समझ लें उस GDP की एबीसीडी जिसे लेकर भिड़ गए हैं पॉलिटिशियन
नई दिल्ली
देश के लगातार गिरते जीडीपी के आंकड़ों के बीच भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद निशिकांत दुबे के एक बयान ने इस मसले में उबाल ला दिया है. निशिकांत दुबे ने कहा कि जीडीपी से अधिक जरूरी है आम आदमी का स्थायी आर्थिक कल्याण होना, जो हो रहा है. दुबे के इस बयान पर विपक्ष हमलावर हो गया है. इसके बाद इस पर एक बहस शुरू हो गई कि क्या वास्तव में जीडीपी किसी देश के विकास का पैमाना है? आइए विस्तार से जानते हैं कि क्या होता है जीडीपी और क्यों है यह महत्वपूर्ण.
हाल में लोकसभा में निशिकांत दुबे ने कहा कि जीडीपी 1934 में आई, इससे पहले कोई जीडीपी नहीं थी, सिर्फ जीडीपी को बाइबिल, रामायण या महाभारत मान लेना सत्य नहीं है और भविष्य में जीडीपी का बहुत ज्यादा उपयोग नहीं होगा.
वित्त वर्ष 2018-19 में देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ग्रोथ रेट 6.8 फीसदी थी. चालू वित्त वर्ष (2019-20) की दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ का आंकड़ा 4.5 फीसदी पहुंच गया है. यह करीब 6 साल में किसी एक तिमाही की सबसे बड़ी गिरावट है. सरकार साल 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर ( करीब 350 लाख करोड़ रुपये) इकोनॉमी के लक्ष्य पर जोर दे रही है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार को जीडीपी ग्रोथ की रफ्तार भी तेज करने के लिए काम करना होगा, लेकिन अभी अर्थव्यवस्था की जो रफ्तार है उसके हिसाब से यह दूर की कौड़ी लगती है, इसी वजह से जीडीपी को लेकर सवाल-जवाब तेज हो गए हैं.
जीडीपी किसी देश के आर्थिक विकास का सबसे बड़ा पैमाना है. अगर जीडीपी बढ़ता है तो इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था ज्यादा रोजगार पैदा कर रही है. इसका यह भी मतलब है कि लोगों की आर्थिक समृद्धि बढ़ रही है.
क्या होता है GDP
किसी देश की सीमा में एक निर्धारित समय के भीतर तैयार सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहते हैं. यह किसी देश के घरेलू उत्पादन का व्यापक मापन होता है और इससे किसी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत पता चलती है. इसकी गणना आमतौर पर सालाना होती है, लेकिन भारत में इसे हर तीन महीने यानी तिमाही भी आंका जाता है. कुछ साल पहले इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग और कंप्यूटर जैसी अलग-अलग सेवाओं यानी सर्विस सेक्टर को भी जोड़ दिया गया.
जीडीपी दो तरह की होता है नॉमिनल जीडीपी और रियल जीडीपी. नॉमिनल जीडीपी सभी आंकड़ों का मौजूदा कीमतों पर योग होता है, लेकिन रियल जीडीपी में महंगाई के असर को भी समायोजित कर लिया जाता है. यानी अगर किसी वस्तु के मूल्य में 10 रुपये की बढ़त हुई है और महंगाई 4 फीसदी है तो उसके रियल मूल्य में बढ़त 6 फीसदी ही मानी जाएगी. केंद्र सरकार ने देश को जो पांच ट्रिलियन इकनॉमी बनाने की बात कही है, उसके लिए करेंट प्राइस यानी नॉमिनल जीडीपी को ही आधार बनाया गया है.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार अप्रैल 2019 तक भारत का कुल जीडीपी (नॉमिनल यानी मौजूदा कीमतों पर) 2.972 अरब डॉलर था. दुनिया के कुल जीडीपी में भारत का हिस्सा करीब 3.36 फीसदी है. इसी प्रकार भारत का रियल जीडीपी (2011-12 की स्थिर कीमतों पर) 140.78 लाख करोड़ रुपये था.
सबसे पहले कब आया था कॉन्सेप्ट
साल 1654 और 1676 के बीच चले डच और अंग्रेजों के बीच अनुचित टैक्स को लेकर हुई लड़ाई के दौरान सबसे पहले जमीदारों की आलोचना करते हुए विलियम पेट्टी ने जीडीपी जैसी अवधारणा पेश की. हालांकि जीडीपी की आधुनिक अवधारणा सबसे पहले 1934 में अमेरिकी कांग्रेस रिपोर्ट के लिए सिमोन कुनजेट ने पेश किया. कुनजेट ने कहा कि इसे कल्याणकारी कार्यों के मापन के रूप में नहीं इस्तेमाल किया जा सकता.
हालांकि, 1944 के ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के बाद ही देशों की अर्थव्यवस्था को मापने के लिए जीडीपी का इस्तेमाल किया जाने लगा. पहले जीडीपी में देश में रहने वाले और देश से बाहर रहने वाले सभी नागरिकों की आय को जोड़ा जाता था, जिसे अब ग्रॉस नेशनल प्रोडक्ट कहा जाता है.