गाड़ी नंबर CG- Ap- 0395 का खेल
इंट्रो: इंसान कब गुनाह के दलदल में फसता चला जाता है तो उसको खुद भी पता नहीं होता, इंसान की फितरत और उसकी नियत कब बदल जाए यह तो भगवान भी नहीं जानता पत्रकारिता के पेशे को कलंकित करने वाले कुछ लोग पत्रकारिता की आड़ में अपनी तिजोरी भरने में लगे हुए हैं मनगढ़ंत कहानी लिखकर अधिकारियों पर दबाव प्रेशर बना कर उनसे रकम एठने का यह आसान सा तरीका उन्होंने खोज निकाला है समय रहते ही समाज को चेतना होगा, नही तो चौथे स्तंभ पर यदि इसी तरह के लोग हावी होते रहे तो पत्रकारिता से और इंसाफ से लोगों का विश्वास खत्म हो जाएगा बीते दिनों पत्रकारिता का जो हश्र हमने देखा है वह कदापि भी उचित नहीं कहा जा सकता, चंद रुपयों की खातिर अपने ईमान और अपनी कलम को बेच देने वाले क्या देश और क्या भविष्य निर्माण में अपना योगदान निभाएंगे यह तो समय के गर्भ में है लेकिन आपको बता देंगे कभी पत्रकारिता पीडित को न्याय दिलाने के लिए मील का पत्थर साबित हुआ करती थी परंतु अब यह पेशा धन उगाही का जरिया बनता जा रहा है समय रहते ही इस प्रकार के धन लोभियों के जाल से पत्रकारिता को बचाना भी अब साफ सुथरी पत्रकारिता करने वालो के सामने बड़ी चुनौती बन गया है।
शहडोल धनपुरी, 13 जनवरी कि सुबह एसईसीएल सोहागपुर एरिया के खैरहा भूमिगत खदान से एक ट्रक रोड सेल से कोयला लेकर बाहर निकला और अनूपपुर जिले के चचाई थाने की पुलिस ने उस कोयले से भरी गाड़ी को रोक लिया जब पूरी जांच की गई तो उक्त गाड़ी में भरा कोयला चोरी का पाया गया विगत एक पखवाड़े से यह मामला सुर्खियों में बना हुआ है और जिसे लेकर कई प्रकार के सवाल भी उठ रहे हैं जहां इस पर सबसे अधिक प्रबंधन पर सवाल उठाया जा रहा है तो वही यह मामला प्रबंधन से जुड़ा हुआ दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। यही कारण है कि ट्रांसपोर्टर की एक गलती के कारण यह पूरा मामला आज इतना बड़ा बनकर सामने आया है इस पूरे घटना के संबंध में जब हमने पड़ताल की तो इसमें जो कुछ सामने आया उसमें यही लगा कि नियम के अनुसार खदान के अंदर गाड़ी जाती है और सभी पेपर्स सही होने के बाद ही कोयला लोड कर कर वह बाहर निकलता है इसके बाद जब यह गाड़ी चचाई थाने में पकड़ी जाती है तब इसमें यह बात सामने निकल कर आती है कि जिस गाड़ी पर कोयला लोड किया गया था असल में उस गाड़ी को जब चचाई पुलिस ने पकड़ा तो उक्त गाड़ी का नंबर फर्जी निकला जिसके बाद उसे जप्त किया गया और अब उसकी जांच की जा रही है।
प्रबंधन का क्या दोष
आपको बता दे कि जब कोई भी गाड़ी की पहली इंट्री होती है उस स्थल को बूम बैरियल कहते है जहाँ पर सारे दस्तवेजो की जाँच की जाती है, जिसमे वाहन चालक के वैलिड लायसेंस की जाँच, फिर जो भी वाहन होता है उसकी आरसी, इंसोसर्स के बाद ही गाड़ी कांटे तक पहुचती है, जहाँ पर ट्रांसपोर्टर द्वारा दी गई लोडिंग स्लिप के अनुसार ही वैध कोयला लोडिंग पाइंट से ट्रक में दिया जाता है।
जो एस ई सी एल के मापदंड के अनुकूल हो,
तो फिर अधिकारियों की फजीहत की वजह
मामला लेन देन का हो तो अधिकारियों को इस तरह की फर्जी पत्रकारिता को झेलना ही पड़ता है, जब इस बावत हमने टेक्निकल इंस्पेक्टर से बात की तो उन्होंने बताया कि गाड़ी वैध पेपर्स के साथ अंदर गई अब फर्जी पेपर्स तो कोयला नही दिया जा सकता, गाड़ी के नंबर प्लेट्स पर छेड़छाड़ कर के लाया है इसकी जानकारी प्रबंधन को कैसे होगी, यह तो पुलिस के अधिकार की बात है पुलिस जाँच कर रही है और जो भी इसमें दोसी है उन पर कार्यवाही करना पुलिस का काम है। अब टेक्निकल इंसपेक्टर य बड़े छोटे अधिकारियों कर्मचारियों को सिर्फ ब्लैक मेल कर पैसा एठने की यह चाल है।
सारे दस्तवेजो में गाड़ी निकलने से लेकर एस ई सी एल के रिकार्ड और कैमरों में कैद होती है संभव ही नही की एस ई सी एल से कोई भी कोयला खदानों से कोयला नही निकाला जा सकता परंतु कुछ लोग अब पत्रकारिता के पेशे को ही कलंकित करने पर तुले हुए है।पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य पीड़ित को न्याय दिलाने का था, लेकिन यहां तो उल्टी ही गंगा बहाने में कुछ झोलाछाप तुले हुए है जिन्होंने पीड़ित को न्याय की जगह फरियादी को भी कटघरे में खड़ा कर दिया