बेहमई कांड: 18 जनवरी को फिर सुनवाई करेगी निचली अदालत, फिलहाल फैसला नहीं
कानपुर
80 के दशक के चर्चित बेहमई कांड में कानपुर की निचली अदालत 18 जनवरी को एक बार फिर सुनवाई करेगी। पूर्व में यह कयास लगाए जा रहे थे कि अदालत सोमवार को इस मामले में अपना फैसला दे सकती है। हालांकि बचाव पक्ष की ओर से कुछ और दलीलों को पेश करने की अपील को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने उन्हें 16 जनवरी तक का वक्त दे दिया। अदालत ने अब इस मामले में 18 जनवरी की तारीख तय कर दी है। बेहमई कांड की मुख्य आरोपी फूलन देवी की साल 2001 में हत्या कर दी गई थी।
2011 में जिन 5 आरोपियों के खिलाफ ट्रायल शुरू हुआ था, उनमें से एक की मौत हो चुकी है। केस के अनुसार, अपने अपने साथ हुए गैंगरेप का बदला लेने के लिए 14 फरवरी, 1981 को फूलन देवी और उसके गैंग के कई अन्य डकैतों ने कानपुर देहात में यमुना के बीहड़ में बसे बेहमई गांव में 20 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इनमें 17 लोग ठाकुर बिरादरी से ताल्लुक रखते थे। वारदात के दो साल बाद तक पुलिस फूलन को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी।
1983 में सरेंडर, बनीं सांसद, फिर हत्या
1983 में फूलन ने कई शर्तों के साथ मध्य प्रदेश में आत्मसमर्पण किया था। 1993 में फूलन जेल से बाहर आईं। वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर मिर्जापुर लोकसभा सीट से दो बार सांसद भी बनीं। 2001 में शेर सिंह राणा ने फूलन देवी की दिल्ली में उनके घर के पास हत्या कर दी थी। 2011 में स्पेशल जज (डकैत प्रभावित क्षेत्र) में राम सिंह, भीखा, पोसा, विश्वनाथ उर्फ पुतानी और श्यामबाबू के खिलाफ आरोप तय होने के बाद ट्रायल शुरू हुआ। राम सिंह की जेल में मौत हो गई। फिलहाल पोसा ही जेल में है।
मृतकों की विधवाएं देख रही राह
बेहमई कांड में जान गंवाने वाले लोगों की पत्नियां अब तक न्याय की राह देख रही हैं। जिन लोगों की हत्या 1981 में हुई थी, उनमें से अब सिर्फ 8 लोगों की विधवाएं जिंदा हैं। ये भी किसी तरह जानवरों को पालकर अपना जीवन-यापन कर रही हैं। उनसे विधवा पेंशन का वादा किया गया था लेकिन वह वादा ही रहा। इसके अलावा उनके गांव में बिजली और परिवहन के साधन भी सुचारू रूप से मौजूद नहीं हैं।