त्याग और समर्पण की सीख देता है बकरीद का त्यौहार – अब्दुलसत्तार
सराईपाली • इस्लाम को मानने वाले लोगों के लिए बकरीद का विशेष महत्व है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार हजरत इब्राहिम अपने बेटे हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान करने जा रहे थे। तब अल्लाह ने उनके नेक जज्बे को देखते हुए उनके बेटे को जीवनदान दे दिया।यह पर्व इसी की याद में मनाया जाता है। इसके बाद अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की नहीं जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू हो गया। स्थानीय ईदगाह में बकरीद की नमाज़ ईमाम अब्दुस्सत्तार अशरफी की इमामत में अदा हुई, ईमाम अशरफी ने कौम को संबोधित करते हुए आज के दिन के इतिहास पर शरीअत की रोशनी में प्रकाश डालते हुए कुरबानी का सही तरीका बयान किया, समर्पित भाव एवं त्याग को मूल बताया तथा सिराते मुस्तकीम पर अमल करने की हिदायत दी.
आज के ही दिन हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। जब अपना काम पूरा करने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने जिन्दा खड़ा हुआ देखा।बेदी पर कटा हुआ दुम्बा (सउदी में पाया जाने वाला भेंड़ जैसा जानवर) पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा है।
बकरीद का दिन फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता है।इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है।इसी वजह से बकरीद पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है।इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं।इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों में बांट दिए जाते हैं । ऐसा करके मुस्लिम इस बात का पैगाम देते हैं कि अपने दिल की करीबी चीज़ भी हम दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर देते हैं। बाद नमाज और खुत्बे के देश की अखंडता एवं एकता के लिये दुआएं की गई, अशरफी जब केरल बाढ़ पीड़ितों की सलामती के लिये दुआएं मांगने लगे तब उपस्थित सभी लोगों की आंखें नम हो गई. मुस्लिम समाज के अध्यक्ष मुजफ्फर खान, सदस्य जनाब खान, तबारक हुसैन, फारूक हुसैन, आशिक अली, गालिब हुसैन, मज़हर खान, मो. इस्लाम, तौसीफ साहिब, मुस्तफीज़ आलम, मो. शकील आदि ने पूरे समाज को मुबारकबाद पेश की. बकरीद के मद्देनजर पुलिस प्रशासन भी मुस्तैद रहा.