कोविड-19 आपदा को चुनौती नहीं अवसर के रूप में लिया जाए, गांव बन जाएगा तीर्थ : पद्मश्री अशोक भगत
लेखक पद्मश्री अशोक भगत, सचिव विकास भारती बिशुनपुर, झारखण्ड
रांची। ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं का कोविड-19 महामारी के चलते शहर से पुन: वापस गांव लौटना वैसे तो अच्छा नहीं है लेकिन इसे भविष्य की संभावना के रूप में भी देखा जाना चाहिए। नि:संदेह हमारी सरकारों के लिए यह चुनौती है लेकिन हमलोग प्रयास करें तो इसे अवसर के रूप में भी बदल सकते हैं। इसे रिवर्स माइग्रेशन कह सकते हैं। दुनिया में इस प्रकार के कई उदाहरण है लेकिन जिस देश ने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया वह देश आज दुनिया के प्रभावशाली देशों में गीना जाता है और जिन देशों ने इसको लेकर कोई योजना नहीं बनाई वहां एक के बाद एक, कई समस्या खड़ी हो रही है।
सरकार चाहे तो गांव को आकर्षण का केंद्र बना सकती है। कोविड 19 आपदा के कारण गांव से पलायन कर गए युवा फिर से गांव आ रहे हैं। यानी पुन: पलायन कर अपने गांव लौट रहे हैं। इनकी संख्या बहुत बड़ी है। जो युवक लौट रहे हैं उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती रोजगार की है। वे अपने गांव में ही अपना धंधा (व्यवसाय), उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के उचित प्रबंधन एवं दूरदर्शिता के साथ कर आत्म स्वावलंबी बन सकते हैं और अपने जैसे युवकों को रोजगार भी उपलब्ध करा सकते हैं। इस बाबत यह आवश्यक है कि पहले शहर से पलायन कर लौटे युवाओं का आंकड़ा तैयार किया जाए, साथ ही यह भी देखा जाए कि लौटे युवा किन-किन क्षेत्रों में कार्यरत थे। यानी उनके पेशे का वर्गिकरण किया जाए। युवाओं के इच्छा, क्षेत्र एवं उनमें कौशल निपुणता की पहचान बारीकी से की जाए, तदनुसार अपने राज्य में कार्य विशेष क्षेत्र की पहचान कर युवाओं को प्राथमिकता के तौर पर रोजगार मुहैया कराया जाए। इस प्रक्रिया से उनके प्रतिभा एवं कौशल का उपयोग हो सकेगा एवं राज्य अपने क्षेत्र के युवाओं को कुशलता से रोजगार मुहैया कराने में कामयाब होगा।
शहरी क्षेत्र में रोजगार हेतु जाने वाले ज्यादा युवा ग्रामीण परिवेश के होते हैं। यह भी सत्य है कि झारखंड के जो युवा बाहर गैर कृषि कार्य में अपना भविष्य तलाश रहे हैं, अधिकांश के पास जमीन है, पर सभी छोटे और मझोले जोत से आते हैं। झारखंड की खेती वर्ष पर आधारित है। यहां की खेती किसी निश्चित आय का जरिया नहीं बन पा रही है। कोविड-19 के कारण जो विकट समस्या आई है, उससे निपटने के लिए अल्पावधि एवं दीर्घावधि योजना कृषि एवं गैर कृषि क्षेत्र में करने की जरूरत है, ताकि आए हुए युवाओं को खेती-बारी से जोड़ा जा सके। खेती उनके लिए रुचिकर, स्वरोजगारोन्मुखी एवं टिकाऊ रूप से सामने आवे, ताकि युवा इस क्षेत्र में आकर्षित हो सके एवं गांव में रुक सके। देश के कई राज्य इस दिशा में युक्तिपूर्वक कार्य करना प्रारंभ कर दिए हैं, जिसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। महात्मा गांधी ने भी कहा है कि आत्मनिर्भर बनने के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विकसित करना होगा, तभी हम ग्रामीण युवाओं को रोजगार देने में सक्षम हो पाएंगे।
अध्ययन और चिंतन से जो बातें सामने आयी है उसके आधार पर ऐसा कहा जा सकता है कि कोविड-19 के आलोक में कृषि आधारित आयामों को प्रमुखता से और तत्काल लेने की आवश्यकता है। कुछ सुझाव है, जिसके आधार पर गांव को आकर्षण का केन्द्र बनाया जा सकता है। मनरेगा योजना के अंतर्गत खेती एवं उसपर आधारित गतिविधियों में लगे किसानों को रोजगार समझा जाए, उसे दैनिक मजदूरी देकर आय सुनिश्चित की जाए। गरमा फसल एवं लगने वाली खरीफ फसल की सुनिश्चित आच्छादन हेतु क्षेत्रवार बीज, उर्वरक एवं खरपतवारनाशक दवा की उपलब्धता उनके घर पर जाकर कराई जाए या डीबीटी के माध्यम से की जाए। फसल क्षेत्र विशेष की पहचान कर कैश क्रॉप, जैसे-मूंगफली, सोयाबीन एवं मसालों की खेती को बढ़ावा दिया जाए। मौसम के बदलते मिजाज को देखते हुए कम पानी एवं अवधि वाले फसलों, जैसे- मंडुवा (रागी), मक्का, तिल, सरगुजा के साथ-साथ अंतरवर्ती खेती को बढ़ावा दिया जाए। वर्षा जल संचयन हेतु छोटे-छोटे तालाबों के साथ-साथ बड़े-बड़े तालाबों का भी निर्माण गांव में किए जाएं।
