सरकार की उदासीनता और वन विभाग की लापरवाही से छत्तीसगढ़ में सक्रिय है बाघों और वन्यप्राणियों के शिकारी एवं तस्कर – कांग्रेस
JOGI EXPRESS
भोरमदेव अभ्यारण्य के टाईगर रिजर्व बनने के पहले ही बाघों एवं वन्यप्राणियों की सुरक्षा दांव पर – कांग्रेस
रायपुर/ प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता मो. असलम ने कहा कि भोरमदेव अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व बनाने के प्रस्ताव को राज्य वन जीव बोर्ड ने तो मंजूरी दे दी है, पर बाघों के संरक्षण को लेकर विभाग एवं सरकार की लापरवाही पर सवाल उठ खड़ा हुआ है। कबीरधाम जिले के अंतर्गत आने वाले इस अभ्यारण्य में बाघों और भालुओं की तस्करी एवं शिकार के प्रमाण मिलना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। वन विभाग ने भी स्वीकार किया है कि शिकारियों और तस्करों की सक्रियता देखी गयी है। अब जंगल में बाघ एवं भालू के अवशेष मिलने से बाघो एवं अन्य वन्य प्राणियों की सुरक्षा दांव पर है। हालांकि राष्ट्रीय बाघ नियंत्रण बोर्ड इसकी जांच कर रहा है लेकिन जंगलों में वन्य प्राणियों की सुरक्षा को लेकर विभाग की उदासीनता सर्वविदित है।
भोरमदेव अभ्यारण्य का वन क्षेत्र कान्हा राष्ट्रीय उद्यान एवं अचानकमार टाईगर रिजर्व के कारिडोर के अंतर्गत आता है, जहां वन्यप्राणियों की आवाजाही एवं चहलकदमी होते रहती है। इस वन क्षेत्र में वन्य प्राणियों की सुरक्षा एवं देखरेख में भारी व्यवधान उत्पन्न किया गया है। अभी मार्गो का चैड़ीकरण चल रहा है, पेड़ो की कटाई हो रही है जो वन्यप्राणियों की सुरक्षा के लिये घातक है। जब भोरमदेव अभ्यारण्य के 624 वर्ग किमी वन क्षेत्र को टाईगर रिजर्व क्षेत्र बनाने का प्रस्ताव राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को भेजा जा चुका है, तब वहां सड़क बनाने एवं व्यवधान उत्पन्न करने की क्या आवश्यकता है? पर्यावरण विदों ने भी चिल्पी-रेंगाखार-साल्हेवारा मार्ग में पेड़ों की कटाई एवं चैड़ीकरण पर आपत्ति जताई है जो वन्यप्राणियों की सुरक्षा की दृष्टि से उचित है। वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी जंगल के कंपार्टमेंट का दौरा नहीं करते है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण बीटगार्ड और चैकीदार तक भीतरी इलाकों में जाने से बचते है। इसके अलावा वन्यप्राणी विभाग के जितने अधिकारी कर्मचारी है। वे इस विभाग को लूपलाइन मानते है और केवल समय काटते हैं फलस्वरूप वन्यप्राणियो की सुरक्षा को लेकर चूक होना स्वाभाविक है।
प्रवक्ता मो. असलम ने कहा कि करोड़ों की लागत से वनीकरण के लिये हर वर्ष राज्य सरकार की योजनाओं एवं केन्द्रीय योजनाओं द्वारा पौधे लगाये जाते हैं और उनका रखरखाव किया जाता है पर क्या कारण है कि जंगल का घनत्व कम हो रहा है और वन्यप्राणियों की तादाद बढ़ रही है। इससे जाहिर है कि वन विभाग योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर लापरवाह है और राशि कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है। वनों एवं वन्यप्राणियों को बचाने में विभागीय कार्रवाही शून्य है। बाघो की घटती संख्या एवं तस्करों द्वारा की जा रही हत्या एक राष्ट्रीय चिंता का विषय है किन्तु राज्य सरकार एवं लापरवाह अधिकारी इसे गंभीरता से नहीं ले रहे है। सरकार की इच्छाशक्ति की कमी एवं प्रशासनिक नियंत्रण की अक्षमता से प्रदेश में योजनाओं के लिये मिलने वाली राशि का बंदरबाट हो रहा है। सरकार एवं वन विभाग के जिम्मेदार अभी बोनस तिहार मनाने में व्यस्त है, वहीं जंगल की सुरक्षा दांव पर लगी है। कांग्रेस ने विरल हो रहे वन एवं वन्यप्राणियों की सुरक्षा पर चिंता व्यक्त किया है और इसके लिये सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।