अयोध्या विवाद में आखिरी सुनवाईः जानें क्या होता है ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’
नई दिल्ली
अयोध्या मामले में फैसले का इंतजार कर रहे लोगों को ये जान लेना चाहिए कि इसमें एक और चीज अपनी भूमिका अदा कर सकती है. वो है मोल्डिंग ऑफ रिलीफ.अब ये क्या बला है. जी हां, ये तो तय है कि 40 दिन की पूरी सुनवाई के दौरान सबसे ज्यादा जिस शब्द ने चौंकाया होगा वो है लीगल टर्म यानी कानूनी जुमला, तो यही है मोल्डिंग ऑफ रिलीफ. आइए हम बताते हैं कि आखिर ये मोल्डिंग क्या है.
कोर्ट में कोई भी फरियादी अपनी एक मांग लेकर जाता है, जिसके मिलने को वो इंसाफ मिलना कहता है. अयोध्या मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ हिंदू-मुसलमान यानी मंदिर और मस्जिद के पैरोकार सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. सभी पक्षकारों का कहना था कि उन्हें पूरी विवादित जमीन चाहिए. वे ही असली मालिक हैं. उनका ही अधिकार और कब्जा होना चाहिए.
कोर्ट ने मामला सुना भी. लेकिन अब ये मामला चूंकि काफी संवेदनशील है लिहाजा कोर्ट ने सोचा है कि इंसाफ पूरे अर्थों में हो भी और सभी पक्षों को इसका अहसास भी हो. इसलिए सबका ध्यान रखकर इंसाफ कैसे हो, तभी ये प्रावधान किया गया.
अब कोर्ट ने खुद संकेत दिया कि सभी पक्षकारों को सुनने के बाद वह मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर भी चर्चा करेगा. दरअसल, मोल्डिंग ऑफ रिलीफ का प्रावधान सिविल सूट वाले मैटर के लिए होता है. खासकर मालिकाना हक यानी टाइटल सूट डिक्री के सिलसिले में.
सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 और सिविल प्रोसिजर कोड यानी सीपीसी की धारा 151 के तहत इस अधिकार का इस्तेमाल करता है.
मोल्डिंग ऑफ रिलीफ से क्या होता है
अब आइए जानें कि इसके जरिए होता क्या है? कानून के जानकारों के मुताबिक अयोध्या मामला पूरे अदालती और न्यायिक इतिहास में रेयरेस्ट और रेयर मामलों में से एक है. इसमें विवाद का असली यानी मूल ट्रायल हाई कोर्ट में हुआ और पहली अपील सुप्रीम कोर्ट सुन रहा है. लिहाजा मोल्डिंग ऑफ रिलीफ का मतलब ये हुआ कि याचिकाकर्ता ने जो मांग कोर्ट से की है अगर वो नहीं मिलती तो विकल्प क्या हो जो उसे दिया जा सके. यानी दूसरे शब्दों में कहें तो सांत्वना पुरस्कार.
इसका सीधा मतलब ये है कि दो दावेदारों के विवाद वाली जमीन का मालिकाना हक किसी एक पक्ष को दिया जाए तो दूसरा पक्ष इसके बदले क्या ले सकता है. हो सकता है कि कोर्ट दूसरे पक्ष को अधिग्रहित 67 एकड़ जमीन का एक हिस्सा दे या फिर कुछ और.
दोनों पक्ष अपनी मांग पर अड़े
कोर्ट ने तो मोल्डिंग ऑफ रिलीफ की बात की तो मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन ने भी इस बाबत संकेत दिए कि अगर मोल्डिंग की बात है तो हमें 6 दिसंबर 1992 के पहले वाली हालत की मस्जिद की इमारत चाहिए. इसी तरह हिंदू पक्षकारों से हमने बात की तो उनका कहना है कि हमें तो राम जन्मस्थान चाहिए. इसके अलावा कुछ और नहीं. फिलहाल मामले की सुनवाई बिल्कुल आखिरी चरण में है. लिहाजा अब मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर भी चर्चा तो दिलचस्प ही होगी.