उप राष्ट्रपति ने इंजीनियरिंग विद्यार्थियों के लिए भावात्मक तथा सामाजिक कौशल के महत्व पर बल दिया
नई दिल्ली : उप राष्ट्रपति श्री एम वैंकेया नायडू ने कहा है कि तकनीकी कौशल के साथ इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों के लिए भावात्मक और सामाजिक कौशल महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि इन कौशलों से विद्यार्थी तेजी से बदलते विश्व को अपना सकेंगे।
आईआईटी तिरुपति के छठे इंस्टिट्यूट दिवस पर आईआईटी तिरुपति के विद्यार्थियों के साथ बताचीत में उप राष्ट्रपति ने उनसे सामाजिक प्रसंग के साथ अपने ज्ञान को जोड़ने की अपील की। उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि विद्यार्थी अपनी नियति तय करेंगे और अपने ज्ञान तथा कौशल से राष्ट्रीय परिवर्तन में योगदान देंगे।
देश के विकास ढांचे में टेक्नोलॉजी की प्रगति को प्रमुख बताते हुए श्री नायडू ने प्रौद्योगिक प्रगति की राह पर तेजी से आगे बढ़ने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि विज्ञान और टैक्नोलॉजी को लोगों के जीवन की गुणवत्ता सुधारनी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिक प्रगति जारी रखते हुए हमें पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के प्रति सतर्क रहना होगा।
उप राष्ट्रपति ने आईआईटी को उभरते और महत्वाकांक्षी भारत की छवि का प्रतिनिधि बताते हुए कहा कि भारत विश्व समुदाय में अपना उचित स्थान पाने के लिए संकल्पबद्ध है। उन्होंने कहा कि यह सपना तभी पूरा होगा जब हम अपनी शिक्षा प्रणाली में सुधार करेंगे।
नई शिक्षा नीति को सुविचारित दस्तावेज बताते हुए श्री नायडू ने इस नीति को शीघ्र अमल में लाने में बल दिया। उप राष्ट्रपति ने बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा मातृ भाषा में देने की बात की। उन्होंने तकनीकी शिक्षा में भारतीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ाने का प्रयास करने को कहा। उन्होंने प्रशासन और न्याय पालिका में भी भारतीय भाषाओं के उपयोग पर बल दिया।
उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि प्रत्येक वर्ष 1.5 मिलियन इंजीनियर परीक्षा पास करते हैं, लेकिन मूल इंजीनियरिंग रोजगार में केवल 7 प्रतिशत ही योग्य पाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि हमें रोजगार में वृद्धि करनी होगी और काम के लिए कौशल प्रदान करना होगा।
उप राष्ट्रपति ने शिक्षा और उद्योग जगत के बीच मजबूत संपर्क बनाने पर बल दिया।
भारत के शानदार अतीत की चर्चा करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि प्राचीन काल में भारत को विश्व गुरु माना जाता था और एशिया के विद्यार्थी नालंदा, तक्षशिला तथा पुष्पगिरि जैसी महान संस्थाओं में अध्ययन के लिए आते थे। उन्होंने कहा कि हमें पुराना गौरव हासिल करना होगा। हमें भारत को एक बार फिर ज्ञान और शिक्षा का केंद्र बनाना होगा।
उन्होंने कहा कि भारत विश्व में सबसे अधिक युवा देश है और राष्ट्र निर्माण के लिए युवा ऊर्जा को सक्रिय बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि युवा तभी परिवर्तनकारी भूमिका निभा पाएंगे, जब उचित रूप से कौशल संपन्न, प्रेरित होंगे तथा जब उन्हें सही अवसर प्रदान किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि पवित्र नगरी तिरुपति का उनके हृदय में विशेष स्थान है। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि वे न केवल नवीन टेक्नोलॉजी सीखें बल्कि भारत की पुरातन संस्कृति की भी खोज करें। श्री नायडू ने कहा कि आईआईटी तथा आईआईएसईआर जैसे प्रमुख शिक्षण संस्थानों के साथ तिरुपति भविष्य का शिक्षा केंद्र बनने के लिए तैयार है।
उन्होंने नए आईआईटी तथा आईआईएम की स्थापना पर प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि इन संस्थानों को सच्चे रूप में विश्व स्तरीय संस्थान बनाना चाहिए। उन्होंने विद्यार्थियों के लिए अध्ययन, शोध तथा प्रयोग के उद्देश्य से सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने पर बल दिया।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में आईआईएम ब्रांड बन गए हैं, लेकिन उनकी जिम्मेदारी पुराने आईआईटी द्वारा तय मानकों को बनाए रखने की है।
उप राष्ट्रपति ने आईआईटी तिरुपति को गृह तथा हुडको पुरस्कार पाने की प्रशंसा की। आईआईटी तिरुपति को यह पुरस्कार पर्यावरण अनुकूल ट्रांजिट कैंपस की डिजायन और निर्माण के लिए मिला है।
श्री नायडू ने कोविड-19 महामारी से लड़ने में आईआईटी तिरुपति की भागीदारी की प्रशंसा की। आईआईटी तिरुपति ने थर्मल एयर इस्टेरिलाइजर, एन-95 के बराबर रीयूजेबल रेसपीरेटर सहित अनेक टैक्नोलॉजी का विकास किया। श्री नायडू ने कहा कि तिरुपति भारत का एकमात्र शहर है, जहां आईआईटी और आईएसईआर दोनों हैं।
श्री नायडू ने सभी आईआईटी के बीटेक कार्यक्रम में सबसे अधिक छात्राओं का नामांकन (18 प्रतिशत) आईआईटी तिरुपति में होने पर प्रशंसा व्यक्त की।
उप राष्ट्रपति ने इन उपलब्धियों के लिए आईआईटी तिरुपति के निदेशक, फैकल्टी, स्टाफ तथा विद्यार्थियों को बधाई देते हुए आशा व्यक्त की कि संस्थान आने वाले वर्षों में राष्ट्र निर्माण में योगदान करेगा। समारोह में आध्र प्रदेश के उप मुख्यमंत्री के. नारायणस्वामी, आईआईटी तिरुपति के निदेशक प्रोफेसर के.एन, सत्यानारायण, आईआईटी तिरुपति के स्डूडेंट डीन प्रोफेसर एन वैंकेया और प्रोफेसर ए मेहर प्रसाद उपस्थित थे।