तीन वैश्विक तनाव जो कर सकते हैं वित्त मंत्री को बजट पेश करते वक्त परेशान

नई दिल्ली
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को अपना दूसरा बजट पेश करेंगी। घरेलू मोर्चे पर वैसे ही सरकार दिक्कतों का सामना कर रही है। मांग में कमी, सुस्त अर्थव्यवस्था, निवेश में कमी और बैंकिंग सेक्टर में बढ़ते एनपीए से सरकार वैसे ही परेशान है। ऐसे में विश्व में भी फिलहाल तीन ऐसे मुद्दे हैं, जिनका वित्त मंत्री को बजट पेश करते वक्त ध्यान रखना होगा।
फिलहाल कच्चे तेल की कीमतों में नरमी आ गई है, लेकिन कुछ दिनों पहले ही ईरान और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव के बाद कीमतों में उछाल देखने को मिला था। लेकिन अभी स्थिति पूरी तरह से सही नहीं हुई है। भारत ने ईरान से तेल लेना बंद कर दिया है। हालांकि पश्चिम एशिया में तनाव अगर बढ़ता है तो फिर कीमतों में एक बार फिर से उछाल देखने को मिल सकता है। इससे भारत में पेट्रोल-डीजल के अलावा रसोई गैस और केरोसीन की कीमतों में उछाल आ सकता है, इससे पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ने की संभावना है। अगर सरकार एक्साइज ड्यूटी में कमी करती है, तो फिर सरकार की कमाई पर भी असर पड़ेगा। कच्चे तेल की कीमतों में प्रत्येक 10 डॉलर प्रति बैरल बढ़ने से विकास दर में 0.2 से 0.3 फीसदी की कमी आएगी, वहीं थोक महंगाई दर में 1.7 फीसदी का इजाफा होगा।
फिलहाल अमेरिका और चीन के बीच पहले चरण की व्यापार समझौते पर सहमति बन गई है। इससे दोनों देशों के बीच पिछले 17 महीनों से चल रही ट्रेड वॉर (व्यापार युद्ध) फिलहाल थम जाएगा।समझौते की शर्तों के मुताबिक लगभग 11 लाख करोड़ (160 अरब डॉलर) के चीनी आयातों पर 15 दिसंबर तक लगा प्रस्तावित अमेरिकी टैरिफ (आयात शुल्क) टल जाएगा। जिन उत्पादों पर आयात शुल्क लगाया जाना था, उनमें इलेक्ट्रॉनिक्स और खिलौने भी शामिल थे।
वहीं, चीन से आने वाले सामान पर पहले से लग रहे कुछ टैरिफ में 50 फीसदी तक कटौती की जाएगी। समझौते के तहत चीन अमेरिकी कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क घटाकर खरीद बढ़ाने को राजी हुआ है। लेकिन यह युद्ध अभी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है। मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस क्रेडिट स्ट्रैटजी के प्रबंध निदेशक माइकल टेलर ने कहा, ‘इस समझौते से दोनों के बीच द्विपक्षीय निर्यात बढ़ाने में मदद मिल सकती है और इससे कारोबारी विश्वास के साथ ही निवेश में सुधार होगा।’ उन्होंने एक बयान में कहा, ‘हालांकि समझौते के ब्योरे से पता चलता है कि दोनों देशों के बीच टकराव की खासी संभावनाएं बनी हुई हैं।’ टेलर ने कहा, मूडीज का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में चीन और अमेरिका के बीच तनाव में उतार-चढ़ाव बना रह सकता है।
जेपी मॉर्गन एसेट मैनेजमेंट के वैश्विक बाजार रणनीतिकार हैन एंडरस्न ने कहा, ‘बाजार इस समझौते को जोखिम बने रहने के संकेत के तौर पर ले रहा है, लेकिन हमें 2020 में विशेषकर अमेरिका-चीन व्यापार से जुड़ी खबरों को लेकर सतर्क रहना चाहिए।’ व्हाइट हाउस ने कहा कि इस समझौते की मुख्य बात चीन का अमेरिकी कृषि उत्पादों और अन्य सेवाओं व सामान का आयात दो साल में 200 अरब डॉलर तक बढ़ाना है, जो 2017 की 186 अरब डॉलर की बेसलाइन से ज्यादा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप फिलहाल विश्व व्यापार संगठन के खिलाफ काफी मुखर हो गए हैं। ट्रंप चाहते हैं कि व्यापार संगठन चीन और भारत को विकासशील देशों की कैटेगिरी से हटाएं। ट्रंप का मानना है कि यह दोनों देश इस कैटेगिरी का बहुत ज्यादा गलत फायदा उठा सकते हैं। अगर विश्व व्यापार संगठन भारत को विकासशील देशों की कैटेगिरी से हटाता है तो फिर यह आने वाले दिनों में आयात-निर्यात पर काफी असर डाल सकता है।