इसके अलावा सूक्षम सिंचाई पद्धति को अंगीकार कराने हेतु जिले के संबंधित कृषि विज्ञान केंद्रों के द्वारा पहले प्रशिक्षित कराकर ही योजना के अंतर्गत किसानों को सूक्ष्म सुविधा दी जाए। सूक्ष्म सिंचाई पद्धति को आवश्यक बनाया जाए एवं इस क्षेत्र में युवाओं में कौशल विकसित किया जाए। कृषि के साथ-साथ पशुधन क्षेत्र को भी बढ़ावा दिया जाए। खुला चारागाही पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाया जाए, जिसके लिए पहले स्टॉल फीडिंग के लिए किसानों को प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराई जाए। इससे संबंधित मशीन भी युवाओं को उपलब्ध करायी जाए। व्यावसयिक सब्जी की खेती को प्रोत्साहन मिले। किसानों को त्रिपुरा मॉडल पर उत्पाद को नुकसान होने से बचाव के उपायों को विकसित किया जाऐ मसलन जीरो एनर्जी कोल्ड चैम्बर में भण्डारण की व्यवस्था की जाए। समेकित कृषि प्रणाली को बढ़ावा देने के साथ-साथ फैमिली फार्मिंग सिस्टम को बढ़ावा दिया जाए। पंचायत स्तर पर पशुधन को बचाने की व्यवस्था की जाए। बकरी, सूअर एवं मत्स्य पालन के साथ-साथ डेयरी को बढ़ावा दिया जाए, ताकि युवा स्वरोजगारी बन सकें। क्षेत्र विशेष में होने वाले फसल उत्पाद में मूल्य संवर्धन, खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा दे कर सरकार युवकों को गांव स्तर पर रोकने में कामयाब हो कसती है। खाद्य प्रसंस्करण एवं स्व-स्थान उत्पादन प्रणाली आधारित को प्राथमिकता दी जाए। फसल उत्पादन को खरीदने के लिए सरकार तत्परता दिखाए और फसल खरीद की गारंटी दे। उत्पाद खरीदने हेतु ग्राम स्तर पर कमेटी का गठन किया जाए। दैनिक आधार पर प्रिंट मीडिया के द्वारा आम जनों को जानकारी देने की व्यवस्था बनाई जाए, जिससे किसानों एवं ग्रामीणों में प्रतिस्पर्धा का भाव जागृत हो सके। लघु एवं कुटीर उद्योगों के प्रति जागरूकता एवं आकर्षण बढ़ाया जाए। क्षेत्र विशेष में उपलब्ध संसाधन एवं अनुकूल जलवायु को देखते हुए लाह, सिल्क, मधुमक्खी पालन के साथ बांस की खेती को बढ़ावा दिया जाए। बांस में मूल्य संवर्धन के स्कोप को देखते हुए ट्राईफेड के सहयोग से युवाओं में कौशल विकास किया जाए, खासकर बंबू क्राफ्ट, अगरबत्ती एवं माचिस बॉक्से के क्षेत्र में ऐसा किया जा सकता है। बांस का अवैध ट्रेडिंग रोका जाए एवं गांव में या पंचायत स्तर पर मूल्य संवर्धन के उपायों पर विचार किया जाए। खेती आधारित उद्योग को बढ़ावा दिया जाए। जैविक चावल (स्थानीय सुगंधित धान) एवं सब्जी की खेती को बढ़ावा एवं सुनिश्चित बाजार उपलब्ध कराया जाए। जिस पैधे में औषधीय गुण हैं उस खेती को बढ़ावा दिया जाए। व्यव्सायिक किसानों का डेटाबेस जिला स्तर पर बनाया जाए। कौशल विकास के साथ-साथ एक्सटेंशन सिस्टम को सुदृढ़ किया जाए।
शर्तीया तौर पर कहा जा सकता है कि यह केवल सरकार के प्रयासों से ही संभव नहीं हो पाएगा लेकिन इसके लिए सरकार को ही पहल करनी होगी। इसके लिए ग्रामीण स्तर तक जिन संगठनों की पहुंच है और जिन्हें इस क्षेत्र में काम करने का अनुभव प्राप्त है उसे इस काम में जोड़ा जा सकता है। झारखंड जैसे प्रदेश में बहुस से गैर सरकारी संगठन काम करते हैं। सरकार उनसे सहयोग ले सकती है और अपने मानव संसाधन का संतुलित उपयोग कर गांव को तीर्थ बना सकती है। हां, इसके लिए पहल करने की जरूरत है। इच्छा शक्ति तो जनता में होती ही है। जो व्यक्ति पैदल हजार-दो हजार की दूर तय कर अपनी मातृभूमि पर लौट सकता है वह अपने लिए रोजगार भी अपने गांव में ही पैदा कर सकता है। इसके लिए माहौल बनाने की जरूरत है।