महायोगी गोरखनाथ के बगैर भारत की आध्यात्मिक परंपरा शून्य: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
लखनऊ-मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने गुरुवार को हिन्दी संस्थान के यशपाल सभागार में युग प्रवर्तक महायोगी गोरखनाथ पर केंद्रित त्रिदिवसीय संगोष्ठी का दीप प्रज्ज्वलित कर शुभारंभ किया। योगी ने कहा कि मेरे लिए यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है। हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ने ओशो से जब आध्यात्म के बारे में पूछा तो, ओशो ने चार नाम लिए थे, उसमें से महायोगी गोरखनाथ जी का भी नाम था। उन्होंने कहा कि गोरखनाथ जी के बगैर भारत की आध्यात्मिक परंपरा शून्य है।
योगी आदित्यनाथ ने नाथ संप्रदाय की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वृहत्तर भारत मे महायोगी गोरखनाथ की महा प्रतिष्ठा है। मैं पिछले 25 वर्ष से इस परंपरा से जुड़ा हूं। जब हम ऐसे महापुरुष के बारे में सोचते हैं। ऐसे में एक ओर सम्प्रदाय और आस्था का पक्ष होता है। दूसरा इतिहास और साहित्य का पक्ष है। दोनों का समन्वय कभी होता है तो कभी नहीं हो पाता है। इस विषय को जानने के लिए सभी में जिज्ञासा होती है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गुरु गोरखनाथ ही नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे। वह शिव स्वरूप माने गए हैं। गुरु गोरखनाथ की मान्यता भारत के साथ पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश तथा म्यांमार में भी है। महायोगी गोरखनाथ जी वहां की कई लोकगाथाओं में विद्यमान हैं। उनकी उपस्थिति इतिहास और साहित्य की दृष्टि में अलग-अलग कालखंड में है। देश में कोई भी प्रांत ऐसा नहीं है, जहां महायोगी गोरखनाथ जी का परंपरा विद्यमान नहीं है। उत्तराखंड की जागर पंरपरा भी गोरखनाथ जी से संबंधित है। यह पंरपरा भी आज भी उत्तराखंड में है।
मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सिंगापुर से एक सिख परिवार गोरखपुर मिलने आया। तब उस सिख परिवार ने बताया कि वह पाकिस्तान में ननकाना साहिब में माथा टेकने गया था। वहां उसने पेशावर के पास पहाड़ी पर महायोगी गोरखनाथ को लेकर यात्रा होती है। गोरखनाथ से जुड़ाव पाकिस्तान में भी हैं। भारत के हरेक प्रांत में महायोगी गोरखनाथ जी अनुयायी विद्यमान हैं। उन्होंने कहा कि मलिक मोहम्मद जायसी ने भी अपने यहां गोरखनाथ का मंदिर बनाया था। उनका दृष्टिकोण राष्ट्रप्रेम का रहा है। उनका कोई साम्प्रदायिक दृष्टिकोण नहीं है। जाति व भाषा का बंधन नहीं है। हर भाषा में उनका साहित्य मिलेगा।
मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि नेपाल में तीन कालखंड में उनकी उपस्थिति रही है। काठमांडू में मृगस्थली में एक समय राजा बौद्ध हो गए थे। तब गोरखनाथ खुद नेपाल गए, कहा जाता है कि राजा ने उनकी उपेक्षा की। तब गुरु गोरखनाथ ने वहां मेघों को बांध दिया था। नेपाल में तब 12 वर्ष बारिश नहीं हुई थी। तब राजा ने माफी मांगी। आज तक इसको लेकर वहां हर वर्ष बड़ा आयोजन होता है। उन्होंने कहा कि बलरामपुर के तुलसीपुर में देवीपाटन में नाथ सम्प्रदाय का मंदिर है। यहां आज भी वासंतिक नवरात्र में नेपाल से हजारों श्रद्धालु आते हैं। नेपाल के दान से यह जुड़ाव है। 10वीं शताब्दी में नवीन नेपाल की स्थापना गुरु गोरखनाथ ने की थी। वहां अभी भी गुरु जी के नाम से मुद्रा है।
मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि कोयम्बटूर में मेरे सम्प्रदाय से जुड़े लोग आए थे। मैं मिलने गया। सब लोग नाथ सम्प्रदाय से जुड़े थे। वहां भी लाखों की संख्या में अनुयायी थे। आप जिसे परिजात कहते हैं उसका एक नाम गोरख इमली भी है। मैं एक वैद्य से चर्चा कर रहा था। उन्होंने बताया कि किसी भी औषधि का अर्क होता है। अर्क की एक पद्धति है। गोरख इमली भी उससे जुड़ी है।
योगी ने कहा कि महायोगी गोरखनाथ जी का एक पक्ष योग भी है। महर्षि पतंजलि ने योग का दर्शन दिया था। मगर गुरु गोरखनाथ को उसको शुद्धि के रूप में सभी के लिए जरूरी बताया था। उन्होंने इस प्रक्रिया के बारे में बताया था कि इसके सात आयाम हैं। योग के उच्च सोपान तक पहुंचने के लिए उन्होंने आयाम बनाया था। शरीर के सात साधन है। पहला शोधन, जिसमें षट्कर्म होते हैं। दृढ़ता दूसरा जिसमें आसन का अभ्यास। स्थिरता के लिए प्राणायाम, धैर्य। यही क्रियाएं अहम हैं। शरीर के चन्द्र और सूर्य के बीच समन्वय ही हठयोग है। गोरखनाथ कहते हैं कि मन की चंचल वृत्तियों को काबू करना मुश्किल है। इसी कारण आप प्राणों को साधकर प्राणायाम करें।