धन की आवश्यकता संसार में निर्वहन के लिये – लाटा महाराज
रायपुर
धन की आवश्यकता सभी को है लेकिन वह संसार में निर्वहन के लिये यदि मनुष्य धन से प्रेम करने लगता है वह फिर अपनी पत्नी,पुत्री पुत्र यहां तक कि अपने परिवार को ही भूल जाता है। धन से इतना प्रेम करने की आवश्यकता नहीं है वह संसार में खर्च के लिये है। संतश्री शंभू शरण लाटा महाराज ने देवेन्द्र में चल रही रामकथा में भगवान श्री राम जन्म पूर्व प्रसंग पर ये बातें श्रद्धालुजनों को बताई। उन्होंन कहा कि आज परिवार में शांति इसलिये नहीं हैं कि मनुष्य धन से प्रेम कर उसके पीछे भाग रहा है। धन को चित्त में रखने की जरूरत नहीं है उन्होंने कहा कि जीवन में अग्रि की कितनी आवश्यकता है बिना अग्रि के भोजन तैयार नहीं हो सकता बिना अग्रि के आरती नहीं हो सकती हवन नहीं हो सकता यहां तक अंतिम दाह संस्कार भी नहीं हो सकता लेकिन क्या मनुष्य अग्रि का संचयन करता है? उसी प्रकार से चित्त में केवल प्रेम होना चाहिये।
संत श्री शंभू शरण लाटा महाराज ने कहा कि आज परिवार में जो अशांति आई है उसका प्रमुख कारण पति-पत्नी के बीच प्रेम नहीं सत्य-समर्पण नहीं रहा। उन्होंने कहा कि राजा दशरथ अपने रानियों से जैसा प्रेम करते हैं और कौशल्या भी राजा दशरथ से उतना ही प्रेम करती हैं लेकिन साथ ही उनके प्रति पूरा समर्पण भाव है। पति का अपने पत्नी के प्रति प्रेम तो होना चाहिये साथ ही सत्य भी होना चाहिये इसी प्रकार से पत्नी को भी अपने पति के पूर्ण समर्पण रखना चाहिये। पति-पत्नी के मध्य जब सत्य-समर्पण रहेगा तो परिवार में निश्चित ही शांति रहेगी। पति -पत्नी को आपस में प्रेम करने के साथ ही उनकी प्रेम की की अनुरक्ति भगवान के चरणों में होने चाहिये। क्योंकि जिसकी भगवान में अनुरक्ति हो जाती है तो उसे फिर किसी में आसक्ति नहीं हो सकती।
संसार में हमेशा अभाव बने रहता है वह कभी पूर्ण हो नहीं सकती क्योंकि यह संसार कभी पूर्ण था ही नहीं और कभी पूर्ण भी नहीं हो सकता पूर्ण केवल परमात्मा ही हैं इसके अलावा और कोई नहीं। जीवन में यदि कमी है सेसार से मांगने के बजाये भगवान से गुरू से मांग लेना चाहिये जीवन में दुख आये तो संसार के सामने रोने के बजाय गुरू के पास भगवान पास जाकर रोना चाहिये। संसार के हंसी ही उड़ाएगा लेकिन गुरू और भगवान दुख का निवारण करगें औा साथ ही जीवन में होने वाली कमी को भी पूरा करते हैं। महाराज जी ने कहा कि प्रत्येक मनुष्य को एक स्थान ऐसा रखना चाहिये जब कभी उसे दुख हो और रोने की इच्छा तो वहां जाकर रोया जा सके। उन्होंने कहा कि जब गुरू के पास जाओ तो बिना तामझाम के जाना चाहिये छोटा बनकर जाना चाहिये और केवल अपने दुखों को नहीं बताना चाहिये बल्कि अपने सुख भी उन्हें बताने चाहिये।
लाटा महाराज ने कहा कि भगवान ने मनुष्य के लिये सारी व्यवस्थाएं की हुई यह उसके उपर में है वह उसका उपभोग व उपयोग कैसे करता है। उन्होंने कहा कि ब्राम्हण धम्र का प्रतिनिधित्व करता है,धन का प्रतिनिधित्व गाय करती है कामनाओं का प्रतिनिधित्व भगवान करते हैं और मोक्ष प्रतिनिधित्व संत करते हैं। इन व्यवस्थाओं के अनुरूप ही संसार का संचालन होता है लेकिन आज स्थिति ऐसी है कि ये व्यवस्थाएं कमजोर व दिशाहीन होते जा रही है।