November 22, 2024

अमेरिका ने दोहा में तालिबान के साथ फिर वार्ता शुरू की: सूत्र

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दोहा
अमेरिका ने शनिवार को कतर में तालिबान के साथ वार्ता बहाल की। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने करीब तीन महीने पहले अचानक राजनयिक प्रयासों को बंद कर दिया था। इस साल सितंबर में तालिबान और अमेरिका करार के करीब पहुंचते नजर आ रहे थे जिसका नतीजा होता कि सुरक्षा गारंटी के एवज में अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी होती। हालांकि, उसी महीने ट्रंप ने अचानक करीब साल भर से चल रही कोशिश को मृतप्राय करार देते हुए कैंप डेविड में गोपनीय वार्ता के लिए तालिबान प्रतिनिधियों को दिए न्योते को वापस ले लिया।

उन्होंने यह कदम अमेरिकी सैनिक के मारे जाने के बाद उठाया। अमेरिकी सूत्र ने बताया, 'अमेरिका आज दोबारा दोहा में बातचीत में शामिल होगा। चर्चा के केंद्र में हिंसा कम करना होगा जिससे अंतर अफगान वार्ता और संघर्ष विराम के लिए रास्ता बनेगा।' पिछले हफ्ते अफगानिस्तान स्थित अमेरिकी सैन्य ठिकाने के दौरे पर अचानक गए ट्रंप ने कहा था कि तालिबान समझौता करना चाहता है। बातचीत बंद होने के बावजूद अमेरिकी वार्ताकार जलमय खलीलजाद ने हाल के हफ्तों में पाकिस्तान सहित अफगानिस्तान शांति वार्ता के हितधारक देशों का दौरा किया था।

हाल में उन्होंने बंधकों की अदला-बदली कराने की व्यवस्था की जिसमें तालिबान ने तीन साल से बंधक अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई शिक्षाविदों को रिहा किया। तालिबान अबतक अफगान सरकार से बातचीत से इनकार कर रहा है। वह काबुल की सरकार को अवैध मानता है। अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी की ओर से चिंता जताए जाने के बाद अमेरिकी विदेश विभाग ने संघर्ष विराम का समर्थन किया, जो काबुल की तालिबान से बातचीत में शामिल होने से पहले प्रमुख प्राथमिकता है।

अमेरिकी विदेश विभाग ने शांति की दोबारा कोशिश करने की घोषणा करते हुए बुधवार को कहा, 'राजदूत खलीलजाद तालिबान से बातचीत में दोबारा शामिल होंगे और विभिन्न कदमों पर चर्चा करेंगे जिससे अंतर अफगान बातचीत और युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान का रास्ता निकल सके, खातसौर पर हिंसा में कमी आए और अंतत: संघर्ष विराम पर सहमति बने।'

माना जा रहा है कि समझौते के दो केंद्र बिंदु होंगे, पहला अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी और दूसरा चरपंथियों की ओर से जेहादियों को सरंक्षण नहीं देने की प्रतिबद्धता। करीब 18 साल पहले अफगानिस्तान में अमेरिकी घुसपैठ की मुख्य वजह तालिबान का अलकायदा से संबंध था। हालांकि, तालिबान के साथ सत्ता साझेदारी, क्षेत्रीय शक्तियों जैसे भारत और पाकिस्तान की भूमिका और गनी सरकार का भविष्य ऐसे मुद्दे हैं जिनपर पेंच फंस सकता है।

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