जानें- क्या है पत्थलगड़ी आंदोलन, जिसमें दर्ज केस हेमंत सोरेन ने लिए वापस
नई दिल्ली
झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने रविवार को फैसला किया कि राज्य में दो साल पहले पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान दर्ज मामले वापस लिए जाएंगे. इस बारे में प्रदेश के मंत्रिमंडल सचिव ने बताया कि राज्य सरकार के फैसले के मुताबिक छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट) में संशोधन का विरोध करने और पत्थलगड़ी करने के जुर्म में दर्ज किए गए मामले वापस लेने का काम शुरू किया जाएगा. इससे जुड़े अधिकारियों को कार्रवाई का निर्देश भी दे दिया गया है.
अपने जमीनी हक की मांग को बुलंद करते हुए आदिवासियों ने बीते साल यह आंदोलन शुरू किया था. इसका असर इस बार के चुनाव पर भी काफी देखा गया. माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है क्योंकि पिछले साल मुख्यमंत्री रघुवर दास ने दबी जुबान पत्थलगड़ी आंदोलन पर निशाना साधा था. उन्होंने यहां तक कहा था कि इस आंदोलन के पीछे देश विरोधी ताकतों का हाथ है.
बता दें, यह आंदोलन 2017-18 में तब शुरू हुआ, जब बड़े-बड़े पत्थर गांव के बाहर शिलापट्ट की तरह लगा दिए गए. जैसा कि नाम से स्पष्ट है-पत्थर गाड़ने का सिलसिला शुरू हुआ जो एक आंदोलन के रूप में व्यापक होता चला गया. लिहाजा इसे पत्थलगड़ी आंदोलन का नाम दिया गया.
इस आंदोलन के तहत आदिवासियों ने बड़े-बड़े पत्थरों पर संविधान की पांचवीं अनुसूची में आदिवासियों के लिए दिए गए अधिकारों को लिखकर उन्हें जगह-जगह जमीन पर लगा दिया. यह आंदोलन काफी हिंसक भी हुआ. इस दौरान पुलिस और आदिवासियों के बीच जमकर संघर्ष हुआ.
यह आंदोलन अब भले ही शांत पड़ गया है, लेकिन ग्रामीण उस समय के पुलिसिया अत्याचार को नहीं भूले हैं. इसी का असर कहीं न कहीं हाल में बीते विधानसभा चुनाव में भी देखा गया है. माना जा रहा है कि आंदोलन समर्थक आदिवासियों ने हेमंत सोरेन को थोक में वोट दिया, इसलिए सरकार बनते ही सोरेन ने इसमें दर्ज मुकदमे वापस लेने का फौरन ऐलान कर दिया.
खूंटी पुलिस की मानें तो पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े कुल 19 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 172 लोगों को आरोपी बनाया गया है. अब हेमंत सोरेन के ऐलान के बाद इन आरोपियों पर दर्ज मुकदमे वापस ले लिए जाएंगे. खूंटी ऐसा जिला है जहां पत्थलड़ी आंदोलन का बड़े पैमाने पर असर देखा गया.
वैसे पत्थलगड़ी यहां की अति पुरातन परंपरा है जिसमें आदिवासी समुदाय के लोग गांवों में विधि-विधान और अपनी प्राचीन रवायतों के अनुसार पत्थलगड़ी करते हैं. पत्थरों पर मौजा, सीमाना, ग्रामसभा और अधिकार की जानकारी उकेरी जाती है. पुरखे और वंशों की जानकारी के अलावा मृतकों के बारे में भी पत्थरों पर लिखा-पढ़ी करने की परंपरा रही है.