अब क्रिकेट के जरिए नक्सल इलाके से बाहर निकलेंगे युवा, CRPF का मिला साथ
धमतरी
खेल हमेशा लोगों को समाज से जोड़ने का ही काम करता है. अगर खेल खेल में माओवाद (Naxaliet Area) की जड़े भी कटती जाएं तो इससे बेहतर क्या हो सकता है. धमतरी के धूर नक्सल प्रभावित मेचका इलाके में सीआरपीएफ (CRPF) कुछ इसी तर्ज पर क्रिकेट (Cricket) के जरिए युवाओं को मुख्य धारा से जोड़ने का काम कर रही है. कोशिश है कि खेल के जरिए न सिर्फ प्रतिभाओं को निखारा जाए बल्कि गलत रास्ते में भटकने से भी रोका जाए.
क्रिकेट की लोकप्रियता आज भारत में आसमान पर है. जिन पिछड़े इलाकों में सड़क, बिजली और पानी नहीं पहुंच सका है वहां भी क्रिकेट युवाओं का पसंदीदा खेल है. हम धमतरी के उस इलाके की बात कर रहे है जहां विकास की आस में कई पीढ़ियां गुजर गई. इसी कमजोरी का फायदा उठा कर माओवादियों ने अपनी जड़े वहां जमा ली और युवाओं को देश की मुख्य धारा के खिलाफ बरगलाने का काम किया. लेकिन यहां की हवा से बारूद की गंध धीरे-धीरे गायब हो रही है. यहां की मिट्टी में अमेनियम नाईट्रेट से अब बम नहीं बल्कि फसल के लिए इस्तेमाल की जा रही है. समाज में इस रासायनिक परिवर्तन के लिए उत्प्रेरक यानी केटेलिस्ट का काम क्रिकेट कर रहा है.
सीआरपीएफ एक ओर बंदूक लेकर माओवादियों पर कहर बरसा रही है तो वहीं दूसरी तरफ समाज सेवा के लिए भी रचनात्मक काम कर रही है. धमतरी जिले के मेचका इलाके में सीआरपीएफ की 211वीं बटालियन क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन करती रहती है, जिसमें आस-पास के कई गांवों के क्रिकेट टीम शामिल होते है, क्योंकि ग्रामीण गरीब युवाओं के पास खेलने का जज्बा तो है, लेकिन साधन नहीं होते. इन्हें बकायदा क्रिकेट किट दिया जाता है.
खेल का सारा खर्च और इनाम की व्यवस्था, सभी का जिम्मा सीआरपीएफ ही करती है. इस तरह से युवा मुख्य धारा के करीब भी आते है. उनकी प्रतिभा भी निखरती है और मावोवादी जहरीले विचारों से वो दूर होते है. इस तरह के आयोजन से यहां के लोगों और खिलाड़ियों में काफी उत्साह है. कई युवाओं ने बताया कि ये बेहतरीन अनुभव है कि सीआरपीएफ की पहल और मदद से पिछड़े इलाकों में भी खेल प्रतिभाएं उभर रही हैं.
अपने बच्चों को नई पीढ़ी के खेल के जरिये मुख्यधारा से जुड़ते देख उनके पालक और जनप्रतिनिधियों को भी काफी खुशी है. उन्हें भी लगता है कि वो भी अब आम लोगों के जैसे अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए सपने संजो सकते हैं. उन्हें उम्मीद है कि ये बच्चे अब अपने हाथों में बल्ला थामें या बंदूक वो देश के लिए ही होगा. खेल से जुड़ने के बाद वो सृजह ही करेंगे, विनाश नहीं.