November 25, 2024

छतीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज करेगा भू-राजस्व संहिता के संशोधन पर संगठित विरोध,तैयारी शुरू

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jogi express

फ़ाइल् फोटो
छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने आज विधान सभा द्वारा भू-राजस्व संहिता की धारा 165 में संशोधन करने वाले विधेयक को पारित किए जाने के संगठित विरोध की तैयारी शुरु कर दी है। आदिवासी-बहुल अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों की भूमि की लूट रोकने के लिए भू-विक्रय के लिए जिलाधिकारी की पूर्वानुमति का निर्बंध था। उक्त संशोधन द्वारा इस निर्बंध को कमज़ोर करने के लिए बदल कर जनोपयोगी परियोजनाओं में जनजातीय भूस्वामी की सहमति मात्र पर्याप्त होने का प्रावधान कर दिया गया है। नियामगिरि से बाल्को तक यह सामान्य अनुभव है कि राज्य सरकारें निजी उद्योगपतियों के लिए स्वयं भू-अर्जन करती हैं या पूर्व अर्जित भूमि निजी संस्थानों को स्थानांतरित कर देती हैं। राज्य शासन के लिए निर्बल आदिवासियों को धमका कर या झूठी ग्राम सभाएं कर के उनकी सहमति प्राप्त करना भी आम बात है। संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष श्री बी.एस. रावटे ने संगठन के मानद विधिक सलाहकार और संविधानविद् श्री बी.के. मनीष से दिल्ली फ़ोन कर के इस मुद्दे पर विधिक और रणनीतिक विरोध के लिए मंत्रणा की है। श्री बी.के. मनीष ने तत्काल ईमेल कर के राजभवन सचिवालय से अनुरोध किया है कि महामहिम इस विषय की गंभीरता को देखते हुए अपनी सम्मति लंबित रखें और इस विधेयक को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख लें। यदि छत्तीसगढ़ शासन इस विधेयक  पर राज्यपाल की सम्मति प्राप्त करने में सफ़ल हो जाती है तब भी पांचवीं अनुसूची के पैरा पांच (एक) के तहत राज्यपाल को इस विधेयक का विस्तार सभी अनुसूचित क्षेत्रों में मात्र एक अधिसूचना द्वारा रोक देने का अधिकार है। ध्यान रहे के बी.के.मनीष विरुद्ध छत्तीसगढ़ राज्य मुकद्दमें के तारतम्य में विधि एवं न्याय मंत्रालय, भारत शासन, ने जून 2013 में एक परिपत्र जारी कर यह स्पष्ट किया था कि तत्कालीन अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती की लिखित राय के मुताबिक पांचवीं अनुसूची में वर्णित राज्यपाल के अधिकार राज्य की मंत्रि-परिषद् की सलाह से स्वतंत्र हैं।
छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज शनिवार 23 दिसंबर को गोंडवाना भवन में होने वाली अपनी राज्य कार्यकारिणी की बैठक में भी इस मुद्दे पर चर्चा करेगा। अनुसूचित क्षेत्र की सभी ग्राम सभाओं द्वारा इस विधेयक के विरोध का प्रस्ताव पारित करने के अलावा उच्च न्ययालय में इस विधेयक की संवैधानिकता को भी पांचवीं अनुसूची की भावना का उल्लंघन होने के आधार पर चुनौती दिए जाने की संभावना है।

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