जो जोड़ता हैं वह धर्म और जो तोड़ता है वह अधर्म – लाटा महाराज
रायपुर
जो एक दूसरे से जोड़े वह धर्म है और एक दूसरे को तोड़े वह अधर्म है। धर्म कभी किसी को तोड़ नहीं सकता। मनुष्य किसी वर्ग जाति का हो उसे जोड़ता धर्म है, धर्म कभी छोटा बड़ा नहीं होता वह हमेशा जोड?े का ही काम करता है व्यक्ति को एक दूसरे के पास लाता है। जो एक दूसरे को तोड़ मन मुटाव पैदा करे वह अर्धम है अर्धम हमेशा तोड?े का ही काम करता है।
देवेन्द्र नगर सेक्टर – 5 गरबा मैदान में चल रही राम कथा विश्रांति पर संतश्री शंभू शरण लाटा महाराज ने श्रद्धालुओं को यह बातें बताई। उन्होने राम द्वारा लंका पर आक्रमण वाले प्रसंग पर कहा कि भगवान श्री राम ने लंकर पर आक्रमण से पूर्व भगवान की शिव की पूजा की और फिर लंका पर आक्रमण करने आगे बढ़े। उन्होंने कहा कि वह लोग जो भगवान शिव का द्रोह कर मेरा भजन पूजन करते हैं और जो मेरा द्रोह कर शिव का भजन करते हैं वे घोर नरक के पात्र हैं क्योंकि भगवान में कभी भेद नहीं करना चाहिये बिना शिव आरधाना के इच्छित फल की प्राप्ती नहीं हो सकती।
शंभू शरण लाटा महाराज ने कहा कि राजनीति में झूठ नहीं चलता लेकिन आज स्थिति विपरीत है राजनीति में झूठ के अलावा कुछ नहीं है राजनीति में नीति होनी चाहिये और उससे पहले प्रीति होनी चाहिये स्वार्थ होना चाहिये लेकिन उससे पहले परमार्थ की भावना होनी चाहिये। उन्होंने अंगद के पिता को मारा लेकिन दूत बनाकर उसे ही लंका में भेजा क्योंकि श्री राम की अंगद से प्रीति हो गई थी। हर स्थान पर नीति नहीं चलती कहीं कहीं पर प्रीति की आवश्यकता भी होती है। जब प्रीति होगी तो नीति भी अच्छी होगी। उन्होंने कहा कि राजनीति में स्वार्थ की भावना होनी चाहिये लेकिन वह स्वार्थ परमार्थ वाला होना चाहिये। कोई भी कार्य करने से पूर्व बड़ों की सलाह लेनी चाहिये और उनका आदर करना चाहिये। जो बड़ों का आदर और सलाह नहीं लेते वे कभी सफल नहीं होते। लाटा महाराज ने कहा कि मन में किसी के प्रति भी बैर नहीं रखना चाहिये दुश्मन के प्रति भी बैर नहीं रखना चाहिये उसका भी भला होना चाहिये। किसी भगवान की पूजा भजन की आवश्यकता नहीं है यदि आपने अपने मन से भेद और बैर को हटा दिया उस मन में केवल भगवान का निवास होता है ऐसे में बैर और भेद दोनों ही नहीं रहना चाहिये।
उन्होंने कहा कि चाहे जो भी युद्ध को टाला जाना चाहिये युद्ध चाहे परिवार में हो समाज में या फिर देश में। युद्ध का परिणाम तो पहले से ही मालूम रहता है एक जीतेगा एक हारेगा लेकिन इस हार जीत से कही अधिक दुख इस बात को होगा कि हम अपनों को खो देगें जो फिर कभी मिलने वाले नहीं। युद्ध कैस भी हो उसे टाला जाना चाहिये। लाटा महाराज ने कहा कि जो गुरू भगवान में भेद करे भक्त को भगवान से अलग करे ऐसे गुरू को मार देना ही उचित है। भगवान अपने भक्तों में कभी भी अभिमान नहीं आने देते अभिमान आने पर भक्त उनसे विमुख न हो जाये इसलिये वे उस अभिमान को तोडऩे के लिये उसे कष्ट देतें हैं ताकि वह सावधान हो जाये।