November 22, 2024

होली के रंग में सराबोर हुई जनता ,धूमधाम से मना होली का त्यौहार :डी जे की धमक के आगे नगाड़े हुए विलुप्त

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गौरेला,सोहैल आलम  – पुलिस प्रशासन के साथ चौकस व्यवस्था एवं चौकचौराहे मैं होली के 1 दिन पूर्व से की गई कड़ी व्यवस्था के चलते गौरेला में होली के पर्व पूरी तरह शांति एवं सौहार्द के साथ मनाया गया सुबह से देर रात तक लोग एक-दूसरे को रंगों से सराबोर करते रहे पूरा क्षेत्र होली की मस्ती में सराबोर रहा नगर के प्रमुख चौराहे संजय चौक गांधी चौक अमरकंटक चौक रेस्ट हाउस रोड मंगली बाजार आदि जगहों में होलिका दहन के दिन ही कड़ी पुलिस व्यवस्था रही जिसके चलते हुए दंगों के हौसले पस्त रहे जिससे होली का त्यौहार पूरी तरह शांति के साथ संपन्न हो सका होली के दिन नागरिकों की सुविधा के लिए प्रशासन ने सभी संबंधित विभाग मुस्तैद रहे जिससे लोग को किसी तरह की परेशानी नहीं हुई नगर पंचायत गौरेला द्वारा पेयजल एवं रोड के खराब ना होने को देखते हुए जगह जगह पर होलिका दहन के लिए रेत गिराई गई जिस पर होली का जलाई गई विपिन चौक-चौराहों में जहां पुलिस जवान तैनात रहे तो पुलिस अधिकारी गण राउंड लेकर सतत निगरानी करते रहे जिसमें असामाजिक तत्व के हौसले पस्त रहे होली के 1 दिन पूर्व ही फ्लैग मार्च निकालकर पुलिस ने लोगों को संदेश  दे  दिया था वही जहां-जहां होलिका दहन होना था सभी स्थानों पर लगातार निरीक्षण किया जा रहा था कुछ छुटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो गौरेला थाना क्षेत्र में शांतिपूर्ण तरीके से होली का त्योहार संपन्न हुआ । इस पर नगर वासियों ने पुलिस विभाग एवं नगर पंचायत का आभार व्यक्त किया ।

डी जे की धमक से नगाड़े हुए विलुप्त ।

आधुनिकता के चकाचौंध में नगाड़ों की शोर गुम हो गई है। पहले बसंत पंचमी से ही नगाड़ा बजाना शुरू हो जाता था। बड़ी संख्या में लोग फाग गीत गाने वालों की टोली बैठती थी। लेकिन अब महज होलिका दहन और उसके दूसरे दिन ही नगाड़े की आवाज सुनने की मिलती है।
बदलते दौर ने नगाड़ों का स्थान डीजे ने लिया है। अब लोग डीजे के धुन पर थिरकते हैं। चारों ओर फाग गाने वालों की मस्ती भरा शोर, पारंपरिक लोक गीत लोगों के उत्साह को दोगुना कर देती है। लेकिन समय के साथ फाग गीतों की परंपरा ही अब विलुप्त हो रही है। वहीं पूरा जीवनशैली खत्म होने की कगार पर है। यहां एक दो मंडली इस परंपरा को जीवित रखने की कवायद में जुटी है।
फागुन माह आते ही जगह-जगह पर फाग गीतों के लिए अलग से व्यवस्था की जाती थी शाम होते ही नगाड़ों की धुन लोगों को घर से निकलने के लिए विवश कर देते थे। साथ मिल बैठकर पारंपरिक फाग गीतों की ऐसी महफिल जमती थी कि राह चलने वाला भी कुछ पल ठहरकर इस मस्ती भरे पल को अपने जेहन में उतार सके। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र से फाग गीत और नगाड़े की धुन गायब है।
जानकारी के मुताबिक परीक्षा नजदीक होने के कारण बच्चों की टोली इन दिनों पढ़ाई में व्यस्त हैं। और बड़ों के पास कामकाज से समय नहीं, लिहाजा अब सारी परंपराएं महज एक औपचारिकता बन के रह गई है। राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से जुड़ा है होली के त्यौहार को राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जोड़ के देखा जाता है।

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