राज्यपाल को फेक कॉल, हरिद्वार का ट्रेवल एजेंट गिरफ्तार
भोपाल
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नाम पर राज्यपाल लालजी टंडन को फोन करने के मामले का कनेक्शन हरिद्वार से है. इस केस में आरोपी विंग कमांडर कुलदीप वाघेला और उनके दोस्त डॉ. चंद्रेश कुमार शुक्ला ने जिस व्हीआईपी नंबर के सिम से फोन किया था, वो हरिद्वार के एक ट्रेवल एजेंसी संचालक दक्ष अग्रवाल ने मुहैया कराया था. एसटीएफ को शक है कि आरोपी की मिलीभगत सिम कंपनी के अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ है.
हरिद्वार से हुई तीसरी गिरफ्तारी
एसटीएफ की टीम ने तीसरे आरोपी को हरिद्वार से गिरफ्तार किया है. आरोपी ट्रेवल एजेंसी संचालक दक्ष अग्रवाल है. एसटीएफ आरोपी को ट्रांजिट रिमांड पर भोपाल लेकर आ गई है. एसटीएफ की जांच में सामने आया था कि आरोपी चंद्रेश ने फर्जी आईडी के जरिए व्हीआईपी नंबर की सिम हासिल की थी. उसी नंबर से उसने एमपी के राज्यपाल लालजी टंडन को फोन लगाया था. एसटीएफ अधिकारियों का कहना है, "चंद्रेश को दक्ष ने ही व्हीआईपी नंबर दिलवाया था. अब एसटीएफ इस बात का पता लगा रही है कि सिम कंपनी के कौन-कौन से अधिकारियों और कर्मचारियों ने व्हीआईपी नंबर दिलाने में आरोपियों की मदद की है."
टेलिकॉम स्टाफ की भूमिका संदिग्ध
एसटीएफ ने आरोपियों चंद्रेश और कुलदीप से सिम के बारे में पूछताछ की, तो चला कि सिम को हरिद्वार भूपतवाला दिव्य गंगा अपार्टमेंट निवासी दक्ष अग्रवाल ने मुहैया कराया था. जो वीवीआईपी नंबर था. इसे सिर्फ अति महत्वपूर्ण व्यक्ति को भारत सरकार मुहैया कराता है. इस नंबर को हासिल करने के लिए लोकल इंटेलिजेंस की रिपोर्ट लगती है. नंबर लेने के लिए किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति का नाम होना चाहिए. साथ ही नंबर क्यों लिया जा रहा है, इसकी वजह भी बतानी पड़ती है. आरोपी डॉक्टर चंद्रेश ने गुवाहटी से फर्जी दस्तावेज बनवाए और फिर उनके आधार पर दक्ष ने सिम मुहैया कराया था. इस मामले में निजी टेलिकॉम कंपनी के अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका संदिग्ध है. एसटीएफ को पता चला है कि आरोपी दक्ष अग्रवाल के कनेक्शन टेलिकॉम कंपनी से जुड़े अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ था.
यह है पूरा मामला
एसटीएफ ने 10 जनवरी को आरोपी विंग कमांडर कुलदीप वाघेला और उनके दोस्त डॉ. चंद्रेश कुमार शुक्ला को गिरफ्तार किया था. विंग कमांडर ने शुक्ला को कुलपति नियुक्त करने के लिये राज्यपाल लाल जी टंडर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बताकर फोन कर सिफारिश की थी. आरोपियों का नंबर गृह मंत्रालय से मिलता जुलता था, जिस पर राज्यपाल को शक हुआ और उन्होंने एसटीएफ से शिकायत की थी.