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जोगी एक्सप्रेस
खबर हूँ अखबार की …..
सत्य को असत्य बना कर असत्य को सत्य बना परोसा जाता …..
झांकती थी मेरी कमजोरियों मेरे गरीब चीधडो से ….
लेकिन पहना दिए परिधान रगीन नए से ….
हाँ मैं बिकती खबर हूँ अखबार की….
सत्ता के सफेद -पोश की सुर्खियों मे बटोरा था मुझे
काले से इतिहास के …
ये किसने गुलाबी कर दिए …
हाँ मैं खबर हूँ उस अखबार की ….
जमीर बिकता था किसी दुर्घटना पे …
मुआवजे की रकम भी डकार गये रहनुमा ये …
लोकतत्र की लडाई का जर जर प्रचार हूँ…
हाँ खबर हूँ अखबार की …
गरीबी ,आत्महत्या, भ्रुणहत्या,हत्या से भरे अक्षर-2
डूबते लहू की भेंट चढते – गढते मेरे ….
हाँ मैं खबर हूँ उस अखबार की…..
गाँधी के विचारों की अस्थियाँ मेरे दर्द की…
कतरा कतरा कह रही मेरे ईमान की कहानी ….
हाँ मैं उस खबर की खबर हूँ…
दार्शनिक मदारी बन रहा है… डुग डुगी बजाकर…
आत्मा को नचा रहा है ..नाच यहीं….पर
हाँ मैं खबर हूँ उस अखबार की…… ,
*** सुनन्दा *****