November 22, 2024

लघु धान्य फसलें पौष्टिकता के कारण आज अमीरों का भोजन में शामिल : चौबे

0

रायपुर, 20 जनवरी 2023 : कोदो, कुटकी, रागी जैसी लघु धान्य फसलों के पोषक मूल्यों तथा औषधीय गुणों के कारण वैश्वविक स्तर पर दिनो-दिन इनका महत्व बढ़ता जा रहा है। पहले इन फसलों को गरीबों की फसल कहा जाता था लेकिन अपने गुणों के कारण आज यह अमीरों के भोजन का प्रमुख अंग बन गई है।

यह बात कृषि मंत्री श्री रविन्द्र चौबे ने कही। कृषि मंत्री आज यहां इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के 37वें स्थापना दिवस के अवसर पर कृषि महाविद्यालय रायपुर के सभागार में आयोजित ‘‘खाद्य एवं पोषण सुरक्षा हेतु लघु धान्य फसले’’ राष्ट्रीय कार्यशाला में अपना सम्बोधन दे रहे थे। उन्होंने कार्यशाला का शुभारंभ भी किया।

उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में इन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा कोदो, कुटकी एवं रागी की समर्थन मूल्य पर खरीदी किये जाने की पहल की गई है। राज्य मिलेट मिशन के तहत वर्ष 2026-27 तक इन फसलों के रकबे में 1 लाख हैक्टेयर की वृद्धि करने का लक्ष्य रखा गया है, राज्य के किसानों के रूझान को देखते हुए लगता है कि यह लक्ष्य अगले वर्ष ही हासिल कर लिया जाएगा।

कृषि मंत्री ने कहा कि श्री चौबे ने लघु धान्य फसलों की नवीन प्रजातियों के विकास एवं उन्नत उत्पादन तकनीकी के विकास के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे प्रयासों की सराहना की। कार्यशाला में मुख्यमंत्री के कृषि सलाहकार श्री प्रदीप शर्मा, धरसींवा विधायक श्रीमती अनिता योगेन्द्र शर्मा, राष्ट्रीय बीज विकास निगम, नई दिल्ली की अध्यक्ष सह प्रबंध संचालक डॉ. मनिन्दर कौर द्विवेदी, छत्तीसगढ़ के कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिहं उपस्थित थे।

कृषि मंत्री श्री रविन्द्र चौबे ने कहा कि छत्तीसगढ़ में सदियों से कोदो, कुटकी, रागी, सावां, चीना, कंगनी जैसी लघु धान्य फसलों का उत्पादन परंपरागत रूप से किया जाता रहा है। किसी भी प्रकार की भूमि में बहुत कम सिंचाई संसाधनों तथा बहुत कम लागत के साथ इन फसलों की खेती की जा सकती है। इन फसलों में मौसम की विपरित परिस्थितियों को सहने की क्षमता होती है तथा इनमें कीट-बीमारियों का प्रकोप भी बहुत कम होता है। लघु धान्य फसलों में सूखा सहने की अदभुत क्षमता होती है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2023 को लघु धान्य वर्ष घोषित किया गया है। श्री चौबे ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा इन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य मिलेट मिशन प्रारंभ किया गया है जिसके तहत प्रदेश के 20 जिले शामिल किए गए हैं।

मुख्यमंत्री के कृषि सलाहकार श्री प्रदीप शर्मा ने कहा कि भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि दक्षिण ऐशियाई देशों में लघु धान्य फसलों की खेती नैसर्गिक रूप से होती रही है तथा यहां की आबो-हवा इन फसलों की पैदावार के लिए अनुकूल है। उन्होंने कहा कि विगत कुछ दशकों में लघु धान्य फसलों के स्थान पर धान गेहूं, दलहन एवं अन्य व्यवसायिक फसलों का उत्पादन बढ़ने से लघु धान्य फसलों का रकबा कम हुआ है लेकिन उससे एक बड़ा नुकसान यह हुआ है कि मौसम की विपरित परिस्थितियों में फसलें खराब होने से भुखमरी की नौबत आ रही है। इसका बड़ा उदाहरण इस वर्ष बाढ़ के कारण पाकिस्तान में गेहूं की फसल नष्ट होने के कारण वहां भुखमरी की उत्पन्न स्थिति है।

श्री शर्मा ने कहा कि लघु धान्य फसलें बहुत कम लागत और संसाधनों में किसी भी प्रकार की मिट्टी में कम अवधि में उगाई जा सकती हैं। ये फसलें प्रतिकूल परिस्थितियों के प्रति सहनशील होती है। लो कैलोरी डाईट होने के कारण यह मधुमेह, रक्तचाप एवं हृदय रोगियों के लिए काफी अच्छी मानी जाती है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के 30 हजार नालों को पुनर्जीवित कर उनके किनारें कोदो, कुटकी, रागी जैसी लघु धान्य फसलें उगाने का कार्य चल रहा है।

कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह ने इस अवसर पर कहा कि छत्तीसगढ़ में मिलेट मिशन के तहत बहुत तेजी से काम चल रहा है। वर्ष 2026-27 तक 1 लाख 90 हजार हैक्टेयर में मिलेट उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है लेकिन जिस रफ्तार से लघु धान्य फसलों का रकबा बढ़ रहा है उससे लगता है कि यह लक्ष्य वर्ष 2023-24 में ही हांसिल कर लिया जाएगा।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा लघु धान्य फसलों के विकास एवं अनुसंधान में भी काफी कार्य किया जा रहा है और विश्वविद्यालय द्वारा कोदो, कुटकी तथा रागी की 9 उन्नत किस्में विकसित की गई हैं जिनमें – इंदिरा कोदो-1, छत्तीसगढ़ कोदो-2, तथा छत्तीसगढ़ कोदो-3, छत्तीसगढ़ कुटकी-1, छत्तीसगढ़ कुटकी-2 तथा छत्तीसगढ़ सोन कुटकी, इंदिरा रागी-1, छत्तीसगढ़ रागी-2 तथा छत्तीसगढ़ रागी-3 शामिल हैं।

इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ में लघु धान्य फसलों के उत्पादन हेतु अनुसंधान एवं तकनीकी विकास, लघु धान्य फसलों के पोषक मूल्य तथा औषधीय गुणों पर अनुसंधान, लघु धान्य फसलों के प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन, उत्पाद निर्माण तथा इन फसलों के बीज उत्पादन एवं वितरण हेतु इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर तथा इक्रिसेट हैदराबाद, भारतीय लघु धान्य फसल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद तथा राष्ट्रीय बीज निगम, नई दिल्ली के मध्य तीन समझौते भी निष्पादित किये गये

इन समझौतों पर राष्ट्रीय बीज निगम की ओर से अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक डॉ. मनिन्दर कौर द्विवेदी, अन्तर्राष्ट्रीय अर्धशुष्क कटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (इक्रिसेट) की ओर से उप महानिदेशक डॉ. अरविंद कुमार तथा भारतीय लघु धान्य फसल अनुसंधान संस्थान की ओर से वैज्ञानिक डॉ. हरिप्रसन्न ने हस्ताक्षर किये।

इन समझौतों पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की ओर से कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने हस्ताक्षर किये। इस अवसर पर कृषि एवं उद्यानिकी विभाग के वरिष्ठ अधिकारी, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी, वैज्ञानिकगण तथा बड़ी संख्या में लघु धान्य फसल उत्पादक प्रगतिशील कृषक उपस्थित थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *