दलित मतों के लिए देवेगौड़ा बहन जी के साथ

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 बेंगलुरु। कर्नाटक की छह करोड़ से अधिक आबादी में 17 फीसद दलित मत चुनाव में बड़ी भूमिका निभाते हैं। मतदाताओं के इस वर्ग को रिझाने के लिए जहां कांग्रेस और भाजपा विशेष प्रयास करते दिख रहे हैं, वहीं जनता दल(एस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एचडी देवेगौड़ा ने बसपा का दामन थाम लिया है।
कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों में से 36 अनुसूचित जाति एवं 15 अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। इन आरक्षित सीटों सहित राज्य की सभी सीटों पर दलित मतदाताओं के लिए इस बार ‘इत जाऊं से लला, कित जाऊं से लला’ जैसी अनिश्चय की स्थिति बनी हुई है। क्योंकि उन्हें रिझाने के लिए सभी दल इस चुनाव में किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद से ही जहां कांग्रेस इस वर्ग की हितैषी बनने की कोशिश कर रही है, वहीं भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येद्दयुरप्पा अगस्त-सितंबर 2017 से ही दलितों के घर भोजन करने एवं उन्हें अपने घर भोजन पर बुलाने की नीति अपनाकर दलित मतदाताओं के बीच पैठ बनाने में लगे हैं। भाजपा कार्यकर्ता वर्तमान केंद्र सरकार की कमजोर वर्गों के लिए बनाई गई नीतियों का घर-घर प्रचार करके भी यह बताने की चेष्टा कर रहे हैं कि इन नीतियों का सर्वाधिक लाभ दलितों को ही मिलने वाला है। 2013 में अपनी पार्टी ‘गरीब श्रमिक किसान कांग्रेस’ बनाकर लड़ने वाले दलित नेता श्रीरामुलू के भाजपा में आने से भी भाजपा की ताकत बढ़ी हुई दिख रही है। 2013 में श्रीरामुलू की पार्टी ने करीब 2.7 फीसद वोट लेकर चार सीटों पर जीत हासिल की थी।
ऐसी स्थिति में इस बार जद(एस) नेता एचडी देवेगौड़ा को बसपा नेत्री मायावती से हाथ मिलाना हितकर लगा। बसपा-जद(एस) गठजोड़ के तहत बसपा इस बार कर्नाटक की 18 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए सूबे की 201 सीटों पर जद(एस) को समर्थन दे रही है। दोनों दलों के चुनिंदा उम्मीदवारों के क्षेत्रों में देवेगौड़ा और मायावती की संयुक्त रैलियां भी हो रही हैं। मायावती के लिए यह समझौता जहां कुछ नहीं से कुछ तो की ओर बढ़ने के साथ अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाने का प्रयास है तो देवेगौड़ा मायावती के सहारे दलित मतों में सेंध लगाकर जद(एस) को कम से कम इस स्थिति में लाना चाहते हैं कि सरकार बनते समय वह किंगमेकर की भूमिका में तो आ ही सकें। हालांकि मायावती का दबाव साफ है कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में इस गठजोड़ को भाजपा से दूर रखा जाए। इस दबाव के कारण त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति आने पर देवेगौड़ा पिता-पुत्र में कलह हो सकती है। क्योंकि देवेगौड़ा के पुत्र एवं पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी कांग्रेस के वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्दरमैया को फूटी आंखों देखना नहीं चाहते।
एक जानकारी के अनुसार, कर्नाटक में दलित वर्ग के अंदर 101 जातियां आती हैं। ये सभी जातियां मुख्यत: पांच बड़े वर्गों में विभाजित हैं। पहला वर्ग चलवाडीस कहलाता है। इन्हें अछूत नहीं समझा जाता है। दूसरा वर्ग मडिगास का है, जिन्हें अछूत समझा जाता रहा है। इनके अतिरिक्त बोविस, लंबानिस एवं 97 अन्य दलित समुदाय हैं। माना जाता है कि इंदिरा गांधी के समय से ही चलवाडीस कांग्रेस के साथ रहे हैं। जबकि उन्हें कांग्रेस के साथ जाते देख मडिगास ने तब के जनता पार्टी नेता रामकृष्ण हेगड़े का साथ देना शुरू किया। हेगड़े के बाद यही वर्ग 2000 के बाद से भाजपा के साथ आ चुका है। इसके अलावा दलितों के बीच काम करने वाले राज्य में करीब 1900 संगठन हैं। जिन राजनीतिक दलों की जमीनी पकड़ मजबूत होती है, वे इन बिखरे हुए राजनीतिक दलों तक अपनी पहुंच बनाकर इनसे जुड़े मतदाताओं तक आसानी से पहुंच जाते हैं। वर्तमान स्थिति में ‘वन बूथ-25 यूथ’ योजना के तहत भाजपा यह पहुंच मजबूत करने में लगी है। वहीं, कांग्रेस के वर्तमान मुख्यमंत्री एस. सिद्दरमैया भी अपने गैरराजनीतिक संगठन ‘अहिंद’ के जरिये दलितों को अपना बनाने में लगे हैं। दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों को अपने साथ जोड़ने के लिए सिद्दरमैया ने यह गैरराजनीतिक संगठन करीब डेढ़ दशक पहले बनाया था।

साभारः जागरण .कॉम

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