छतीसगढ़ कोरिया कटोरा रेलवे स्टेशन में कोयले की कालिख के बीच पिसता बचपन
छतीसगढ़ कोरिया कटोरा रेलवे स्टेशन में कोयले की कालिख के बीच पिसता बचपन :देखे विडियो
जोगी एक्सप्रेस
कोरिया छत्तीसगढ़ ,कटोरा रेलवे स्टेशन किसी अच्छे कार्य के लिए नहीं अपितु शर्मसार करने के लिए अवश्य जाना जायेगा , मामला कोयले की कालिख के बीच पिसते बचपन की है ,जहाँ पर ठेकेदारों द्वारा नाबालिग बच्चो से रेलवे ट्रैक पर गिरे कोयले को उठा कर अन्यंत्र शिफ्ट कराया जा रहा था रेलवे ट्रैक साफ़ हो न हो पर ठेकेदार का काम आसान होता जरुर दिख रहा है ,जहाँ पर नाबालिग बच्चे स्कूल और कापी किताब से दूर मजदूरी करने में लगे हुए है ,गौरतलब बात है की रेलवे के आला अधिकारियो अपनी आंखे जरुर इस को देख कर भी बंद रखे हुए है ,यदि सरकार बच्चो को शिक्षा मुहय्या नहीं करा सकती तो इस तरह सरकार को बच्चो का सोसण करने का भी अधिकार नहीं !जानकारों की माने तो सारे नियम कायदों को ताक पर रख कर ठेकेदार द्वारा ये कार्य संचालित किया जा रहा ,जिसमे रेलवे के अधिकारियो की भी स्वीकृति मिली हुई है ,वही प्रदेश के मुखिया आज अंबिकापुर में कार्यक्रम में व्यस्त है ,जहाँ कटोरा से अंबिकापुर की महज दूरी 65 किलोमीटर की है , बरहहाल अब देखना यह है की प्रसाशन ठेकेदार पर क्या कार्यवाही करता है ,यह तो समय ही बताएगा, बचपन में न किसी बात की चिंता और न ही कोई जिम्मेदारी। बस हर समय अपनी मस्तियों में खोए रहना, खेलना-कूदना और पढ़ना। लेकिन सभी का बचपन ऐसा हो यह जरूरी नहीं।बाल मजदूरी की समस्या से आप अच्छी तरह वाकिफ होंगे। कोई भी ऐसा बच्चा जिसकी उम्र 14 वर्ष से कम हो और वह जीविका के लिए काम करे बाल मजदूर कहलाता है। गरीबी, लाचारी और माता-पिता की प्रताड़ना के चलते ये बच्चे बाल मजदूरी के इस दलदल में धंसते चले जाते हैं।आज दुनिया भर में 215 मिलियन ऐसे बच्चे हैं जिनकी उम्र 14 वर्ष से कम है। और इन बच्चों का समय स्कूल में कॉपी-किताबों और दोस्तों के बीच नहीं बल्कि होटलों, घरों, उद्योगों में बर्तनों, झाड़ू-पोंछे और औजारों के बीच बीतता है।भारत में यह स्थिति बहुत ही भयावह हो चली है। दुनिया में सबसे ज्यादा बाल मजदूर भारत में ही हैं। बाल मजदूर की इस स्थिति में सुधार के लिए सरकार ने 1986 में चाइल्ड लेबर एक्ट बनाया जिसके तहत बाल मजदूरी को एक अपराध माना गया भारत में बाल मजदूरों की इतनी अधिक संख्या होने का मुख्य कारण सिर्फ और सिर्फ गरीबी है। यहां एक तरफ तो ऐसे बच्चों का समूह है बड़े-बड़े मंहगे होटलों में 56 भोग का आनंद उठाता है और दूसरी तरफ ऐसे बच्चों का समूह है जो गरीब हैं, अनाथ हैं, जिन्हें पेटभर खाना भी नसीब नहीं होता। दूसरों की जूठनों के सहारे वे अपना जीवनयापन करते हैं।जब यही बच्चे दो वक्त की रोटी कमाना चाहते हैं तब इन्हें बाल मजदूर का हवाला देकर कई जगह काम ही नहीं दिया जाता। आखिर ये बच्चे क्या करें, कहां जाएं ताकि इनकी समस्या का समाधान हो सके। सरकार ने बाल मजदूरी के खिलाफ कानून तो बना दिए। इसे एक अपराध भी घोषित कर दिया लेकिन क्या इन बच्चों की कभी गंभीरता से सुध ली?बाल मजदूरी को जड़ से खत्म करने के लिए जरूरी है गरीबी को खत्म करना। इन बच्चों के लिए दो वक्त का खाना मुहैया कराना। इसके लिए सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। सिर्फ सरकार ही नहीं आम जनता की भी इसमें सहभागिता जरूरी है।