के चलते असंतोष की स्थितियांं निर्मित होने लगी हैं जिसे लेकर यह चर्चा आम हो चली है कि भाजपा के मीडिया मैनेजमेंट की कमान संभालने वाले मीडिया प्रभारियों की करतूतों से पार्टी को करारी चोट की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है यहाँ मीडिया मैनेजमेंट को संभालने वाले नेता खुलेआम मनमानी करने पर उतारू है इन स्थानीय नेताओं द्वारा अंधा बांटे रेवड़ी चिन्ह-चिन्ह के दे की तर्ज पर चेहरा देखकर विभिन्न प्रचार माध्यमों के प्रतिनिधियों को रेवड़ी बांटकर असंतोष की स्थिति निर्मित कर दिया है जो निश्चित रूप से पार्टी के पक्ष में तैयार होने वाले जनमत के मार्ग में बाधा खड़ी कर सकता है। यही स्थिति भाजपा के स्थानीय नेताओं द्वारा मीडिया मैनेजमेंट के नाम पर फैलाए जा रहे असंतोष से काफी हद तक पार्टी प्रत्याशियों को नुकसान की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। यदि मीडिया कर्मियों के बीच भेदभाव की स्थिति उत्पन्न कर असंतुष्ट किया गया तो निश्चित रूप से पार्टी को कहीं न कहीं नुकसान की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है ऐसे हालात यह आवश्यक हो गया है पार्टी के वरिष्ठ नेतागण दिनों दिन बढ़ रहे असंतोष की स्थिति को नियंत्रित करने की पहल करें अन्यथा जन समर्थन पर विपरीत प्रभाव भुगतने के लिए तैयार रहना होगा।
*5.82 प्रतिशत की खाई कैसे पाटेगी भाजपा*
बलौदाबाजार विधानसभा की पिछले चुनाव पर गौर करें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जनक राम वर्मा को 76549 मत पाकर 44.82 प्रतिशत से विजवी रहे। वही इनके निकटम प्रतिद्वंद्वी रहे भारतीय जनता पार्टी से लक्ष्मी बघेल को कुल 66572 मिले थे जो 38.98 प्रतिशत वोट पाकर द्वितीय पायदान पर रही। यहाँ कांग्रेस और भाजपा के बीच 5.82 प्रतिशत का अंतर रहा जो इस बार भाजपा को पाटने में काफी मस्साकत करना पड़ेगा। कुलमिलाकर यहाँ भाजपा का ग्राफ कांग्रेस के आगे नही टिकी थी जिसमे भाजपा को 10000 के अंतर से हार मिली थी वही अहम बात यह है कि 34 वर्ष तक नौकरी में रहे धुरंधर को जनता का जनाधार कितना मिलता है यह तो परिणाम ही सुनिश्चित करेगा।
*आखिर जमीनी कार्यकर्ता क्यों नहीं*
जिला मुख्यालय की बलौदाबाजार विधानसभा सीट को लेकर जहां कांग्रेस ने अपने पत्ते पहली पारी में ही जनकराम के रूप में खोल दिये थे, वहीं भाजपा इस सीट को लेकर काफी चिंतन किया और टेसुलाल को पार्टी कार्यकर्ताओं के खुले विरोध के बाद भी टिकट दे दी गई और टेसुलाल चुनाव लडऩे के लिए तैयार भी हो गये। सोचनीय पहलू यह है कि स्थानीय कार्यकर्ता अगर खुलकर विरोध कर रहे थे तो क्या भितरघात नहीं करेंगे?, क्या टेसुलाल को यह नहीं सोचना चाहिए था कि कई वर्षों से पार्टी के लिए संघर्ष कर रहे कार्यकर्ताओ पर उनकी दावेदारी के बाद क्या गुजरेगी। खैर यह तो चुनाव है जहाँ भाई-भाई का नही होता है।
*बिलाईगढ़ में पार्टी की चिंता बढ़ी*
इसी क्रम में पहली सीट बिलाईगढ़ विधानसभा की है, जो संभाग की इकलौती अनुसूचित सीटें होने के कारण यहां से कई उम्मीदवार कांग्रेस और भाजपा से अपनी किस्मत आजमाने के लिए टिकट बंटवारे के पहले बड़े नेताओं की देहरी में डले हुए थे यहां तक की उन्होंने इस सीट के लिए लाखों रूपये प्रदेश की राजधानी से लेकर देश की राजधानी तक खर्च कर दिए। लेकिन टिकट बंटवारे के बाद फैला असंतुष्टि का माहौल ने पार्टी की चिंता बढ़ा दी है। और यहाँ भोजराम के बगावत ने भाजपा की रीढ़ की हड्डी तोड़ कर रख दी है। जो निश्चित तौर पर चुनाव में भाजपा को मुँह की खानी पड़ेगी।
*बलौदाबाजार की मौजूदा समीकरण*
बलौदाबाजार विधानसभा चुनाव में मौजूदा समीकरण जो दिखाई पड़ रहा है उसमे भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और जनता कांग्रेस जोगी से पिछड़ती नजर आ रही है यहाँ भाजपा सत्ता, संघटन और कार्यकर्ताओ के बदौलत कांग्रेस और जोगी कांग्रेस को टक्कर देने की बात कह रही है तो वही कांग्रेस अपने 5 वर्ष के कार्यकाल में क्षेत्र अंतर्गत किये कार्यो को लेकर जनता के समक्ष जा रही है इसके अलावा जनता कांग्रेस जोगी के उम्मीदवार प्रमोद शर्मा भी अपने सरकार बनते ही किसानों और जनता के लिए जारी घोषणा पत्र में उल्लेखीत सौगात को बता रही है जो उनकी दावेदारी को मजबूती दे रही है।

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