बांधवगढ़ विधानसभा में
लगातार 20 वर्षों से भाजपा के एक ही परिवार का कब्जा

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उमरिया-मध्यप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बांधवगढ़ विधानसभा की सियासी बिसात पर अपने पासे फेंकने के लिए सभी दल तैयार हैं। उमरिया जिले के बांधवगढ़ विधानसभा में संगठनात्मक रूप से सियासी सरगर्मियां तेजी पकड़ रही हैं। बांधवगढ़ विधानसभा पूर्व में उमरिया विधानसभा के नाम से जानी जाती रही है, परन्तु वर्ष 2008 के परिसीमन में बांधवगढ़ विधानसभा जनजाति आरक्षित हो गई और इसका विधानसभा क्रमांक 89 हो गया। भौगोलिक दृष्टि से परिसीमन के बाद कई क्षेत्र जोड़े गए और कई क्षेत्रों को जिले की दूसरी मानपुर विधानसभा में हस्तांतरित कर दिया गया। परिसीमन के बाद आरक्षित सीट होने की वजह झंडा बुलंद कर रखा है। बांधवगढ़ विधानसभा में क्षेत्रीय स्तर पर जनजाति वर्ग के नेता सक्रिय हुए और इनकी राजनीतिक पृष्टभूमि भी मजबूत हुई कि भाजपा ने परिसीमन से पूर्व ही वर्ष 2003 में भविष्य के राजनीतिक बदलाव को भांप लिया उमरिया अनारक्षित सीट से जनजाति नेता ज्ञान सिंहको उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा था। इस चुनाव में ज्ञान सिंह ने कांग्रेस के कद्दावर नेता अजय सिंह को शिकस्त देकर राजनीतिक अखाड़े में जीत दर्ज की थी। इस सीट पर 2003 के बाद हुए चारों विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की।
विधानसभा के उपचुनाव में ज्ञान सिंह के पुत्र शिवनारायण सिंह भाजपा से निर्वाचित हुए इसके बाद 2018 में भी विधानसभा के आम चुनाव में शिवनारायण सिंह जीत दर्ज करते हुए विधायक बने। कुल मिलाकर परिसीमन के बाद उमरिया से बांधवगढ विधानसभा में तब्दील हुई आरक्षित इस सीट पर फिलहाल वर्ष 2003 के चुनाव के बाद से ही बीते 20 वर्षों में भाजपा ने मजबूती से जीत का की वजह से उन्हें पराजय मिली।हालांकि: परिसीमन के बाद दूसरा जनजाति समाज भी विधानसभा चुनाव मैदान में कूदा है, परन्तु जातीय समीकरणगोड जाति का जनाधार ज्यादा मजबूत है किस विधानसभा क्षेत्र में बैगा एवं कोल जनजाति के लोग भी बहुतायत में है लेकिन उनकी संख्या गोंड जनजाति से कम है।बांधवगढ़ विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक परिदृश्य चाहे जो भी रहा हो परंतु इस क्षेत्र में चुनावी लड़कों के लिए चुनौतियां भी कम नहीं है। स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली जैसी मूलभूत आवश्यकताओं पर सरकार ने काम तो किया अलावा कोल एवम बैगा जनजाति भी है, पर गोड है पर क्षेत्र के विकास के नाम पर यह नाकाफी है। बांधवगढ़ विधानसभा में स्वास्थ्य सुविधाओं का भी टोटा बना हुआ है।जनसंख्या के आधार पर बांधवगढ़ विधानसभा में जनजाति समुदाय 65 फीसदी से अधिक निवासरत है। उमरिया विधानसभा का इतिहास राजनीतिक महकमे में काफी महत्वपूर्ण है 56 वर्ष पहले वर्ष 1967 में उमरिया राजनीतिक घराने का बहुचर्चित चेहरा रणविजय प्रताप सिंह (बाबू साहब पहली बार कांग्रेस के टिकट से चुनावी मैदान पर उतरे थे और जीत दर्ज की थी. परन्तु चुरहट से अपने प्रतिद्वंदी चन्द्र प्रताप तिवारी से पराजित होने के बाद कुवर अर्जुन सिंह ने रणविजय प्रताप सिंह (बाबू साहब) से उमरिया सीट से लड़ने का आग्रह किया था, जिसके बाद रणविजय सिंह बाबू साहब ने जनमत संग्रह के आधार पर सीट खाली की और काग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह इस सीट से वर्ष 1968 में विजयी हुए। इसके अलावा राजनीतिक गलियारे में इस चर्चा ने भी जोर पकड़ा था कि बाद में अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह राहुल भी इस सीट से किस्मत आजमाना कह रहे थे, पर काग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इसकी सहमति नहीं दी थी। 