November 22, 2024

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा- नमामि गंगे प्रोजेक्ट की प्रोग्रेस रिपोर्ट दीजिए

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 प्रयागराज 
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने केंद्र सरकार से नमामि गंगे प्रोजेक्ट की कार्य प्रगति की जानकारी मांगी है। अदालत ने पूछा है कि जितने भी एसटीपी लगाए गए हैं, वे ठीक से कार्य कर रहे हैं या नहीं। उनकी क्या स्थिति है और गंगा में नालों का गंदा पानी सीधे कैसे गिराया जा रहा है। उन्हें रोकने का इंतजाम क्यों नहीं किया गया। साथ ही गंगा में न्यूनतम जल प्रवाह रखने की क्या योजना है। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर, न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा एवं न्यायमूर्ति अशोक कुमार की पूर्ण पीठ ने दिया है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के अधिवक्ता राजेश त्रिपाठी ने कहा कि इसी मुद्दे पर नमामि गंगे प्रोजेक्ट चल रहा है। इसे भी वहीं भेज दिया जाए। कोर्ट ने इसे नहीं माना।
 
एमिकस क्यूरी अरुण कुमार गुप्ता ने कोर्ट को बताया कि गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए न्यूनतम 50 फ़ीसदी पानी बनाए रखने की जरूरत है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस संबंध में केंद्र सरकार से कार्य योजना की जानकारी मांगी थी लेकिन केंद्र सरकार ने अब तक कोई जानकारी नहीं दी। राज्य सरकार से भी गंगा में गिर रहे नालों और एसटीपी के संचालन के संबंध में जवाबी हलफनामा मांगे गए थे। उसका भी जवाब दाखिल नहीं किया गया। गंगा में एसटीपी से शोधित पानी में बायोकेमिकल पॉलीफॉर्म के गंगाजल में मिलने से प्रदूषण फैला रहा है। इसलिए ट्रीटेड पानी को गंगा में न गिराकर अन्यत्र ले जाया जाए। 

प्रयागराज में छह एसटीपी हैं जो ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। 83 नालों में से 43 नाले सीधे गंगा में गिर रहे हैं। कानपुर में चर्म उद्योगों के स्थानांतरित करने के मामले में भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है। चर्म उद्योगों का गंदा पानी भी सीधे गंगा में आ रहा है। सीनियर एडवोकेट अरुण कुमार गुप्ता का कहना था कि ट्रीटमेंट के बाद भी पानी गंगा में प्रदूषण बढ़ाने का कारण है। इस पर कोर्ट ने उनसे विशेषज्ञों की सूची मांगी। ये विशेषज्ञ गंगा में जा रहा ट्रीटेड पानी प्रदूषित है या नहीं, इसकी जांच करेंगे।
 
अरुण कुमार गुप्ता ने बताया कि कोर्ट ने प्रदूषित शोधित पानी गंगा के उस पार अन्य कार्यों में लेने की योजना तैयार करने को कहा था लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई। ओमेक्स सिटी की तरफ से कहा गया कि परियोजना लगभग बनकर तैयार है लेकिन बिना किसी वैज्ञानिक आधार के 28 मार्च 2011 व 22 अप्रैल 2011 को गंगा के उच्चतम बाढ बिंदु से 500 मीटर तक किसी प्रकार के निर्माण पर रोक लगा दी गई है। कोर्ट ने इस मुद्दे पर अगली सुनवाई पर विचार करने का कहा है।

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