October 25, 2024

पुलिस को बालकों के साथ सामान्य अपराधियों जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए: श्री विज

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‘किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख एवं संरक्षण) अधिनियम 2015‘ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला संपन्न

रायपुर, पुलिस मुख्यालय नया रायपुर (अपराध अनुसंधान विभाग) द्वारा ‘किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख एवं संरक्षण) अधिनियम 2015‘ विषय पर आयोजित एक दिवसीय किार्यशाला का शुभारंभ अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध अनुसंधान विभाग) श्री आर.के. विज ने आज पुलिस लाईन रायपुर स्थित ट्रांजिट मेस के सभाकक्ष में किया। श्री विज ने कार्यशाला में प्रदेश के सभी जिलों से आए पुलिस अधिकारियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि बच्चों को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराने की सबसे अधिक जिम्मेदारी उसके परिवार और विद्यालय की होती है। इसके बावजूद भी वर्तमान परिवेश में जिस तरह से बालकों के विरूद्ध और बालकों द्वारा घटित अपराधों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, इस पर नियंत्रण एवं बालकों के सर्वोत्तम हित में कार्य करने के लिए पुलिस की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 व आदेश नियम 2016 में बालकों के हित को दृष्टिगत रखते हुए उन्हें सुरक्षा कवच प्रदान किया गया है। ऐसे में पुलिस अधिकारियों को बच्चों के मामले में सामान्य अपराधियों जैसे व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। विशेषतौर पर महिला पुलिस अधिकारियों को ज्यादा संवेदनशील होना पड़ेगा जिससे शोषण से पीड़ित बच्चे महिला पुलिस अधिकारी को अपनी बात आसनी से बता सकें।
श्री विज ने कहा कि पुलिस अधिकारियों को प्रत्येक थाने में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से यह भी पता लगाने का भी प्रयास करना चाहिए कि ऐसी कौन सी परिस्थितियां या वातावरण जिम्मेदार है कि बच्चों का शोषण हुआ अथवा बच्चे का ध्यान अपराध की ओर आकर्षित हुआ, ऐसे कई कारण हो सकते हैै जैसे कि बच्चे के माता-पिता दोनां कामकाजी हो या मजदूरी करते हो या अन्य परिवारिक कारण भी हो सकते है। अतः सबको मिलकर इन कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस अधिकारीयों को समय-समय स्कूलों के अध्यापकों के साथ मीटिंग करके बच्चों के प्रति जागरूकता लाने का प्रयास भी करने चाहिए। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने कहा कि राज्य के प्रत्येक थाना में एक अधिकारी को बच्चों के शोषण मामले में पूर्ण रूप से प्रशिक्षित होना चाहिए और पुलिस को स्थानीय क्षेत्र की बोली और भाषा भी आनी चाहिए। विशेषकर आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पदस्थ पुलिस अधिकारियों को अपनी सोच में परिवर्तन लाकर और संवेदनशीलता से कार्य करना चाहिए।
श्री विज ने गुमशुदा बच्चों के तलाश के मामले में बताया कि यह समस्या देशभर में है, इससे छत्तीसगढ़ भी ज्यादा प्रभावित है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर राज्य पुलिस द्वारा अभियान चलाकर गुमशुदा बच्चों की तलाश करने का कार्य किया गया है। इसमें अच्छी सफलता भी मिली है, फिर भी बच्चों की गुमशुदगी के मामले में वृद्धि हो रही है। पुलिस अधिकारियों को बच्चों की गुमशुदगी के प्रकरण भी तत्काल दर्ज कर कार्रवाई प्रारंभ करना चाहिए। श्री विज ने पुलिस अधिकारियों सेे आव्हान करते हुए कहा कि पुलिस मुख्यालय द्वारा इस प्रकार की कार्यशाला का आयोजन समय-समय पर किया जाएगा। इन कार्यशालाओं में प्राप्त जानकारी को मैदानी स्तर पर कितनी अच्छी तरह से क्रियान्वित किया जाना ज्यादा महत्वपूर्ण है।
कार्यशाला में छत्तीसगढ़ बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष श्रीमति प्रभा दुबे ने आयोग की शक्तियों, कार्यप्रणाली और दायित्वों के संबंध में विस्तार पूर्वक बताया। महिला बाल विकास विभाग की संयुक्त संचालक श्रीमती अर्चना राणा ने किशोर न्याय अधिनियिम में प्रावधानिक अनुसंधान, विधि विरूद्ध बालकों की देखरेख तथा सरंक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों के संबंध में राज्य अधोसंरचना की जानकारी दी। कार्यशाला में बाल मनोविज्ञान और बच्चों के विकास विषय पर डॉ. अम्बा सेठी ने अपने विचार व्यक्त किए। बाल यौन शोषण के प्रकरणों पर पुलिस एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमिका के संबंध में एन.जी.ओ. प्रतिनिधि सुश्री रेशमा नाकोडी ने व्याख्यान दिया। कार्यशाला आयोजन की नोडल अधिकारी एवं अतिरिक्त पुलिस महानिरीक्षक श्रीमती पूजा अग्रवाल ने आभार प्रदर्शन किया। इस अवसर पर पुलिस विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे।

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