बसना के मंगलू दिवान ,के पास न छत है न तन ढाकने को कपडा ,आंखों से मजूर खा रहा दर दर की ठोकर
जोगी एक्सप्रेस
अनुराग नायक बसना
बसना, मुसाफिर हूं यारों, न घर है न ठिकाना मुझे चलते जाना हैं, किसी फिल्म का यह गाना इस व्यक्ति पर सटीक बैठ रहा हे। परेशान निशक्त आंखों व शाररिक रूप से कमजोर यह व्यक्ति इसी पीड़ा के साथ अपना जीवन यापन करने पर मजबूर हैं,न पहनने को कपडा ,न सर छुपाने को छत इंसानियत और इंसानों के लिए ये सवाल बन कर खड़ा है ? बसना ब्लॉक के ग्राम पंचायत लोहड़ीपुर के आंखों व शाररिक रूप से कमजोर मंगलू दिवान नाम का यह व्यक्ति पिछले कई वर्षों से भीख मांग कर जीवन यापन करने पर मजबूर है। इसकी देख भाल या सुनने वाला कोई मददगार नहीं है । इस व्यक्ति को राशन , पेंशन योजना का लाभ भी नहीं मिल रहा है।। फलस्वरूप इस व्यक्ति को भीख मांगकर जीवन यापन करने मजबूर होना पड़ रहा है। सरकारी मदद के अभाव में इनके आगे जीवन किसी बोझ से कम नहीं है। ये व्यक्ति नारकीय जीवन जीने पर विवश हैं।
शाररिक रूप से कमजोर होने की पीड़ा इससे अच्छा कौन जानता है, जो दर-दर की ठोकरें खा रहे है। यदि शासन कोई मदद करता है तो निश्चय ही इस का जीवन सुधर सकता है ,समाजसेवी संगठनों ने भी कभी इस गरीब की तरफ ध्यान नहीं दिया ,मंगलू दीवान को अब कोई फर्क नहीं पड़ता , सवाल के जवाब में सिर्फ इतना ही कहता है कोई टेंसन नहीं अपना तो उपरवाला है !