1967 के बाद 1972 और 1985 में रणविजय प्रताप सिंह (बाबू साहब) पुनः विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी हुए और जीत हासिल की। रणविजय प्रताप सिंह अपनी साफगोई, ईमानदारी और आम लोगों के प्रति सहजता के रूप में जाने जाते रहे हैं। वर्ष 2016 में लोकसभा के उपचुनाव में बांधवगढ़ विधानसभा क्षेत्र के विधायक ज्ञान सिंह को भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी बनाया और वह विजय भी हुए लोकसभा उपचुनाव में बांधवगढ़ विधानसभा खाली होने के उपरांत उनके पुत्र शिवनारायण सिंह को भारतीय जनता पार्टी से टिकट प्रदान की गई और भारतीय जनता पार्टी से विधायक निर्वाचित हुए उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी श्रीमती सावित्री सिंह को पराजित किया।
पिता तीन बार पुत्र दो बार रहे विधायक
विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी दोनों ही दल से पिता एवं पुत्र विधायक रहे। कांग्रेस पार्टी से स्वर्गीय रणविजय प्रताप सिंह तीन बार विधायक रहे तो उनके पुत्र नरेंद्र प्रताप सिंह एवं अजय सिंह एक-एक बार विधायक रहे। सभी अनारक्षित सीट पर विधायक रहे। वहीं भारतीय जनता पार्टी से भी पिता एवं पुत्र विधायक रहे जिसमें ज्ञान सिंह तीन बार तो उनके पुत्र शिवनारायण सिंह दो बार विधायक रहे जिसमें पहली बार वे उपचुनाव में विधायक बने तो दूसरी बात 2018 के विधानसभा आम चुनाव में।
घटता जा रहा जीत का अंतर
भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी उमरिया जिले की बांधवगढ़ विधानसभा सीट से लगातार 20 वर्षों से निर्वाचित होते आ रहे हैं और उनका कब्जा इस विधानसभा क्षेत्र में बना हुआ है लेकिन भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी का जीत का अंतर कम होते जा रहा है। स्थिति तो यह रही की वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में बांधवगढ़ विधानसभा क्षेत्र से शिवनारायण सिंह को भारतीय जनता पार्टी ने प्रत्याशी बनाया और कांग्रेस पार्टी ने डॉ ध्यान सिंह को प्रत्याशी बनाया। 2018 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी शिवनारायण सिंह ने मात्र 3900 मतों से कांग्रेस प्रत्याशी ध्यान सिंह को पराजित किया।
एक ही परिवार को मिल रही है टिकट
उमरिया जिले की इस विधानसभा सीट से वर्ष 2003 से अभी तक एक ही परिवार को भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी से टिकट दिया है। पार्टी के ही अंदर खानों में परिवारवाद का विरोध तो होता रहा है लेकिन परिवारवाद का विरोध बाहर नहीं आ पा रहा है। जबकि इस विधानसभा सीट से पार्टी की सेवा करने वाले संगठन के ही अन्य नेता एवं नेत्रियां टिकट भी मांग रही हैं। अभी तक शहडोल संभाग से भारतीय जनता पार्टी ने दो विधानसभा क्षेत्र में टिकट की घोषणा की है जिसमें अभी तक सिर्फ पुरुष को ही टिकट दिया गया है। इस विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक किसी महिला को टिकट नहीं दिया गया है। इस विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा की अध्यक्ष श्रीमती कुसुम सिंह भी टिकट की प्रबल दावेदार हैं जो की पूर्व में जनपद पंचायत करकेली की अध्यक्ष रह चुकी है और कई वर्षों से पार्टी से जुड़ी हुई है।

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