विश्व अर्थ दिवस के अवसर पर उपराष्ट्रपति नायडू का संदेश
नई दिल्ली : हम विश्व अर्थ दिवस की 50वीं सालगिरह ऐसे समय मना रहे हैं जबकि सारा विश्व कोविड 19 महामारी के कारण अभूतपूर्व स्वास्थ्य आपदा से ग्रस्त है। इसने वैश्विक पर्यावरण के विषय में भी कुछ चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं। विश्व भर में पूर्ण बंदी ने विश्व को थाम सा दिया है, प्रदूषण के स्तरों में कमी आई है और वायु स्वच्छ हुई है, इसने हमको आभास दिलाया है कि मानव ने किस हद तक पर्यावरणीय संतुलन को हानि पहुंचाई है।
समय आ गया है कि हम सभी नागरिक, पृथ्वी को एक स्वच्छ और हरे भरे ग्रह के रूप में विकसित करने के लिए प्रयास करें। पर्यावरण संरक्षण हम सबका पावन नागरिक कर्तव्य है। हम प्रकृति के संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दें, अपनी विकास की अवधारणा पर पुनर्विचार करें, अपनी उपभोक्तावादी जीवन शैली को बदलें।
आज विश्व अर्थ दिवस पर मैं नागरिकों से पर्यावरण और प्रकृति के संरक्षण का सक्रिय सजग प्रहरी बनने का आह्वान करता हूं। इस ग्रह तथा इस पर रहने वाले मानव और अन्य जीव जंतुओं के बीच एक सौहार्दपूर्ण सह अस्तित्व स्थापित करें।
विश्व अर्थ दिवस 2020 का विषय क्लाइमेट एक्शन है, हमें अपनी पिछली गलतियों से सीखना चाहिए तथा सह अस्तित्व के लिए मानव और प्रकृति के बीच परस्पर निर्भरता को समझना चाहिए। आज हम परस्पर निर्भरता वाले विश्व में रह रहे हैं, हम विकास और आधुनिकीकरण का पुराना ढर्रा नहीं अपनाए रह सकते क्योंकि हर कदम का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है। यहां यह कहना समीचीन ही होगा कि हमारी प्राचीन औषधीय पद्धति, आयुर्वेद में प्रकृति के पांच अवयवों – पंच महाभूत – पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश का संदर्भ आता है तथा सूक्ष्म एवम् बाहरी स्थूल स्तरों पर इन पंच तत्वों में परस्पर संतुलन अभीष्ट माना गया है। विभिन्न क्षेत्रों के लिए पर्यावरण सम्मत नीतियां बना कर इस ग्रह को स्थायित्व प्रदान करना – भविष्य के लिए यही श्रेयस्कर मार्ग है।
यूएनडीपी के अनुसार आज ग्रीन हाउस गैसों के स्तर में, 1990 की तुलना में 50% से भी अधिक वृद्धि हुई है। यूएनडीपी ने यह भी कहा है कि यदि पर्यावरण संरक्षण की दिशा साहसी कदम उठाए जाएं तो 2030 तक 26 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर का लाभ अर्जित कर सकते हैं। यदि अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र पर ध्यान दें तो 2030 तक सिर्फ ऊर्जा के क्षेत्र में ही 18 मिलियन रोज़गार के नए अवसर पैदा कर सकते हैं।
आज इस महामारी के परिपेक्ष्य में जब हम अपने जीवन में अभूतपूर्व व्यवधान का अनुभव कर रहे हैं, हम इस चेतावनी को समझें, उसका संज्ञान लें कि किस प्रकार हमें अपने विकास के मॉडल पर पुनर्विचार करना है। अपनी आर्थिक और विकास की अवधारणाओं का पुनरावलोकन करें, नई अवधारणाएं गढ़ें। अतीत और वर्तमान की कठिनाइयों से सीख कर, भविष्य के लिए एक नया मार्ग खोजें जो पर्यावरण सम्मत हो।
बंद कारखाने और उद्योग, निलंबित उड़ानें, सड़कों पर कम वाहनों से प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय कमी आई है। अनुमान के अनुसार सिर्फ वायु प्रदूषण से ही विश्व भर में हर वर्ष 7 मिलियन जानें जाती हैं। इसलिए समय की मांग है कि अक्षय ऊर्जा, ग्रीन बिल्डिंग, प्रदूषण मुक्त स्वच्छ टेक्नोलॉजी तथा इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ बढ़ें।
बंदी के बाद एक वाक्य अक्सर सुनाई देता है ” पृथ्वी स्वयं अपने घावों का उपचार कर रही है “। गंगा से कावेरी तक नदियों में प्रदूषण स्तर में उल्लेखनीय कमी हुई है। विशेषकर, कुछ स्थानों पर तो गंगा के पानी में इतनी निर्मलता आ गई है कि जो पानी स्नान के लिए भी अनुकूल नहीं था वहां गंगा का पानी पीने लायक हो गया है।
स्थानीय स्तर पर समुदायों को वृक्षारोपण को बड़े पैमाने पर अपनाना चाहिए, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए reduce, reuse recycle – के मंत्र को जीवन में अपनाया जाना चाहिए। एक समाज के रूप में हम सबको सम्मिलित रूप से प्रकृति सम्मत जीवन शैली की ओर अग्रसर होना चाहिए। एक बेहतर भविष्य के लिए प्रकृति और संस्कृति का संरक्षण अनिवार्य है।