November 23, 2024

केवल माथे पर सिंदूर लगाकर ही भक्त नहीं हो जायेंगे

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रायपुर
माथे पर सिंदूर लगा लेने से ही आप हनुमान भक्त नहीं हो जाते है। मानव जाति के बीच सबसे बड़ा सवाल है कि आप हनुमान जी की मानते है या हनुमानजी को मानते है। संपूर्ण गुण होते हुए वे दासत्व का भाव रखते है। उनके आदर्श, विनम्रता का यदि विश्व की संस्कृति में मंथन करें तो उनके जैसा दूसरा कोई नहीं मिलेगा। उनकी भावना की विशेषता को ही समझकर उन्हें रामदूत की उपमा दी गई है। इसका हम अनुसरण कर सकते है। हम आज विकास की बात करते है लेकिन विकास केवल भौतिकता की हो रही है। मानसिकता में तो लगातार गिरावट आ रही है।

समाज प्रबंधन और आत्म प्रबंधन को आज के परिवेश में हनुमान चालीसा से जोड़कर बहुत ही तार्किक बातें मानस मर्मज्ञ दीदी मंदाकिनी ने कहीं। एक ओर हम राम राज्य के स्थापना की बात करते है और दूसरी ओर भौतिकतावादी विकास की दौड़ में हमारी जीवन शैली ही परिवर्तित हो गई है। संसाधन सुख का ही नहीं जुटा रहे है, रोग की सामग्री भी एकत्रित कर रहे है। रुग्ण मानसिकता के व्यक्ति और समाज दोनों की नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही है। भरत, लक्ष्मण, हनुमानजी जैसे पात्र रामजी की टीम में होने से राम राज्य बना था। वैसे ही समर्पित और संगठित उपासक और साधक जब तक नहीं होंगे राम राज्य की परिकल्पना करना भी बेमानी है। सुखी राष्ट्र के वैश्विक सर्वे में भारत का ग्राफ लगातार गिरते जा रहा है। यह भी सबसे बड़ा विचारणीय प्रश्न है।

माथे पर सिंदूर लगाकर ही भक्त नहीं हो जाएंगे
आज राम से ज्यादा हनुमानजी की मंदिर है और पूजे भी वे ज्यादा जा रहे है,लेकिन सवाल यह है कि आप माथे पर तो सिंदूर-बंदन लगा रहे है पर हनुमानजी को मान रहे है या हनुमान की मान रहे है सवाल वहीं खड़ा है। हनुमानजी की मानेंगे तभी आपकी भक्ति सार्थक है।

लीडरशिप की गुण हनुमानजी से सीखें
कौन कहता है पावरफूल लीडरशिप से ही समाज को आगे बढ़ाया सकता है,भले ही पिछले चार-पांच सालों में ही इसका स्वरूप बदल गया है। मानस में देखें कि किस प्रकार हनुमान जी महाराज संपूर्ण प्रभुता होते हुए भी दासत्व का भाव रखते हैं। राम दूत के रूप में उन्होने लंका तक पहुंचकर जो काम किया है वह यह दशार्ता है कि प्रबंधन के सूत्र जो प्रगट होते हैं वह तो हनुमानजी को आदर्श बनाते हैं।

दीक्षा को मजाक न समझें-
गुरू-शिष्य दीक्षा सनातन धर्म की पुरानी परम्परा है,लेकिन आज तो कुछ लोगों ने दीक्षा को भी मजाक बनाकर रख दिया है। दीदी मंदाकिनी ने कहा कि वे किसी पर आक्षेप नहीं लगा रहे हैं,आज तो पंडालों में माइक लगाकार या नेट पर ही सर्च करवाकर दीक्षा दिलाया जा रहा है। यह ठीक नहीं। भगवान राम ने लंका जाने से पहले हनुमानजी महाराज के कानों में जो मंत्रणा दी उससे सीख लें।

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