‘दारू जैसे जहर का बिकना आखिर बंद कराए कौन, हर ठेके पर यहां लिखा है यह ठेका सरकारी है’!खुर्शीद हैदर

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जोगी एक्सप्रेस 

ए.एन  अशरफी 

अंबिकापुर  अपनी सादगी और एक जुटता के लिए छत्तीसगढ़ से लगे दुसरे राज्यों में भी मशहूर है ,यहाँ की गंगा जमनी तहजीब के लोग कायल  है ,बीते दिनों नगर से सटे ग्राम तकिया में इस की मिशाल देखने को मिली जिसमे देश के मशहूर और मारूफ शायरों ने शिरकत की और मुशायरे में चार चाँद लगा दिए , तकिया में अखिल भारतीय सद्भावना मुशायरा में देश के विख्यात शायर मुनव्वर राणा को सुनने के लिए हजारो की तादात में भीड़  उमड़ पड़ी । मा की ममता  के साथ वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य और युवाओं को प्रेरित करती उनकी शायरी व गजलों ने सुबह  पांच बजे तक लोगो को सुनने के लिए विवस रखा । अपनी फनकारी में उस्तास्द राणा ने अपने ही अंदाज़  को बयां करते  हुए  जब शेर पढ़ा ‘बस तेरी मोहब्बत में चला आया हूं, वरना सबके बुलावे पर नहीं आता राणा’ की प्रस्तुति दी तो आयोजकों के साथ सरगुजा से उनके जुड़ाव पर जम कर तारीफ  मिली।

‘दुनियां तेरी रौनक से मैं अब उब रहा हूं, तू चांद मुझे कहती थी मैं अब डूब रहा हूं ! राणा 

ग्राम तकिया में हजरत  बाबा मुरादशाह रहमतुल्ला अलैह  व बाबा मोहब्बत शाह रहमतुल्ला अलैह   के सालाना उर्स के मौके पर बीते दिनों   आयोजित सद्भावना मुशायरा में देश के कोने कोने से आये मशहूर शयरो ने अपनी शायरी से लोगो का दिल जीत लिए ,कार्यक्रम में जनि मणि हस्तियों ने भी शिरकत की जिनमे कमिश्नर टी.सी. महावर, आई.जी. हिमांशु गुप्ता कलेक्टर भीम सिंह, पुलिस अधीक्षक आर.एस. नायक, डी.एफ.ओ. मो. शाहिद, अंजुमन कमेटी के सरपरस्त हाजी अब्दुल रशीद सिद्दीकी की गरिमामय उपस्थिति में मुशायरा की शुरूआत की गई। हजारों की भीड़ नामी गिरामी  शायर मुनव्वर राणा को सुनने के लिए बेताब थीं। रात्रि के दुसरे पहर  के बाद जब उन्होंने प्रस्तुति देना शुरू किया तो श्रोताओं की ओर से खुब वाहवाही मिली। पिछले 45 वर्षों से शायरी व गजल की दुनियां में परचम लहराने वाले मुनव्वर राणा ने मुशायरा में अपनी ढलती उम्र को लेकर- ‘दुनियां तेरी रौनक से मैं अब उब रहा हूं, तू चांद मुझे कहती थी मैं अब डूब रहा हूं’ की प्रस्तुति दी तो श्रोता भावविभोर हो उठे। अमीरी व गरीबी की बढ़ती खाई पर उनकी प्रस्तुति- ‘मुफलिसी हमसे कहती है मुनव्वर साहब, जेब खाली हो तो मेले में कभी नहीं जाना’ ने जन सामान्य को सोचने के लिए विवश कर दिया। सियासत व राजनीति पर भी उन्होंने प्रस्तुतियां दी। ‘एक आंसू भी हुकुमत के लिए खतरा है, तुमने देखा नहीं आंसुओं का समंदर होना’ के माध्यम से उन्होंने जनता के हित पर सरकारों को नसीहत दी। बचपन में किराना सामान लेने दुकान जाने के दौरान शक्कर चोरी करने की घटना का जिक्र कर बढ़ती उम्र में भी हो रही तकलीफों पर उन्होंने ‘पहले भी हथेली छोटी थी, आज भी यह छोटी है, पहले इसमें से शक्कर गिर जाती थी आज इससे दवा गिर जाती है’ की प्रस्तुति दी। मुशायरा में गुना के दीपक जैन, अनूपपुर के दीपक अग्रवाल, हरदोई के सलमान जफर, मुजफ्फर नगर के खुर्शीद हैदर, लखनउ के पपलूू लखनवी, फैजाबाद के शाहिद जमाल के अलावा डा. नदीम शाद, डॉ. नसीम निखत के अलावा संचालन कर रहे डॉ. नदीम फर्रूख ने भी शानदार प्रस्तुतियां दी। रात लगभग नौ बजे से शुरू हुआ मुशायरा सुबह  पांच बजे तक चलता रहा। हास्य व्यंग्य के साथ वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर शेरो, शायरी व गजलों ने श्रोताओं को बांधे रखा। इस दौरान वरिष्ठ पार्षद आलोक दुबे, अंजुमन कमेटी के सचिव व पूर्व पार्षद इरफान सिद्दीकी, पूर्व पार्षद रूबी सिद्दीकी, माधुरी दुबे, सलाउद्दीन सिद्दीकी गुड्डू, वरिष्ठ अधिवक्ता संजय अंबष्ट, सूरजपुर जिला पंचायत सदस्य पंकज तिवारी, सुरेंद्र सिंह ननका, एडिशनल एसपी आरके साहू, सीएसपी आरएन यादव, परवेज आलम, अफजाल अंसारी, अब्दुल लतीफ, वाहिद हुसैन राजू सहित अंजुमन कमेटी के पदाधिकारी, सदस्य, अधिकारी-कर्मचारी व हजारों की तादाद में विशाल जन समुदाय मौजूद रहा !

