यहां मिली महापाषाण काल के समय की ओखली, पुरातत्वविदों के बीच बनी चर्चा का विषय
द्वाराहाट(अल्मोड़ा)
उत्तराखंड के अल्मोड़ा में पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान जालली-मासी मोटर मार्ग पर सुरेग्वेल मुनियाचौरा गांव में महापाषाण काल की कापमार्क मेगलिथिक ओखली मिली है। यह ओखली पाली पछाऊं क्षेत्र के सांस्कृतिक इतिहास को बताती महत्वपूर्ण पुरातात्विक अवशेष मानी जा रही है।
दिल्ली विवि के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मोहन चंद्र तिवारी ने विगत दिवस सुरेग्वेल क्षेत्र में पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान मुनिया चौरा गांव में महापाषाण काल की कापमार्क मेगलिथिक ओखली को खोजा है।
उन्होंने बताया कि कापमार्क मेगलिथिक अवशेषों के शोधकर्ता विद्वानों के लिए यह पुरातात्विक अवशेष उत्तराखंड के आद्यकालीन इतिहास की कड़ियों को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण साक्ष्य सिद्ध हो सकती है।
स्लेटी रंग के ठोस आयताकार पाषाण खंड में अत्यंत कलात्मक शैली में उकेरी गई यह ओखली आकार और बनावट की दृष्टि से डेढ़ फुट लंबी, सवा फुट चौड़ी और एक फुट गहरी मेगलिथिक श्रेणी की महाशमकालीन ओखली के अंतर्गत आती है।
इसका कालखंड तीन-चार हजार सह शताब्दी पूर्व तक माना जा रहा है। उन्होंने बताया कि जोयूं गांव में भी ऐसी ही डेढ़ दर्जन से अधिक ओखलियां इसी शैली में तराशी गईं हैं, जो पुरातत्वविदों के बीच विशेष चर्चा का विषय बनी हुई हैं।
मुनियाचौरा गांव के बचीराम छिमवाल ने बताया कि, यह ओखली पारंपरिक रूप से पांडवों द्वारा निर्मित बताई जाती है। इस ओखली को यहां किस कार्य के लिए बनाया गया इसकी जानकारी स्थानीय लोगों को भी नहीं है। पीढ़ी दर पीढ़ी बुजुर्गों से से सुनते आ रहे हैं।
इसके इतिहास के बारे में भी किसी को जानकारी नहीं है। पुरातत्वविद् और इतिहासकार डॉ. यशोधर मठपाल ने 1996 में प्रकाशित द रॉक आर्ट ऑफ कुमाऊं हिमालय नामक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अपनी शोध पुस्तक में जोयूं की ग्यारह और बाइस ओखलियों के अलावा सुरेग्वेल स्थित मुनिया की पहाड़ी में स्थित ओखलियों के भी पुरातात्विक महत्व को उजागर किया गया था।
पूर्व एसोसिएट प्रो. तिवारी के पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान अकस्मात इस ओखली के मिलने से प्रमाणित होता है कि आद्य इतिहास काल में मुनिया चौरा की इन ओखलियों का प्रयोग धार्मिक प्रयोजनों के अतिरिक्त वैदिक कालीन कृषि सभ्यता के किसान अनाज कूटने, तेल निकालने, यज्ञ के अवसर पर चावलों को कूटने के लिए करते होंगे।