बारिश से बचने के लिए आमजन कर रहे घरों की मरम्मत का कार्य

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अर्जुनी – ग्रामीण अंचल में बरसात का मौसम जैसे-जैसे
नजदीक आता जा रहा है. गांव में 4 महीने पानी से बचने के लिए घरों के मरम्मत कार्य में ग्रामीण राहुल साहू सोनू वर्मा लग गये हैं गांव में छत के बजाय कवेलू की छत तैयार की जाती है. यह मिट्टी से बना होता है. इन्हें भट्टी में पकाकर मजबूत किया जाता है पश्चात
लकड़ियो से बना बल्ली के सहारे इन्हें रखा जाता है. इससे गर्मी एवं बरसात दोनों से निजात मिलती हैं. वर्तमान में इसकी मरम्मत का काम तेजी से चल रहा है. इस कार्य में लगे लोग 300 से लेकर 400 रुपये तक की रोजी कमा रहे हैं. दूसरी ओर पॉलीथिन की डिमांड भी बढ़ गई है.अधिकतर लोग अपने सामान को सुरक्षित रखने के लिए पॉलीथिन का उपयोग करते हैं. इनकी कीमत बढ़ी हुई है. बरसात पूर्व दुकानदार भी बरसाती कपड़े छाता रेनकोट होलसेल दुकानों से मंगा कर स्टॉक कर रहे हैं. ग्रामीणों राहुल साहू सोनू वर्मा का कहना है कि गत 2 साल से प्रधानमंत्री आवास योजना बंद हैं. नई स्वीकृति नहीं
मिल रही है और जो पहले से स्वीकृति मिली हुई है. निर्माण कार्य प्रारंभ कर चुके हैं. उसका भुगतान
अब तक रुका हुआ है. इस वजह से जिनके कारण पुराने खपरैल वाले घरों में रहने के लिए मजबूर है.
प्रधानमंत्री आवास नहीं आने के कारण पुराने घरों में उन्हें टपरकर बरसात के दिन काटने के लिए जुगाड़ में लगे हुए हैं. खपरैल बनाने का धंधा लगभग बंद कई साल पहले ग्राम पौसरी करमदा अर्जुनी रवान टोनाटार गांव में खपरैल से बड़ी संख्या में लोगों
कुम्हार पाड़े लोग डेरा डाले रहते थे और परिवार के साथ में मिलकर खपरैल बनाने का काम करते थे. आजकल खपरैल का डिमांड कम हो गया है इसे धुप मे सुखाते थे. फिर भट्टी में पकाकर बेचते थे. परंतु अब खपरैल बनाने का कार्य लगभग बंद सा हो गया है. स्थानीय कुम्हार यदा-कदा ही तैयार करते हैं. एक
तरह से खपरैल निर्माण का धंधा बंद सा हो गया है, जो लोग वतर्मान में घर बना रहे हैं, वे सीमेंट का
पक्का छत ढ़ाल रहे हैं. इनके घरों में निकाल कर रखे खपरैल को खरीदकर गरीब लोग अपने घरों में लगा रहे हैं. अर्थात पुराने खपरैल के ही सौदागर घर छाने का काम कर रहे है

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