बच्चों के लिए कोटा से भी बदतर बीकानेर, 31 दिन में गई 162 की जान
बीकानेर
राजस्थान में बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. बच्चों की मौत के मामले में बीकानेर के पीबीएम शिशु हॉस्पिटल ने कोटा के जे.के. लोन अस्पताल को भी पीछे छोड़ दिया है. कोटा में जहां 35 दिनों में 110 बच्चों की मौत हुई वहीं बीकानेर के हॉस्पिटल में दिसंबर के 31 दिनों में 162 बच्चे काल के गाल में समा गए.
इन आंकड़ों का मतलब है कि हर दिन पांच से ज्यादा बच्चों की मौत हो रही है. महज दिसंबर महीने की बात करें तो इस अस्पताल में जन्मे और बाहर से आए 2219 बच्चे पीबीएम शिशु हॉस्पिटल में भर्ती हुए. इन्हीं में से 162 यानी 7.3 फीसदी बच्चों की मौत हो गई.
पूरे साल की बात करें तो जनवरी 2019 से दिसंबर 2019 तक यहां कुल 1681 बच्चों की मौत हो चुकी है. 220 बेड के पीबीएम शिशु हॉस्पिटल में 140 बेड जनरल वार्ड के हैं. वहीं 72 बेड नियोनेटल केयर युनिट यानी नवजात बच्चों की देखभाल के लिए हैं. सबसे ज्यादा मौत इन्हीं बच्चों की हो रही है.
मौत का आंकड़ा उजागर होने के बाद सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. एचएस कुमार ने 'आजतक' से बताया कि ज्यादातर मौतें उन नवजात बच्चों की होती हैं जो गंभीर हालत में गांवों से रेफर होकर मेडिकल कॉलेज तक पहुंचते हैं. यहां पहुंचने पर हालत इतनी गंभीर होती है कि उन्हें बचाना मुश्किल हो जाता है.
डॉ. कुमार ने बताया कि जननी सुरक्षा योजना और अन्य लाभकारी योजनाओं के चलते दूरदराज के गंभीर बच्चे संभाग के एकमात्र पीबीएम अस्पताल में बने आईसीयू के लिए रेफर कर दिए जाते हैं. पीबीएम के डॉक्टर उनका समुचित इलाज करने का प्रयास करते हैं. फिर भी गंभीर बच्चों की मौत हो जाती है.
उन्होंने इन मौतों के पीछे अस्पताल की किसी भी लापरवाही को कारण नहीं माना. दूसरी ओर एक दिन पहले ही बीकानेर जिला कलेक्टर कुमार पाल गौतम ने जब पीबीएम के शिशु अस्पताल का दौरा किया तो वहां उन्हें अनेक व्यवस्थाएं देखने को मिलीं. इस पर उन्होंने डॉक्टरों को लताड़ भी लगाई.
वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अब इस मुद्दे को तूल देने में लग गई है. बीजेपी नेताओं ने पीबीएम अस्पताल का निरीक्षण किया और वहां एक बेड पर दो-दो बच्चों के इलाज होने को अस्पताल प्रशासन की बड़ी लापरवाही बताया. जनरल वार्ड में देखने को मिला कि भर्ती बच्चों की बेडशीट काफी गंदी हो चुकी है तो वहीं उन्हें रात को सर्दी से बचाव के लिए ओढ़ने के लिए कंबल भी नहीं दिए जा रहे.
फिलहाल इस पड़ताल के सामने आने के बाद अस्पताल प्रशासन ने चुप्पी साध ली है और हर कोई अस्पताल की व्यवस्थाएं चाक-चौबंद दिखाने का प्रयास कर रहा है.