‘दारू जैसे जहर का बिकना आखिर बंद कराए कौन:खुर्शीद हैदर

इस मुशायरा में शायरों ने राजनीतिक दलों के साथ सरकारों की नीति व नियत पर भी जम कर  प्रहार किया। मुजफ्फर नगर के खुर्शीद हैदर ने शराबबंदी को लेकर- ‘दारू जैसे जहर का बिकना आखिर बंद कराए कौन, हर ठेके पर यहां लिखा है यह ठेका सरकारी है’ की प्रस्तुति देकर जनता को गुदगुदाने विवश कर दिया। ‘बेटा एक वक्त की रोटी नहीं देता, फिर भी मां बोलती है मेरा लाल ही अच्छा है’ की प्रस्तुति के माध्यम से उन्होंने बुजुर्गों की सेवा से दूर भागते बेटों पर प्रहार किया।

‘मुश्किल कोई आन पड़ी तो घबराने से क्या होगा, जीने की तरकीब निकालो मर जाने से क्या होगा।

शायर डॉ. नदीम शाद ने युवाओं की हौसला आफजाई करती शायरी व गजल की प्रस्तुति दी। उन्होंने युवओं को प्रेरित करते हुए कहा कि ‘मुश्किल कोई आन पड़ी तो घबराने से क्या होगा, जीने की तरकीब निकालो मर जाने से क्या होगा। मेरे चिरागों हाँथ  मिलाओ, सूरज बनकर बरस पड़ो। आंधी आती है तो आए घबराने से क्या होगा’ की प्रस्तुति देकर युवाओं को हर चुनौती व समस्याओं का डटकर मुकाबला करने आग्रह  किया।

‘और कुछ रोज यूं ही बोझ उठा लो बेटे, चल दिए हम तो मयस्सर नहीं होने वाले’:राणा 

बुढापे पर बेटों के सहारा को लेकर मुनव्वर राणा ने पुराने घटना को याद कर यह बताने का प्रयास किया कि बच्चों को संस्कारित होकर बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए। उन्होंने बेटों को समर्पित- ‘और कुछ रोज यूं ही बोझ उठा लो बेटे, चल दिए हम तो मयस्सर नहीं होने वाले’ की भावपूर्ण प्रस्तुति देकर श्रोताओं को सोचने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने मां पर भी एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां दी। पपलू लखनवी ने हास्य व्यंग्य पर आधारित प्रस्तुतियां देकर सबको खुब हंसाया।

 

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