मैं कविता में भी कहानी लिखता हूँ – विनोद कुमार शुक्ल
रायपुर-नगर में आयोजित कथा समाख्या 4 के उद्धाटन सत्र को संबोधित करते हुए कवि कथाकार विनोद कुमार शुक्ल ने कहा कि आज के समय में गाँव बहुत तेज़ी के साथ बदल रहे हैं । वे स्मार्ट सिटी में तब्दील होने की ओर बढ़ रहे हैं । बाज़ार उन्हे अपने ढंग से बदल रहा है । ऐसी स्थिति में बाज़ार से लड़ना जरूरी हो गया है । बाज़ार से लड़ने की जो जरूरी ताक़त थी उसकी ओर गांधीजी ने संकेत किया था कि अपनी ज़रूरतों को कम कर दो , बाज़ार हावी नही होगा ।बाज़ार ने सबको खरीदार बना दिया है ।छोटे से छोटा बच्चा भी कस्टमर हो गया है ।तमाम रिश्ते बाज़ार तय करता है । श्री शुक्ल ने कहा कि कहानी सब जगह मौजूद है । हम जो कुछ भी कहना चाहते हैं वह कहानी है । हम कहानी के साथ देर तक रहना चाहें तो वो उपन्यास बन जाता है । मैं तो कविता में भी कहानी कहता हूँ ।कहानी लोगों से बात करने का तरीक़ा है ।कथा दरअसल सबका अनुभव है ।
कथादेश ,छत्तीसगढ फिल्म एंड विजुअल कथा विमर्श के इस चौथे आयोजन मे आज की कहानी : बदलते गाँव की दास्तान पर तीन दिवसीय चर्चा गोष्ठी में देशभर के दस कथाकार , आलोचक भाग ले रहे हैं ।
अध्यक्षता करते हुए डॉ राजेन्द्र मिश्र ने कहा कि गाँव के जीवन को गाँव से बाहर रहकर नहीं समझा जा सकता । आज का मध्यवर्गीय लेखक गाँव से बाहर रहकर उसकी कहानी लिख रहा है । अगर इस तरह कहानी लिखी जायेगी तो वो अखबारी रपट की तरह होगी ।गाँव के तात्कालिक अनुभव को लेकर उसकी त्वरित अभिव्यक्ति कहानी नहीं होती ।उसके अनुभव को देर तक पकना होता है ।टाल्सटाय का वार एंड पीस क्रिमिया युद्ध के बरसो बाद लिखा गया । भारत विभाजन की कथा लेखकों ने दशकों बाद रची । इसलिए गाँव की कहानी तात्कालिकता से मुक्त होगी तभी वह उत्कृष्ट रचना होगी ।
गोष्ठी में विषय प्रवर्तन करते हुए आलोचक जयप्रकाश ने औपनिवेशिक दौर के यथार्थ के दबाव में प्रेमचंद के समय में कहानियाँ लिखी गई । आज पूँजी , टेक्नॉलाजी और बाज़ार के दबाव में बन रहे यथार्थ के संदर्भ में कहानियाँ लिखी जा रही हैं ।
गोष्ठी के वक्ता कथाकार ऋषिकेश सुलभ (पटना )ने कहा कि आज गाँव का यथार्थ बदल गया है । गाँव में किसान के पास दस बीघा खेती है तो वह उसे छोड़कर शहर की ओर भागना चाहता है । गाँव में लूटपाट और हिंसा का एक नया तंत्र विकसित हो गया है ।हिन्दी का कथाकार इस बदले हुए गाँव की कहानी लिख रहा है ।
कथाकार आशुतोष ( सागर ) ने अपने विस्तृत वक्तव्य में कहा कि गाँव के यथार्थ पर आज वैश्वीकरण का प्रभाव साफ दिखाई दे रहा है लेकिन उससे कहीं अधिक शासन की नीतियों के असर से ग्रामीण जीवन में परिवर्तन हुआ है । किसान पूरी तरह परावलंबी हो गया है । इसका साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए उन्होंने अनेक युवा कथाकारो की कहानियों का उल्लेख किया । अंत में प्रश्नोत्तर सत्र में कथा समाख्या के प्रतिभागियों ने श्रोताओं के साथ संवाद किया । इसी क्रम में मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा ने औपनिवेशिक समय के गाँव और समकालीन गाँव के जीवन में हुए परिवर्तनों के क़ानूनी और समाज शास्त्रीय पहलुओं का सारगर्भित विश्लेषण किया ।छत्तीसगढ विजुअल आर्ट सोसाइटी के अध्यक्ष सुभाष मिश्र ने कार्यक्रम का संचालन किया । कथाकार आंनद हर्षुल ने आभार माना । मंच पर अतिथि कहानीकार सत्यनारायण ( जोधपुर ) , हरिनारायण ( दिल्ली ) उपस्थित थे ।