राजस्थान सरकार ने पेश किया विवादित बिल
जयपुर: राजस्थान विधानसभा का सत्र चल रहा है. आज विधानसभा में सरकारी कर्मचारियों को बचाने वाले बिल सीआरपीसी संशोधन विधेयक 2017 पर चर्चा होगी. सोमवार को राजस्थान विधानसभा के अंदर और बाहर भारी विरोध के बावजूद राजस्थान सरकार ने लोकसेवकों को संरक्षण देने वाले इस बिल को विधानसभा में पेश कर दिया गया.
‘सरकारी बाबुओं के काले कारनामे छिपाने की कोशिश’
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी इस विवादित कानून का विरोध किया है. एडिटर्स गिल्ड ने इसे ‘पत्रकारों को परेशान करने, सरकारी अधिकारियों के काले कारनामे छिपाने और भारतीय संविधान की तरफ से सुनिश्चित प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने वाला एक घातक कानून’ बताया है.गौरतलब है कि इस बिल को लेकर विपक्ष काफी विरोध कर रहा है. वहीं इस बिल के विरोध में जयपुर के सभी पत्रकार आज सुबह 10 बजे पिंकसिटी प्रेस क्लब से विरोध प्रदर्शन शुरू करेंगे. सभी पत्रकार अपनो बाहों पर काली पट्टी बांध कर विधानसभा के लिए रवाना होंगे.आपको बता दें कि दंड विधि राजस्थान संशोधन अध्यादेश 2017 को लेकर सदन और सदन के बाहर घिरी राजस्थान सरकार की परेशानियां कल उस समय बढ़ गयी जब इसे राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दी गई.वरिष्ठ एडवोकेट ए के जैन ने भगवत दौड की ओर से याचिका दायर कर दंड विधि राजस्थान संशोधन अध्यादेश 2017 को अनुच्छेद 14,19 और 21 का उल्लंघन बताते हुए इसकी वैधता को चुनौती दी है. हाई कोर्ट में यह याचिका कल दायर की गई है.
जजों, अफसरों, नेताओं के खिलाफ FIR की लेनी होगी इजाजत
दरअसल राज्य की वसुंधरा राजे सरकार की कोशिश उस अध्यादेश को सदन से पास कराने की होगी, जिससे अब जजों, न्यायिक अधिकारियों, अफसरों और लोक सेवकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराना मुश्किल हो जाएगा.वसुंधरा राजे सरकार की ओर से लाए गए इस संसोधन अध्यादेश के मुताबिक, अब कोई भी व्यक्ति जजों, अफसरों और लोक सेवकों के खिलाफ अदालत के जरिये एफआईआर दर्ज नहीं करा सकेगा. मजिस्ट्रेट बिना सरकार की इजाजत के न तो जांच का आदेश दे सकेंगे न ही प्राथमिकी का दर्ज कराने का आदेश दे सकेंगे. इसके लिए उसे पहले सरकार से मंजूरी लेनी होगी.अध्यादेश में कहा गया है कि सरकार के स्तर पर सक्षम अधिकारी को 180 दिन के अंदर जांच की इजाजत देनी होगी. अगर 180 दिन के अंदर जांच की इजाजत नहीं दी जाती है तो इसे स्वीकृत मान लिया जाएगा.