रायपुर : लीवर सिरोसिस का इलाज करने वाला मध्य भारत का पहला अस्पताल बना छत्तीसगढ़ का डॉ. अम्बेडकर अस्पताल : डिजिटल सब्सट्रेक्शन एन्जियोग्राफी से नसों से सम्बन्धित सभी प्रकार की बीमारियों के इलाज की सुविधा
रायपुर.राज्य के सबसे बड़े अस्पताल डॉ. भीमराव अम्बेडकर अस्पताल में डी. एस. ए. मशीन से अब तक नसों से सम्बन्धित समस्त प्रकार की बीमारियों का इलाज होता आया है, लेकिन हाल ही में इस मशीन से लीवर (यकृत) सिरोसिस का इलाज शुरू होने से इस अस्पताल का नाम डी. एस. ए. के जरिये लीवर की बीमारी का इलाज करने वाले मध्य भारत के प्रथम अस्पताल में शामिल हो गया है। हाल ही में डीएसए मशीन से टी.आई.पी.एस. ( ट्रांसजुगलर इंट्राहिपेटिक पोर्टाेसिस्टेमिक शंट) प्रकिया के माध्यम से चंापा और उरला, रायपुर से आये दो मरीजों का इलाज किया गया। इस बीमारी में तिल्ली (स्प्लीन) और लीवर के खून की नसें पूरी तरह फूल गयी थीं जिससे यकृत की शिराओं में उच्च रक्तचाप बढ़ने लगा था, जिसे चिकित्सकीय भाषा में पोर्टल हायपरटेंशन कहते हैं। यह आंतों के रक्तस्राव और पेट के भीतर तरल पदार्थ के निर्माण को जन्म देता है। डॉ. अम्बेडकर अस्पताल में वर्ष 2012 से अब तक राज्य के 1980 मरीज डी. एस. ए. मशीन के जरिये नसों से संबंधित गंभीर बीमारियों से निजात पा चुके हैं। इसके जरिये डायग्नोस्टिक तथा थेरेपेटिक अर्थात् जांच व इलाज दोनों किया जाता है। इसमें एंजियोग्राफी, एम्बोलाइजेशन, क्वालिंग, स्टंटिंग, स्क्लेरोथेरेपी, थ्रॉम्ब्रोलाइसिस, एंजियोप्लास्टी, डीजे स्टंटिंग, पीसीएनन, और पीटीबीटी जैसे प्रोसीजर किये जाते हैं।
नसों के माध्यम से बीमारी का इलाज करने वाले चिकित्सालय के रेडियोडायग्नोसिस विभाग के इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट डॉ. सी.डी. साहू कहते हैं हमारे पास चांपा से संुदरलाल वर्मा (परिवर्तित नाम) पिता संतकुमार वर्मा, उम्र 35 वर्ष अगस्त महीने के प्रथम सप्ताह में इलाज के लिये आया। उसके पेट में काफी मात्रा में पानी का जमाव हो गया था। स्थिति बिगड़ती जा रही थी। ऐसे में हमने बिना देरी किये हुए उसकी समस्त जांच कराई और इलाज की योजना बनाई। गर्दन के आंतरिक नसों के माध्यम से शंट डालकर यकृत की नसों तक पहुंचकर, रक्त वाहिनों में परिसंचरण के लिए वैकल्पिक मार्ग का निर्माण कर लीवर के प्रभावी नाड़ी प्रतिरोध (हायपर टेंशन) को कम किया। ट्रांसजुगलर इंट्राहिपेटिक पोर्टाेसिस्टेमिक शंटिंग (टीआईपीएस या टिप्स) प्रक्रिया के माध्यम से लीवर के भीतर एक कृत्रिम चैनल बनाया जो आंतरिक पोर्टल शिरा और बाह्य हिपेटिक नस के बीच संचार स्थापित करता है। मरीज अब पहले से स्वस्थ्य है तथा फॉलोअप के लिये आ रहा है।
बढ़ाई जा सकती है ट्रांसप्लांट की अवधि
सिरोसिस में लीवर से संबंधित कई समस्याओं के लक्षण एक साथ देखने को मिलते हैं। इसमें लीवर के टिशूज क्षतिग्रस्त होने लगते हैं। सिरोसिस (शोध) बीमारी, हिपेटिक पोर्टल सिस्टम में उच्च रक्तचाप का प्रमुख कारण है, जिससे क्रॉनिक लीवर फेल्यिर की संभावना निन्यानवे प्रतिशत रहती है। ऐसे मरीज जिनके पास अंतिम विकल्प केवल लीवर ट्रांसप्लांट रह जाता है उनके लिये यह बेहद किफायती इलाज है। चूंकि लीवर ट्रांसप्लांट प्रक्रिया में ट्रांसप्लांट के लिए लीवर मिलने में काफी वक्त लग सकता है, ऐसे में डी. एस. ए. मशीन से किये जाने वाले टिप्स प्रोसीजर के जरिये लीवर ट्रांसप्लांट की अवधि को बढ़ाई जा सकती है और मरीज की जीवन क्षमता बढ़ सकती है।