November 23, 2024

बदलते मौसम में कैसी होनी चाहिये आपकी डाइट

0

आयुर्वेद के अनुसार हमें मौसम के अनुसार खाने पीने की आदत डालनी चाहिये। आमतौर पर लोग एक ही डाइट हर मौसम में फॉलो करते हैं जो कि बेहद गलत है। आयुर्वेद में मौसम को 6 हिस्‍सों में बांटा गया है, जिसका असर हमारे शरीर की पाचन क्षमता और शारीरिक बल पर पड़ता है। इसलिये हमें अपने भोजन का चयन और उसकी मात्रा पर खास ध्‍यान देना चाहिये। स्‍वास्‍थ्‍य को अगर बेहतर बनाना है तो यहां जानें आयुर्वेद के अनुसार किस मौसम में क्‍या खाएं और क्‍या नहीं….

शरद ऋतु (मध्य सितंबर से मध्य नवंबर)

इस मौसम में बेहद हल्‍का, मीठा और शीतल भोजन करना चाहिये क्‍योंकि यह पचने में बेहद आसान होता है। शरीर में पित्‍त न बने इसके लिये नीम, करेला, सहजन जैसी चीजों का सेवन करें। इस दौरान तुरई, लौकी, चौलाई आदि कसैले साग का सेवन लाभदायक होता है। दाल की बात करें तो इस मौसम में छिलके वाली मूंग की दाल, त्रिफला, मुनक्का, खजूर, जामुन, परवल, आंवला, पपीता, अंजीर का सेवन करें।

​हेमन्त ऋतु ( मध्य नवंबर से मध्य जनवरी)
इस मौसम में रातें लंबी होती हैं और दिन छोटे। ऐसे में शारीरिक की गतिविधी धीमी पड़ जाती है और शरीर में ऊर्जा बचने लगती है। इस मौसम में देर से पचने वाला भोजन नहीं करना चाहिये। रात लंबी होती है इसलिये सुबह ब्रेकफास्‍ट जरूर करें। साथ ही घी, दूध आदि से युक्त, देर से पचने वाला भोजन करें। आप लड्डू, पाक, हलवा, आदि पौष्टिक आहार का सेवन जरूर करें। अगर नॉन वेज खाते हैं तो मांस, मछली सहित गुनगुने पानी का सेवन करें। सिर में तेल की मालिश और धूप जरूर सेंके।

शिशिर ऋतु (मध्य जनवरी से मध्य मार्च)
इस मौसम में शरीर में एनर्जी तेज और पाचक की अग्नि तीक्ष्ण रहती है। इसलिए देरी से पचने वाला भारी भोजन करें। खाली पेट रहने से बचें। इस मौसम में पौष्टिक आहार लें। लहसुन, अदरक की चटनी खाएं। दूध, घी, तिल आदि से बने फूड का सेवन करें। साथ ही ठंडे की जगह गुनगुने पानी का सेवन करें। अगर बीमारियों से बचना है तो इस मौसम में ठंडी चीजों को खाने से बचें और उपवास करने से बचें।

​बसन्त ऋतु (मध्य मार्च से मध्य मई)
इस मौसम में पाचक रस की उत्पत्ति और काम करने की क्षमता कम होने लगती है। सर्दी, जुकाम आदि रोग पकड़ने लगते हैं। ऐसे में आपको पुराने अन्न व धान्य का सेवन करना चाहिए। दालों में मूंग, मसूर, अरहर और चना का सेवन करें। इसके अलावा अपने शरीर की मालिश कर गुनगुने पानी से स्‍नान करें। इस मौसम में ठंडी प्रकृति वाला भोजन न करें। ज्यादा घी व तला भोजन, मिठाइयां न खाएं। न ही दिन में सोना और रात में देर तक जागना चाहिए।

​ग्रीष्म ऋतु (मध्य मई से मध्य जुलाई)
इस मौसम में पाचन क्षमता बेहद कमजोर हो जाती है। इसलिये खाने में गर्म, तीखे, मसालेदार, नमकीन, खट्टे और तले हुए भोजन से दूर रहें। वहीं, ठंडी तासीर वाली तरल चीजें खाएं जैसे लस्सी, छाछ अैर सत्तू। फलों में मौसमी, अंगूर, अनार, तरबूज आदि रसीले फल व फलों का रस, नारियल पानी, गन्ने का रस, कैरी का पना, ठण्डाई, शिकंजी का सेवन करें। ज्‍यादा से ज्‍यादा पानी पीएं और सिर पर ठंडे तेल की मालिश करें।

​वर्षा ऋतु (मध्य जुलाई से मध्य सितंबर)
इस मौसम में शरीर में वात बढ़ी हुई होती है इसलिए पाचन से जुडे रोग ज्यादा होते हैं। पित्त बढ़ाने वाले तीखे, नमकीन, तले हुए, मसालेयुक्त और खट्टे पदार्थ का सेवन न करें। भोजन में दूध, घी, शहद, जौ, गेंहू व साठी चावल खाएं। पेट का रोग न हो इसलिये सौंठ और नीबू खाएं। पानी को उबालकर पिएं। इस मौसम में शराब, मांस, मछली और दही का सेवन न करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *