भौतिकता की दौड़ में इंसान के पास 3 मिनट का भी समय नहीं
रायपुर
श्री हनुमानजी के व्यक्तित्व में दोनों प्रकार के आदर्श का दर्शन मिलता है। वे एक समर्थपूर्ण सद्गुरु भी हैं और एक सुपात्र सुयोग्य शिष्य। बल, बुद्धि और विवेक के देवता है हनुमान जी महाराज। उनकी सारी लीलाएं अनुकरणीय है। वे प्रतिकूलता में भी अनुकूलता का अनुभव कराते है। राम के सामर्थ्य पर यदि हमारा विश्वास अडिग हो जाए तो जीवन की सारी बाधाएं लांघ सकते है, यह हनुमानजी ने बताया है। जिसके जीवन में कोई अभिमान न हो वही हनुमान जी है।
संपूर्ण सनातन धर्म का जीवन दर्शन है राम चरित मानस, सफलता के सारे सूत्र इसमें है। विश्व साहित्य में शीर्ष स्थान प्राप्त है। जानने-समझने के लिए जिस प्रकार सिर में दो आँखें, दो कान, दो नासिका छिद्र और एक मुख हैं। ठीक उसी प्रकार मानस में बालकांड और अयोध्या कांड आँख है। अरण्य कांड और किषकिंधा कांड कान। लंका कांड नासिका और सुंदर कांड मुख है। यदि नित्य प्रति सुंदरकांड का पाठ करेंगे तो जीवन की जितनी भी कामनाएं है पूरी हो जाएगी। कलयुग की विभीषका को गोस्वामी तुलसीदास जी समझ गए थे जहां लोगों के पास एक घंटे भी सुंदरकांड पढ?े के लिए समय नहीं होगा इसीलिए उन्होंने हनुमान चालीसा की रचना की। कुछ न सहीं यदि एक चौपाई ही रोजाना गुनगुना लिया तो जीवन सार्थक हो जायेगा।
गुरुतेग बहादुर हाल में चल रही श्री राम कथा अनुष्ठान में मानस मर्मज्ञ दीदी मां मंदाकिनी ने बताया कि हनुमान चालीसा के 40 चौपाईयों में गोस्वामीजी ने हनुमान जी की चारू चरित्रावली का सुंदर वर्णन किया है। भौतिकता की दौड़ में व्यक्ति 3 मिनट भी समय नहीं निकाल पा रहा है इसलिए एक चौपाई ही गुनगुनाने का समय निकाल लें। यह रोजाना जारी रखता है तो साल भर में वह 9 बार हनुमान चालीसा का पाठ कर लेगा। व्यक्ति के उद्धार का मार्ग कैसे मिले यही संत की चिंता है। अपने में सुख लेने की कला मानस में है। लेकिन आज की युवा पीढ़ी मोटिवेशन गुरू के क्लास जा रहे हैं। सारे सुख हमारे जीवन में है फिर भी दुखी है लेकिन दूसरों के सुख से हम ज्यादा दुखी है। प्रभु का सौंदर्य अमृतमय है, यदि भक्त की भावना जुड़ जाती है तो वह रसमयी ही नहीं हो जाती है बल्कि कई गुणा बढ़ जाती है। इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि उस रुप का दर्शन करने के लिए भगवान शंकर भी वेष बदलकर अयोध्या की गलियों में घूमते रहे।
कर्म के आदर्श है हनुमानजी, कर्म दिखाई देता है कर्ता नहीं। हनुमानजी को पवन पुत्र भी कहा गया है। मनुष्य भोजन व पानी के बिना तो कुछ देर रह सकता है लेकिन वायु के बगैर वह एक क्षण भी नहीं रह सकता है। जिस प्रकार शरीर में वात और पित को पहुंचाने वाला वायु है, वैसे ही हमारे शरीर में दिव्य तत्व हनुमान जी पहुंचा सकते है। सब कहते तो है हमारे आदर्श हनुमानजी है लेकिन सबके देखने की दृष्टि भी अलग है। हनुमानजी को अंजनीनंदन भी कहा गया है। दृष्टि तो है,पर विकृत है इसे ज्ञानभूति अंजन से ही ठीक किया जा सकता है और यह दृष्टि मिलेगी हमें अंजनी माता के दिव्य पुत्र हनुमानजी से।जिसकी व्यथा प्रभु सुन लेते है वह व्यथा भी कथा बन जाती है। हनुमान नाम कैसे पड़ा इसके पीछे बताया गया है कि हनुमानजी की ठुड्डी टेढ़ी है क्योंकि इंद्र ने वज्र से प्रहार किया था। ठुड्डी भले ही टेड़ी हो गई लेकिन इंद्र का अभिमान पूरी तरह चूर-चूर हो गया। जिसके जीवन में कोई अभिमान न हो वही हनुमान जी है।