November 23, 2024

असमंजस में पड़ी बीजेपी, दिल्‍ली में कौन होगा मुख्‍यमंत्री चेहरा

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 नई दिल्ली
करीब 21 सालों से दिल्ली की सत्ता से बाहर बीजेपी, विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर फिलहाल असमंजस में है। अभी भी भगवा पार्टी नफे-नुकसान का आकलन कर रही है कि विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के मुकाबले वह सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़े या फिर मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में किसी चेहरे पर दांव लगाए।

दिल्ली विधानसभा के लिए प्रभारी बनाए गए प्रकाश जावड़ेकर ने भी माना है कि अभी पार्टी ने इस बारे में कोई फैसला नहीं किया है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि हालांकि अब तक नेतृत्व की ओर से कोई साफ संकेत नहीं दिए गए हैं लेकिन पार्टी में एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसका मानना है कि किसी चेहरे की बजाय सामूहिक नेतृत्व में पार्टी चुनाव लड़ती है तो उसे दिल्ली में फायदा होगा।

हालांकि एक दूसरा वर्ग यह चाहता है कि अगर अरविंद केजरीवाल को कड़ी टक्कर देनी है तो इसके लिए किसी चेहरे को ही सामने लाना होगा। पार्टी में मुख्यमंत्री के चेहरे पर सुगबुगाहट तब शुरू हुई जब एक के बाद एक दो कार्यक्रमों में खुद अमित शाह ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा से बहस की चुनौती दे डाली। इसके बाद ही यह माना जाने लगा कि वर्मा को कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। हालांकि अब तक यह साफ नहीं हुआ कि शाह ने वर्मा का जिक्र करने का मकसद क्या था।

सामूहिक नेतृत्व के पक्ष में तर्क
सामूहिक नेतृत्च की वकालत करने वाले नेताओं का कहना है कि पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव को अब तक नहीं भूली। जब पार्टी ने किरण बेदी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा लेकिन दिल्ली के इतिहास में पार्टी की अब तक की सबसे करारी हार हुई। इन नेताओं का कहना है कि अगर सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाता है तो इसका सबसे बड़ा फायदा होगा कि दिल्ली में पार्टी के सभी गुट अपने नेता के मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद में जमकर कार्य करेंगे। ऐसे में आम आदमी पार्टी का मुकाबला किया जा सकेगा। यही नहीं इस खेमे का यह भी कहना है कि इस वक्त दिल्ली में बीजेपी का कोई ऐसा नेता नहीं है, जो केजरीवाल के मुकाबले बहुत मजबूत नजर आता हो। ऐसे में सामूहिक नेतृत्व ही बीजेपी के लिए सही रणनीति होगी।

मुख्यमंत्री चेहरे के पक्ष में तर्क
उधर, मुख्यमंत्री के चेहरे की वकालत करने वालों का कहना है कि अगर मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया गया तो बीजेपी के लिए राह और मुश्किल हो सकती है। वजह यह होगी कि प्रचार में केजरीवाल के मुकाबले कौन का जवाब बीजेपी नहीं दे पाएगी। इसके अलावा अगर चेहरा घोषित नहीं किया जाता तो सीधे-सीधे यह केजरीवाल बनाम मोदी का मुकाबला हो जाएगा। ऐसे में अगर पार्टी के अनुकूल नतीजे नहीं आते तो ब्रैंड मोदी की इमेज प्रभावित हो सकती है। हाल ही में झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा में पार्टी को वैसे ही झटका लग चुका है। ऐसे में एक राज्य के लिए पूरे देश के बड़े ब्रैंड ऐंबैसडर को दांव पर नहीं लगाया जा सकता।

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